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Rajasthan News: क्लीन शेव नहीं, तो शादी भी नहीं, राजस्थान में सामूहिक विवाह में पंजीयन करवाने का नया नियम जानिए
Rajasthan Marriage Rule: पूरे भारत में शादी कहीं भी हो, इसे त्यौहार की तरह ही मनाया जाता है। हर जगह शादी की रस्में अलग अलग होती है। परन्तु राजस्थान के सिरोही जिले के शिवगंज इलाके में एक समाज की सामूहिक विवाह की सभा में एक नया नियम लागू किया गया है
Rajasthan Marriage Rule: सिरोही। पूरे भारत में शादी कहीं भी हो, इसे त्यौहार की तरह ही मनाया जाता है। हर जगह शादी की रस्में अलग अलग होती है। परन्तु राजस्थान के सिरोही जिले के शिवगंज इलाके में एक समाज की सामूहिक विवाह की सभा में एक नया नियम लागू किया गया है, कि सामूहिक विवाह में किसी भी दुल्हे को दाढ़ी बढ़ा कर आने की अनुमति नहीं होगी, शादी की पहली शर्त ही क्लीन शेव दूल्हा है।
यह मामला है सिरोही के शिवगंज शहर के गोकुलवाड़ी इलाके का। यहाँ माली समाज ने एक सभा बुलाई, जिसमें समाज के ही एक सामूहिक विवाह के कार्यक्रम को लेकर चर्चाएँ होनी थी और साथ ही जिम्मेदारियां बांटनी थी। इसके साथ ही चर्चा होनी थी वैवाहिक कार्यक्रम के नियमों की। गोकुलवाड़ी की माली धर्मशाला में कार्यकारिणी के सदस्यों की सभा पांच परगना सामूहिक विवाह सेवा संस्थान के बैनर तले हो रही थी। जिसमें अध्यक्षता कर रहे थे भंवर लाल देवड़ा और शिवगंज माली समाज के अध्यक्ष शंकर लाल सुन्देशा परिहार।
क्या है पूरा नियम
इस सभा में पहले तो सामाजिक जागरूकता और युवकों के समानांतर पर जोर दिया गया। पर जब अष्टम सामूहिक विवाह आयोजन की बात हुई तब सभा में मौजूद ज्यादातर सदस्यों और समाज के लोगों ने इस बार को रखा कि सभी दुल्हों को क्लीन शेव में आना चाहिए। इसके बाद इस विषय पर आपसी चर्चाएँ हुईं और फिर यह एलान किया गया कि अगर कोई भी दूल्हा दाड़ी बढ़ा कर आता है तो उसका पंजीकरण नहीं किया जाएगा, पंजीकरण के बाद भी ये नियम तब तक रहेगा जब तक शादी नहीं हो जाती। सामूहिक विवाह के समय भी कोई भी दुल्हे की थोड़ी सी भी (दाड़ी) बढ़ी हुई नहीं होनी चाहिए। क्लीन शेव लड़के की ही शादी करवाई जाएगी। राजस्थान है, यहाँ न जाने क्या दिख जाए कि राजस्थान टूरिज्म की पुरानी लाइन सटीक बैठती है।ये राजस्थान है, यहाँ न जाने क्या दिखा जाए।
कुरुतियाँ भी हैं अभी बाकी
राजस्थान में शादियों की प्रथाओं में राजस्थान की सांस्कृतिक झलक देखने को मिलती है, परन्तु अभी भी कुछ इलाकों में कुरुतिओं के बादल हटे नहीं हैं। कई बार ख़बरें आती है कि दुल्हे को घोड़ी नहीं चढ़ने दिया, किसी दलित दुल्हे की बारात पर दबंगों ने पथराव किया, किसी दुल्हे को घोड़ी पर चढ़ने की कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी। कहीं बाल विवाह तो कहीं दहेज़ से आज भी शादियों की खुशियाँ छिन जाती है।