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Rajasthan Politics: लखीमपुर प्रकरण में पूरी तरह निष्क्रिय रहे गहलोत, सियासी भविष्य को लेकर उठने लगे सवाल
Rajasthan Politics: लखीमपुर हिंसा का विरोध जताने के लिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ कई पार्टी नेता मैदान में उतरे, लेकिन इस प्रकरण में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहीं भी दिखाई नहीं पड़े।
Rajasthan Politics: लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के बाद सभी विपक्षी दलों ने भाजपा और योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वैसे इस मामले में कांग्रेस सबसे आगे नजर आ रही है। कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी ने सबसे पहले लखीमपुर के लिए कूच किया। हालांकि उन्हें पुलिस की ओर से सीतापुर में हिरासत में ले लिया गया। फिर भी उनके लखीमपुर जाने की जिद पर अड़े रहने पर आखिरकार उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी इस मुद्दे को लेकर मैदान में उतर पड़े। राहुल और प्रियंका ने सबसे पहले लखीमपुर खीरी पहुंचकर सपा और बसपा पर लीड लेने में भी कामयाबी हासिल की।
लखीमपुर हिंसा का विरोध जताने में राहुल गांधी के साथ पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अलावा सचिन पायलट भी पूरी तरह सक्रिय दिखे। राजस्थान के मुख्यमंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत पिक्चर में कहीं भी नहीं दिखाई पड़े। अशोक गहलोत की नामौजूदगी के बाद सियासी हलकों में उनकी नाराजगी की चर्चाओं में तेजी आ गई है। माना जा रहा है कि गहलोत इन दिनों हाईकमान के रवैये से नाराज हैं। इसी कारण उन्होंने इस पूरे प्रकरण से दूरी बनाए रखी।
हाईकमान दे रहा सचिन को महत्व
दरअसल, राहुल के रवैये से अब यह साफ हो चुका है कि वे पार्टी में युवा नेताओं को बढ़ावा देने और वरिष्ठ नेताओं को किनारे करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की विदाई के बाद दलित चेहरे चरणजीत सिंह चन्नी को आगे लाया गया है। कैप्टन को पंजाब कांग्रेस का बड़ा चेहरा माना जाता रहा है । मगर वह राहुल गांधी की स्टाइल से सामंजस्य नहीं बिठा पा रहे थे। इसी कारण पार्टी हाईकमान की ओर से उनकी विदाई कर दी गई , जबकि पंजाब में कांग्रेस को अगले साल ही विधानसभा का चुनाव लड़ना है। यह भी गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पद से हटने के तुरंत बाद कैप्टन ने राहुल और प्रियंका पर बड़ा हमला बोलते हुए दोनों को अनुभवहीन बताया।
अब ऐसी ही अटकलें राजस्थान को लेकर भी लगाई जा रही हैं। हाल के दिनों में राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम और गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले सचिन पायलट की राहुल और प्रियंका से कई बार मुलाकात हो चुकी है। सचिन पायलट की राय को पार्टी हाईकमान की ओर से महत्व दिया जा रहा है । इस मामले में गहलोत दरकिनार होते दिख रहे हैं।
पंजाब के बाद राजस्थान में अटकलें तेज
पंजाब में हुए फेरबदल के बाद राजस्थान को लेकर सियासी अटकलें लगातार तेज होती जा रही हैं। पंजाब में कैप्टन की विदाई के बाद से ही सियासी हलकों में ऐसी चर्चाएं तैर रहे हैं कि पार्टी हाईकमान की ओर से राजस्थान में भी फेरबदल किया जाएगा और मुख्यमंत्री पद की कमान सचिन पायलट को सौंपी जाएगी। गांधी जयंती के दिन आयोजित कार्यक्रम में गहलोत ने खुलकर कहा था कि वे आगे भी राजस्थान के मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
जानकारों का कहना है कि कुर्सी पर संकट देखकर ही गहलोत की ओर से इस तरह का दावा किया जा रहा है जबकि सच्चाई यह है कि सचिन पायलट के प्रति हाईकमान का सॉफ्ट कॉर्नर आने वाले दिनों में गहलोत के लिए महंगा पड़ सकता है।
पायलट को मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी
पिछले कुछ समय से सचिन पायलट लगातार दिल्ली में सक्रिय हैं । राहुल व प्रियंका के संपर्क में बने हुए हैं। पंजाब में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर सिद्धू के इस्तीफे और कैप्टन की ओर से किए जा रहे लगातार हमलों के कारण उठापटक का दौर चल रहा है। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पंजाब का मामला शांत होने के बाद पार्टी हाईकमान की ओर से राजस्थान में भी बड़ा कदम उठाया जा सकता है । सचिन पायलट को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। लखीमपुर में हिंसा के मुद्दे पर जिस तरह सचिन पायलट खुलकर राहुल और प्रियंका के साथ खड़े रहे, उससे भी इस बात के संकेत मिले हैं।
आवाज उठाने वालों पर हाईकमान सख्त
पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनवाने में राहुल और प्रियंका की ही प्रमुख भूमिका रही है। राज्य के कई कद्दावर कांग्रेस नेता मुख्यमंत्री बनने की कोशिश में जुटे हुए थे। मगर पार्टी हाईकमान की ओर से चन्नी पर ही भरोसा जताया गया। सिद्धू की ओर से चन्नी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले जाने पर उन्हें पार्टी हाईकमान का कोई समर्थन नहीं मिला। इससे साफ है कि राहुल और प्रियंका ने अब अपने कदमों के खिलाफ आवाज उठाने वालों के प्रति सख्त रवैया अपनाना शुरू कर दिया है।
बघेल ने इस कारण दिखाई सक्रियता
छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ वरिष्ठ मंत्री टी एस सिंह देव और उनके समर्थक मोर्चा खोले हुए हैं। पिछले दिनों दिल्ली में इस सिलसिले में उच्चस्तरीय बैठक भी हुई थी। हालांकि इस बैठक में बघेल अभयदान पाने में कामयाब हुए थे। जानकारों के मुताबिक राहुल और प्रियंका का समर्थन मिलने से ही बघेल की कुर्सी बच सकी। छत्तीसगढ़ में अभी भी मामला शांत नहीं हुआ है। इसी कारण बघेल ने लखीमपुर खीरी के मुद्दे पर खुलकर पार्टी हाईकमान के साथ मोर्चा संभाला।
लखनऊ एयरपोर्ट से बाहर न निकलने देने पर उन्होंने धरना दिया। फिर अगले ही दिन राहुल के साथ फिर लखनऊ पहुंच गए। बघेल के रवैये से साफ है कि वे पार्टी हाईकमान के विश्वास की डोर को और मजबूत बनाना चाहते हैं ताकि उनकी कुर्सी पर आया संकट टल सके।