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Punjab Political Crisis: क्या कैप्टन अमरिंदर बनाएंगे नई पार्टी, या कांग्रेस में रहकर बिगाड़ेंगे खेल
कैप्टन अमरिंदर सिंह इस्तीफे के बाद नई पारी की शुरुआत करेंगे। उनके सचिव ने ट्वीट में लिखा कि जब लोग आपको धोखा देकर 'सरप्राइज' दें, तो उन्हें झटका देकर 'शॉक' दो।
लखनऊ। पंजाब की राजनीति में शनिवार को जैसे-जैसे दिन ढलने लगा, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का सियासी सूरज भी अस्त हो चला। बीती शाम को अचानक अमरिंदर सिंह ने इस्तीफा दे दिया। लेकिन इस सियासी उठापटक के मायने अहम हैं। पंजाब की राजनीति में संग्राम तभी शुरू हो गया था जब कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया था। ऐसे पटाक्षेप की उम्मीदें सियासी पंडितों को थी, बस समय नहीं पता था कब।
कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफा देने और उनके प्रेस सचिव के एक ट्वीट के बाद कयासों का दौर शुरू हो गया है कि जल्द ही कैप्टन अमरिंदर सिंह नई पार्टी बनाएंगे। सीएम के प्रेस सचिव ने ट्वीट में लिखा, "जब लोग आपको धोखा देकर 'सरप्राइज' दे, तो उन्हें झटका देकर 'शॉक' दो।"बस क्या था सोशल मीडिया पर अटकलबाजी का दौर शुरू हो गया।
क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे अमरिंदर?
इस ट्वीट से आज उपजे सवालों और कयासों को अगर कुछ समय के लिए बगल भी कर दें तो यह प्रश्न राजनीतिक हलकों में बहुत पहले से था। क्योंकि कैप्टन के बारे में जाना जाता है कि वो अपने बूते सरकार चलाने वाला चेहरा हैं । पंजाब की राजनीति में अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल और अमरिंदर सिंह दोनों ऐसा चेहरा माने जाते रहे हैं जो अपनी पार्टी को कभी भी किसी भी स्तर से ऊपर उठा सकते हैं। ये वही अमरिंदर सिंह हैं जिन्होंने कांग्रेस पार्टी को अच्छे-खासे बहुमत से सत्ता में बिठाया।वही कैप्टन इस वक्त तक कांग्रेस पार्टी के नेता तो हैं लेकिन अब मुख्यमंत्री नहीं हैं। तो मन में यह बात आना स्वाभाविक है कि क्या वो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे या अपनी पार्टी बनाकर आगे बढ़ेंगे? कैप्टन अमरिंदर ने किसान आंदोलन को हवा देते हुए जिस खूबसूरती से उसे दिल्ली की तरफ मोड़ दिया, यकीनन यह खेल किसी साधारण राजनीतिज्ञ के बस की नहीं थी।
कैप्टन की छवि राष्ट्रभक्त की
कैप्टन के साथ बीते एक साल से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सम्मानजनक व्यवहार नहीं कर रहा था। बावजूद वो अपनी छवि को एक 'राष्ट्रभक्त' के तौर पर बनाए रखने में कामयाब रहे। अमरिंदर सिंह की ऐसी छवि है कि उनके विरोधी दल के नेता भी उनका सम्मान करते हैं। कई मौकों पर जब प्रधानमंत्री मोदी पंजाब गए या दोनों ने एक साथ मंच साझा किया तो जो सम्मान का भाव उन्होंने रखा वह कैप्टन के व्यक्तित्व को दर्शाता है। बाकी कई राज्यों के मुख्यमंत्री आये दिन प्रधानमंत्री तक से क्या व्यवहार करते हैं वह छिपा नहीं है। यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता, कार्यकर्ता भी अमरिंदर सिंह को सम्मान भाव से ही देखते हैं। उदाहरणस्वरूप जलियांवाला बाग स्मारक को दिए नए स्वरूप पर कांग्रेस पार्टी ने जिस तरह विवाद बढ़ाया बावजूद इसके कैप्टन अमरिंदर ने केंद्र सरकार के जीर्णोद्धार संबंधी फैसले को सही ठहराया।
पार्टी के भीतर रहकर ही खेल बिगाड़ेंगे?
कैप्टन अमरिंदर सिंह जिस तरह लगातार अपमानित होने के बाद भी बहुत सधी प्रतिक्रिया देते रहे, आज वो उनके काम आ रहा है। लोगों का परशेप्शन भी कैप्टन को लेकर यही बन रहा है कि 'आदमी तो अच्छा था, इसके साथ अन्याय हुआ है।' पार्टी आलाकमान के आदेश पर उन्होंने इस्तीफा तो दे दिया । लेकिन बदजुबानी नहीं की। लेकिन खेल भी यहीं से शुरू होगा। अब देखना होगा कि क्या अमरिंदर कांग्रेस में रहकर ही खेल बिगाड़ेंगे या अपनी कोई अलग लाइन लेंगे।
क्या बीजेपी-अमरिंदर मिलेंगे ?
कयास यह भी लगाया जा सकता है कि 80 साल के अमरिंदर सिंह क्या भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं। क्योंकि पंजाब में भारतीय जनता पार्टी को एक अदद चेहरे की जरूरत है और कैप्टन को एक स्थापित पार्टी की। क्या, दोनों तरफ से कोई समझौता हो सकता है। मान लीजिए कि यदि ऐसा हुआ तो पंजाब की राजनीति में भूचाल ही आ जाएगा। हाल के समय में बीजेपी ने जिस तरह राष्ट्रवाद को भुनाया है, कैप्टन का राष्ट्रवाद उससे अलग थोड़े ही न है।
खैर, जो भी हो वह भविष्य की बात होगी। अभी पंजाब के राजनीतिक दल और खुद कैप्टन अमरिंदर सिंह 'वेट एंड वॉच' का रास्ता अख्तियार करेंगे। जब तक इस इस्तीफे के गुबार से धुंआ न छंट जाए, कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।