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Rajasthan News: राजस्थान के CM पद को लेकर सस्पेंस बरकरार,गहलोत ने फिर किया पायलट खेमे की बगावत का जिक्र
Rajasthan News: उन्होंने पायलट कैंप की ओर इशारा करते हुए कहा कि सभी को इस बात की जानकारी है कि बगावत के समय कुछ विधायक अमित शाह, जफर इस्लाम और धर्मेंद्र प्रधान के साथ बैठे थे
Rajasthan News: कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव का नामांकन खत्म हो जाने के बावजूद अभी तक राजस्थान के मुख्यमंत्री पद को लेकर सस्पेंस खत्म नहीं हो सका है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने गुरुवार को पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करके अपना पक्ष रखा था। गुरुवार को पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने दो दिन में राजस्थान के मुख्यमंत्री पद को लेकर फैसला लिए जाने की बात कही थी मगर यह समय सीमा खत्म होने के बाद भी अभी तक सीएम पद को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो सकी है।
इस बीच राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आज फिर 2020 में पायलट खेमे की ओर से की गई बगावत की ओर इशारा किया। उन्होंने पायलट कैंप की ओर इशारा करते हुए कहा कि सभी को इस बात की जानकारी है कि बगावत के समय कुछ विधायक अमित शाह, जफर इस्लाम और धर्मेंद्र प्रधान के साथ बैठे थे। सभी जानते हैं कि उस समय भाजपा की ओर से सरकार गिराने की कोशिश की गई थी। गहलोत के इस बयान से साफ हो गया है कि पार्टी हाईकमान के लिए सचिन पायलट को राज्य का मुख्यमंत्री बनाना आसान साबित नहीं होगा।
गहलोत ने पूछा-आखिर यह स्थिति क्यों पैदा हुई?
दरअसल गत 25 सितंबर को पार्टी पर्यवेक्षकों मलिकार्जुन खड़गे और अजय माकन की जयपुर में मौजूदगी के दौरान विधायकों की ओर से बागी तेवर दिखाए जाने के बाद पार्टी नेतृत्व राजस्थान के मुख्यमंत्री पद को लेकर ऊहापोह की स्थिति में फंसा हुआ दिख रहा है। इस बगावत को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी काफी नाराज हुई थीं जिसके बाद गुरुवार को अशोक गहलोत ने सोनिया से मुलाकात में माफी भी मांगी थी। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष को लिखित माफीनामा देते हुए जयपुर की घटना पर गहरा अफसोस जताया था।
गहलोत ने आज गांधी जयंती के मौके पर एक समारोह में हिस्सा लेने के बाद उस दिन की घटना पर एक बार फिर अफसोस जताया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब एक लाइन का प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया जबकि पार्टी में ऐसी परंपरा रही है। इसीलिए मैंने कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात ने माफी भी मांगी मगर यह भी विचारणीय है कि ऐसी स्थिति क्यों पैदा हुई।
विधायकों में इसलिए पैदा हुई नाराजगी
गहलोत ने कहा कि मैंने पार्टी के नाराज विधायकों को मनाने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को भेजा था। तब विधायकों ने इस बात को लेकर नाराजगी जताई कि 2020 में मैंने उनसे अभिभावक बनने का वादा किया था मगर अकेले छोड़ने पर उनका क्या होगा? इसी बात को लेकर नाराजगी के कारण बाद में काफी संख्या में विधायकों ने विधानसभा के स्पीकर को अपना इस्तीफा भी दे दिया।
2020 का जिक्र करके गहलोत ने पायलट खेमे की ओर से की गई बगावत की ओर इशारा किया है। दरअसल 2020 में सचिन पायलट ने कांग्रेस के 18 अन्य विधायकों के साथ बगावती तेवर दिखाए थे। वे गहलोत को राजस्थान के पार्टी नेतृत्व की जिम्मेदारी से हटाने की मांग कर रहे थे। बाद में राहुल और प्रियंका के प्रयासों से पायलट की पार्टी में वापसी हुई थी। इस दौरान गहलोत ने पार्टी विधायकों को एकजुट रखकर अपनी ताकत दिखाई थी।
बगावत के पीछे थी भाजपा की साजिश
गहलोत ने 2020 की बगावत का जिक्र करते हुए आज कहा कि इसके पीछे पूरा खेल भाजपा खेल रही थी। कुछ विधायक अमित शाह और धर्मेंद्र प्रधान जैसे भाजपा के बड़े नेताओं के साथ बैठे थे और उन्होंने कांग्रेस सरकार को गिराने की कोशिश की थी।
गहलोत के इस बयान से साफ हो गया है कि वे 2020 की बगावत को देखते हुए सचिन पायलट को माफ किए जाने के मूड में नहीं देख रहे हैं। वे पहले भी इस बाबत अपना रुख साफ कर चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का जिक्र करते हुए गहलोत ने कहा कि थरूर के मुकाबले खड़गे काफी अनुभवी नेता हैं और वे कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में एकतरफा जीत हासिल करेंगे।
सीएम पद को लेकर मुश्किल में फंसा नेतृत्व
जयपुर में विधायकों के बागी तेवर दिखाने के बाद अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर हो गए थे मगर अब राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद कांग्रेस नेतृत्व के लिए गले की हड्डी बन गया है। गहलोत और पायलट दोनों की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद भी अभी तक पार्टी नेतृत्व की ओर से इस बाबत कोई फैसला नहीं लिया गया है। गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले महासचिव केसी वेणुगोपाल ने गुरुवार को दो दिनों के भीतर इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर फैसला लिए जाने की बात कही थी मगर यह समय सीमा खत्म होने के बाद भी अभी तक नेतृत्व किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका है।
सियासी जानकारों का मानना है कि राजस्थान कांग्रेस पर गहलोत की मजबूत पकड़ है और राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए कांग्रेस नेतृत्व नफा-नुकसान के आधार पर सियासी हालात की गहराई से समीक्षा में जुटा हुआ है। इस तरह राज्य में मुख्यमंत्री पद को लेकर अभी भी संशय की स्थिति बरकरार है और विधायक पार्टी हाईकमान के फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।