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Punjab Election 2022: सुखबीर बादल को गढ़ में घेरने में जुटी आप, जलालाबाद सीट पर हो रहा है दिलचस्प मुकाबला

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman TiwariPublished By Shreya
Published on: 16 Feb 2022 11:45 AM IST
Punjab Election 2022: सुखबीर बादल को गढ़ में घेरने में जुटी आप, जलालाबाद सीट पर हो रहा है दिलचस्प मुकाबला
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जगदीप गोल्डी कंबोज-सुखबीर सिंह बादल (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Punjab Election 2022: पंजाब की 117 विधानसभा सीटों (Punjab Assembly Seats) में कई सीटें ऐसी हैं जिन पर हर किसी की निगाह लगी हुई है। दरअसल इन सीटों पर किस्मत आजमाने के लिए दिग्गज उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे हैं। ऐसे ही सीटों में एक सीट फाजिल्का जिले (Fazilka) की जलालाबाद विधानसभा सीट (Jalalabad Vidhan Sabha Seat) है। इस विधानसभा क्षेत्र को अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) का गढ़ माना जाता है क्योंकि वे इस सीट पर तीन बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए हैं। इस बार भी उनकी स्थिति मजबूत मानी जा रही है मगर आम आदमी पार्टी (AAP) की ओर से उन्हें कड़ी चुनौती मिल रही है।

सुखबीर बादल (Sukhbir Singh Badal) के सांसद बनने के बाद 2019 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस (Congress) ने इस सीट पर अकाली दल को हरा दिया था। आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार जगदीप गोल्डी कंबोज (Jagdeep Kamboj Goldy) पहली बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। गोल्डी को युवा और बदलाव चाहने वाले मतदाताओं का समर्थन मिल रहा है। इसलिए इस बार बादल को आप की चुनौतियों (SAD vs AAP) से जूझना होगा। माना जा रहा है कि इस बार इस सीट पर दिलचस्प मुकाबला होगा।

सुखबीर बादल (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

तीन बार जीत चुके हैं सुखबीर बादल

फाजिल्का जिला पाकिस्तान के बॉर्डर (Pakistan Border) से लगा हुआ है और अकाली दल के मुखिया सुखबीर बादल ने अपने तीनों विधानसभा चुनाव इस जिले की जलालाबाद सीट (Jalalabad Seat) से ही जीते हैं। राज्य के डिप्टी सीएम के रूप में सुखबीर बादल ने अपने क्षेत्र में विकास के कई काम भी कराए हैं। सुखबीर बादल ने क्षेत्र में सड़कों के विकास के साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने का भी प्रयास किया है। हालांकि लोगों की यह शिकायत भी है कि उन्हें जमीनी स्तर पर इसका बहुत ज्यादा फायदा नहीं मिला है।

वैसे कैडर बेस्ड पार्टी होने के कारण अकाली दल की क्षेत्र में मजबूत पकड़ भी मानी जाती है। अकाली दल की ओर से सुखबीर बादल सीएम का चेहरा भी हैं और इसका भी उन्हें अपने क्षेत्र में सियासी फायदा मिलता दिख रहा है। हालांकि यह चुनाव क्षेत्र राय सिख बहुल है और जट्ट सिखों से उनका 36 का आंकड़ा रहा है। जट सिख होने के बावजूद सुखबीर बादल की राय सिखों में सेंधमारी तय मानी जा रही है। वैसे 2019 के उपचुनाव में सुखबीर बादल के न लड़ने से इस सीट पर अकाली दल को हार का भी सामना करना पड़ा था।

रमिंदर सिंह आंवला (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मौजूदा विधायक का चुनाव लड़ने से इनकार

2019 के उपचुनाव में इस सीट पर जीत हासिल करने वाले कांग्रेस विधायक रमिंदर सिंह आंवला (Raminder Singh Awla) ने इस बार सुखबीर बादल के खिलाफ चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। दरअसल वे जलालाबाद की जगह फिरोजपुर जिले की गुर हरसहाय सीट से टिकट मांग रहे थे। हालांकि सिद्धू के दबाव की वजह से हाईकमान (Congress High Command) उनकी सीट बदलने के लिए तैयार नहीं था। इस पर आंवला ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।

अब कांग्रेस की ओर से बसपा के टिकट पर फिरोजपुर से दो बार सांसद रहे मोहन सिंह फालियावालां (Mohan Singh Falian Wala) को चुनाव मैदान में उतारा गया है। फलियावालां पहले भी तीन बार इस सीट पर किस्मत आजमा चुके हैं। हालांकि उन्हें एक बार भी जीत हासिल नहीं हुई है। इस बार भी वे सुखबीर बादल के लिए बड़ी चुनौती बनते नहीं दिख रहे हैं।

आप की ओर से बादल की घेराबंदी

आम आदमी पार्टी ने युवा चेहरे जगदीप गोल्डी कंबोज (Jagdeep Kamboj Goldy) को चुनाव मैदान में उतारकर बादल को घेरने का प्रयास किया है। कंबोज ने कांग्रेस छोड़कर आप का दामन थामा है। इसलिए उनके सामने सबको साधने की बड़ी चुनौती है। क्षेत्र के युवा मतदाताओं का भी उन्हें समर्थन मिल रहा है। बदलाव की चाह रखने वाले मतदाता भी उन्हें समर्थन देने की बात कर रहे हैं। इसके साथ ही क्षेत्र में रहने वाले मजदूर वर्ग में भी कंबोज सेंधमारी करते दिख रहे हैं।

इस विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में भी आप उम्मीदवार को इस बार अच्छा समर्थन मिलता दिख रहा है। सियासी जानकारों का मानना है कि बादल की स्थिति मजबूत तो दिख रही है मगर उन्हें आप की ओर से कड़ी चुनौती मिल रही है।

ग्रामीण इलाकों में भाजपा से नाराजगी

भाजपा ने राय सिख बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले पूर्णचंद को चुनाव मैदान में उतारा है। पूर्णचंद पहले अकाली दल में ही थे मगर बाद में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया था। क्षेत्र में भाजपा का संगठन मजबूत न होने के कारण उन्हें चुनाव प्रचार में दिक्कतें उठानी पड़ रही हैं। केंद्र सरकार की ओर से पारित नए कृषि कानूनों को लेकर क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों के किसानों में अभी भी नाराजगी दिख रही है। भाजपा उम्मीदवार को इस बात का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। हालांकि राय सिख बिरादरी से जुड़ा होने के कारण पूर्णचंद इस बिरादरी का वोट हासिल करने की कोशिश …

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Shreya

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