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Punjab Election 2022: कांग्रेस और आप के बीच कड़ी टक्कर, साइलेंट वोटर बना पहेली, अकाली दल ने भी की ताकत दिखाने की कोशिश

पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में आम आदमी पार्टी बड़े ही मजबूती से सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को टक्कर देती नजर आ रही है। वहीं इस चुनाव में अकाली दल पंजाब की राजनीति में दुबारा ऊपर उठने के लिए पूरी ताकत लगा रही है।

Bishwajeet Kumar
Published By Bishwajeet KumarWritten By Anshuman Tiwari
Published on: 19 Feb 2022 9:18 PM IST
Punjab Election 2022: कांग्रेस और आप के बीच कड़ी टक्कर, साइलेंट वोटर बना पहेली, अकाली दल ने भी की ताकत दिखाने की कोशिश
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प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली। पंजाब में रविवार को होने वाले मतदान से पहले सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के दिलों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। चुनावी प्रचार का दौर समाप्त हो चुका है मगर मतदाताओं का मूड-मिजाज सभी राजनीतिक दलों के लिए पहेली बना हुआ है। सभी दलों के नेता रविवार को होने वाले मतदान के बूथ प्रबंधन में जुटे हुए हैं मगर साइलेंट वोटर को लेकर सभी प्रत्याशी असमंजस की स्थिति में बने हुए हैं। इस बार कई दलों के सियासी दिग्गज भी कड़े मुकाबले में फंस गए हैं और सभी दलों की ओर से पूरी ताकत लगाए जाने के कारण हार-जीत का मार्जिन भी कम होने की संभावना है।

पंजाब के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस (Congress) 77 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। इस बार कांग्रेस को आप की ओर से मिल रही चुनौतियों के कारण सीटों में भारी गिरावट आनी तय है। आप (AAP) ने ग्रामीण इलाकों में भी मजबूती से दस्तक दी है और उसे इस बार के चुनाव का सबसे मजबूत खिलाड़ी माना जा रहा है। बसपा (BSP) के साथ हाथ मिलाकर उतरा अकाली दल (Akali Dal) भी ताकत दिखाने को बेकरार है जबकि कैप्टन के साथ में लेकर चुनावी रण में उतरी भाजपा (BJP) को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

2017 में कांग्रेस बनी बड़ी ताकत

पंजाब में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) की अगुवाई में कांग्रेस ने 77 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि आम आदमी पार्टी 20 सीटों के साथ नंबर दो पर रही थी। शिरोमणि अकाली दल को सिर्फ 15 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और उसे मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी नहीं मिला था। 2017 में यूपी में प्रचंड जीत हासिल करने वाली भाजपा पंजाब में सिर्फ 3 सीटों पर सिमट कर रह गई थी।

2017 में कांग्रेस 38.5 फ़ीसदी मत पाने में सफल हुई थी। आप को 23.7 फ़ीसदी मत मिले थे। शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) 25.2 फीसदी मत पाकर भी आप से पिछड़ गया था। भाजपा का वोट प्रतिशत सिर्फ 5.4 फ़ीसदी ही था।

इस बार आप से मिल रही कड़ी चुनौती

ऐसे में यदि 2017 के चुनाव को देखा जाए तो इस बार सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को लगना तय है। कांग्रेस किसी भी सूरत में पिछले चुनाव जीतने सीटें जीतती नहीं दिख रही है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) की सीटों में भारी बढ़ोतरी होना तय माना जा रहा है। हाल के दिनों में आप की ओर से आक्रामक चुनावी रणनीति पर काम किया गया है और आप मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने कई दिनों से पंजाब में ही डेरा डाल रखा है।

हालांकि चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में प्रसिद्ध कवि और आप के संस्थापक सदस्य माने जाने वाले कुमार विश्वास ने अरविंद केजरीवाल के आतंकियों से कनेक्शन की बात कह कर आप की चुनावी संभावनाओं में पलीता लगाने का काम जरूर किया है। अब यह देखने वाली बात होगी कि आप को इसका कितना सियासी नुकसान उठाना पड़ता है।

आपस में ही उलझे रहे कांग्रेस के नेता

पंजाब में कांग्रेस के चुनाव प्रचार के तेज गति न पकड़ पाने का एक बहुत बड़ा कारण पार्टी के नेताओं का आपसी मतभेद रहा है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद पार्टी के दो बड़े चेहरे मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) और पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) एक-दूसरे की टांग खींचने में ही जुटे रहे। चुनाव सिर पर आ जाने के बावजूद दोनों नेताओं के मतभेद खत्म नहीं हो सके।

गत 6 फरवरी को कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से चन्नी को और सीएम चेहरा घोषित किए जाने के बाद सिद्धू चुनाव प्रचार के प्रति और निष्क्रिय हो गए। दूसरे चुनाव क्षेत्रों में उनके न जाने का एक और बड़ा कारण उनका खुद का अमृतसर ईस्ट सीट पर कड़े मुकाबले में फंस जाना भी रहा है। उन्हें इस बार अपनी अमृतसर ईस्ट सीट (Amritsar East Assembly seat) पर अकाली नेता विक्रमजीत सिंह मजीठिया (Vikramjit Singh Majithia) की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही पार्टी में टिकट बंटवारे को लेकर भी खासा विवाद पैदा हुआ और तमाम असंतुष्ट नेताओं ने पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ ही ताल ठोक दी है।

आप को सियासी फायदा होना था

आम आदमी पार्टी को इस बार के चुनाव में बड़ा सियासी फायदा होना तय माना जा रहा है। पार्टी का चुनाव अभियान भी दूसरे दलों की अपेक्षा व्यवस्थित ढंग से चला है। हालांकि ग्रामीण इलाकों में पार्टी को संयुक्त समाज मोर्चा के प्रत्याशियों के कारण नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। इस बार के चुनाव में लोगों के मन में बदलाव की इच्छा दिख रही है और यह इच्छा ही आप की सबसे बड़ी ताकत बन गई है। शुरुआती दौर में पार्टी के टिकटों को लेकर विवाद जरूर पैदा हुआ था मगर अब यह विवाद खत्म हो चुका है और पार्टी एकजुट होकर पूरी ताकत से चुनाव लड़ रही है।

शहरी इलाकों में भाजपा दिखा रही ताकत

भाजपा ने इस बार पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस (Punjab Lok Congress) और सुखदेव सिंह ढींडसा (Sukhdev Singh Dhindsa) की पार्टी संयुक्त अकाली दल (Sanyukt Akali Dal) के साथ गठबंधन किया है। शहरी इलाकों में भाजपा की स्थिति मजबूत दिख रही है। चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi), गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने चुनावी सभाओं के जरिए भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की है। पहले अकाली दल के साथ मिलकर काफी कम सीटों पर लड़ने वाली भाजपा ने इस बार ज्यादा संख्या में प्रत्याशी भी उतारे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि पिछले चुनाव की अपेक्षा भाजपा की ताकत में भी काफी बढ़ोतरी होगी।

अकाली दल को भी होगा फायदा

बसपा के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरे अकाली दल के लिए भी यह चुनाव काफी अहम माना जा रहा है। कॉडर बेस्ड पार्टी होने के कारण अकाली दल को इसका भी फायदा मिल सकता है। मालवा इलाके की कई सीटों पर पार्टी की स्थिति मजबूत दिख रही है। अब यह देखने वाली बात होगी कि बसपा से हाथ मिलाने के बाद पार्टी को दलित वोटों का कितना फायदा हो पाता है। पंजाब में 32 फीसदी दलित मतदाता काफी बड़ी भूमिका निभाते हैं। अगर देखने वाली बात होगी कि दलित मतदाता कांग्रेस के दलित सीएम के चेहरे पर वोट देते हैं या किसी दूसरी पार्टी को समर्थन देकर उसकी चुनावी संभावनाओं को मजबूत बनाते हैं।



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