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Punjab Election 2022: पंजाब में 56 सालों से नहीं बना कोई हिंदू सीएम, चर्चा में आने के बाद भी पिछड़ गए थे सुनील जाखड़
Punjab Election 2022: पंजाब में पिछले 56 साल से एक भी हिंदू मुख्यमंत्री नहीं बना है। राज्य में हिंदू मतदाताओं की संख्या करीब 37 फ़ीसदी है मगर फिर भी 56 साल से लगातार राज्य में सिख मुख्यमंत्री ही बनते रहे हैं।
Punjab Election 2022: पंजाब में विधानसभा चुनाव (Punjab Vidhan Sabha Chunav) के लिए इन दिनों चुनाव प्रचार (Election Campaign) जोरों पर है। सभी पार्टियों ने मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है। राज्य की 117 विधानसभा सीटों पर सत्तारूढ़ कांग्रेस (Congress) और आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच कड़ा मुकाबला दिख रहा है। वैसे अकाली दल (Shiromani Akali Dal) भी बसपा के साथ चुनावी गठजोड़ करके इन दोनों दलों को घेरने की कोशिश में जुटा हुआ है।
पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) के साथ मिलकर भाजपा भी अन्य सियासी दलों को चुनौती देने की कोशिश में लगी हुई है। आम आदमी पार्टी ने भगवंत मान (Bhagwant Mann) को सीएम चेहरा घोषित किया है जबकि कांग्रेस में सीएम चेहरे के लिए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के बीच खींचतान चल रही है।
ऐसे में और राज्य के मुख्यमंत्री पद को लेकर यह बात उल्लेखनीय है कि राज्य में पिछले 56 साल से एक भी हिंदू मुख्यमंत्री (Hindu Mukhya Mantri) नहीं बना है। राज्य में हिंदू मतदाताओं की संख्या (Hindu Voters In Punjab) करीब 37 फ़ीसदी है मगर फिर भी 56 साल से लगातार राज्य में सिख मुख्यमंत्री (Sikh Chief Minister) ही बनते रहे हैं।
पंजाब में ही लगा था पहली बार राष्ट्रपति शासन
यदि पंजाब के इतिहास को देखा जाए तो 1951 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने पर गोपीचंद भार्गव (Gopi Chand Bhargava) को मुख्यमंत्री बनाया गया था। बाद में पार्टी में अंदरूनी कलह के कारण उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। तब देश में पहली बार आर्टिकल 356 का इस्तेमाल पंजाब में ही किया गया था और वहां राष्ट्रपति शासन (President's Rule In Punjab) लगाया गया था। पंजाब में राष्ट्रपति शासन 20 जून 1951 से 17 अप्रैल 1952 तक चला था।
नाम उछलने के बाद रेस में पिछड़े जाखड़
पिछले दिनों कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफा (Amarinder Singh Ka Istifa) देने के बाद सुनील जाखड़ (Sunil Kumar Jakhar) का नाम उभरा था मगर बाद में कांग्रेस नेता अंबिका सोनी (Ambika Soni) ने सिख पीएम का राग अलाप कर हिंदू सुनील जाखड़ को रेस से बाहर कर दिया था। अभी हाल में जाखड़ ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा भी था कि उन्हें 42 विधायकों का समर्थन हासिल था। फिर भी हाईकमान की ओर से उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। उनका यह भी कहना था कि चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू दौड़ में काफी पीछे थे मगर हाईकमान की ओर से चन्नी की ही ताजपोशी की गई।
तीन हिंदू चेहरे बन चुके हैं मुख्यमंत्री
पंजाब में 1966 से पहले तीन हिंदू नेता मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए थे। इनमें सबसे उल्लेखनीय नाम गोपीचंद भार्गव का है जिन्होंने तीन बार पंजाब की कमान संभाली। उन्हें 1947, 1949 और 1964 में राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था। कांग्रेस के ही एक और हिंदू चेहरे भीमसेन सच्चर (Bhim Sen Sachar) ने 1949 में 188 दिनों तक राज्य के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली थी। पंजाब के हिंदू सीएम के रूप में काम करने वाले तीसरे नेता रामकिशन (Ramkishan) थे जिन्होंने 7 जुलाई 1964 को राज्य के मुख्यमंत्री पद के समान संभाली थी और वह करीब एक वर्ष तक इस पद पर रहे थे।
जाखड़ और मनीष तिवारी की चर्चा नहीं
पंजाब की आबादी को देखा जाए तो यहां 58 फ़ीसदी सिख आबादी है जबकि हिंदू आबादी (Hindu Population In Punjab) करीब 37 फ़ीसदी है। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी विभिन्न पार्टियों की ओर से जो चेहरे सामने आए हैं, उनसे साफ हो गया है कि मौजूदा चुनाव के बाद भी राज्य को सिख मुख्यमंत्री ही मिलने वाला है। कांग्रेस के पास एक मजबूत हिंदू चेहरा सुनील जाखड़ के रूप में रहा है और वे प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं मगर इस बार के चुनाव में कांग्रेस की ओर से उन्हें फ्रंट फुट पर बैटिंग करने का मौका नहीं मिला है। हिंदू चेहरा होने के कारण ही वे एक बार मुख्यमंत्री पद पाने से चूक भी चुके हैं।
कांग्रेस के पास दूसरा बड़ा हिंदू चेहरा मनीष तिवारी (Manish Tewari) का है मगर हाल में कांग्रेस की ओर से पंजाब में स्टार प्रचारकों की जारी की गई सूची में भी मनीष तिवारी को जगह नहीं दी गई है। इस पर प्रतिक्रिया जताते हुए मनीष तिवारी का कहना है कि उन्हें कांग्रेस नेतृत्व के फैसले पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। आश्चर्य तो तब होता जब कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें स्टार प्रचारकों की सूची में जगह दी होती। मनीष तिवारी को पार्टी में असंतुष्ट खेमे से जुड़ा हुआ माना जाता है और यही कारण है कि कांग्रेस नेतृत्व की ओर से उन्हें ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता।
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