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राजस्थान की टोंक सीट जहाँ से सचिन पायलट जीते, उसकी आगामी चुनाव की गणित जान लीजिए

Rajasthan Assembly Election 2023: सचिन पायलट के विधानसभा क्षेत्र में गणित अलग थी। विगत 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनावों में सबसे चर्चित सीटों में से एक रही टोंक। जहाँ सचिन पायलट ने 54000 वोटों से रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी. पर अब इस सीट पर घमासान होगा.

Bodhayan Sharma
Written By Bodhayan Sharma
Published on: 20 Dec 2022 12:00 AM IST
Rajasthan Assembly Election 2023
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Rajasthan Assembly Election 2023

Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान की धरती पर कांग्रेस – भाजपा की हार जीत लगातार चल रही है। दोनों अपने – अपने मोहरों पर दाव लगाते हैं। पर 2018 चुनाव में वोटों की गिनती के समय सभी की साँसे तब तक थमी रही जब तक पूरी तरह विजेता पार्टी की घोषणा नहीं हुई। इसके पीछे वजह रही गिनती के समय के उतार चढ़ाव। इतनी कांटे की टक्कर में कभी भाजपा बढ़त बनाती तो कभी कांग्रेस। दोनों पार्टी मुख्यालयों के बाहर ऐसी भीड़ रही कि कभी भी जश्न बनाया जा सकता है। पर इन सब में तब भाजपा को मात खानी पड़ी। हालाँकि जीत से कुछ ही कदम दूर भाजपा सरकार रिपीट का ख्वाब सजाए हुए थी। पर राजस्थान की जनता पहले ही मत बना चुकी थी शायद।

कांग्रेस ने बीजेपी की टोंक सीट पर किया कब्ज़ा

इन सब के बीच भी अगर व्यक्तिगत तौर पर देखा जाए, तो सचिन पायलट के विधानसभा क्षेत्र में गणित अलग थी। विगत 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनावों में सबसे चर्चित सीटों में से एक रही टोंक। पहले के चुनाव की बाते करें तो 2008 और 2013 के चुनावों के भाजपा इस सीट से विजयी रही, यहाँ कांग्रेस पार्टी तीसरे नम्बर पर ही रह कर अपनी साख बचाती रही। इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के विधायक थे अजीत सिंह मेहता।

लेकिन 2018 में कांग्रेस ने टोंक को जीतने का पूरा मन बना लिया था। अब टोंक में कांग्रेस का अगला दाव था सीट में ही बदलाव करना। टोंक की सीट को कितनी महत्वपूर्ण सीट का दर्जा दिया गया वो इसी बात से समझ लीजिए कि वहां से कांग्रेस पार्टी ने मैदान में उतारा राजस्थान का बड़ा नाम और वो क़द्दावर नेता, जो तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के लिए मुख्य चेहरा और उम्मीदवार मान लिया गया था। वो नाम था सचिन पायलट का। जब सचिन पायलट को इस सीट के लिए चुना गया तो एक बार सभी अचम्भित थे। क्योंकि आखिरी दोनों चुनावों में कांग्रेस कुछ बहुत कमाल कर नहीं पायी थी।

1967 के बाद पहली बार कांग्रेस का हिन्दू कैंडीडेट

इस लिए चर्चा इस बात की रही के टोंक कि इस सीट से कांग्रेस ने अरसे से कोई हिन्दू उम्मीदवार नहीं उतारा था। मुस्लिम और दलित बाहुल्य सीट होने की वजह से यहाँ से कांग्रेस पार्टी मुस्लिम चेहरे को ही हमेशा उतारती आयी थी। पर राजनैतिक विद्वानों ने कांग्रेस के इस दाव की प्रशंसा की। विद्वानों ने माना कि जातीय समीकरणों और कांग्रेस पार्टी के इतिहास में वोटों और हार जीत की गणना को देखते हुए कांग्रेस ने सचिन पायलट का अच्छा चयन किया और पायलट को मैदान में उतार कर जीत लगभग पक्की कर ली। भौगोलिक और जातीय क्षेत्रों के हिसाब से दिखा जाए तो टोंक से अजमेर और दौसा लोकसभा सीट सटे होने के कारण भी यही अच्छा चयन कांग्रेस के लिए सटीक जा रहा था। इसके पीछे एक बड़ी वजह ये भी थी कि सचिन पायलट इसी क्षेत्र से सांसद भी रह चुके हैं।

भाजपा ने भी उतारा दिग्गज

भाजपा ने भी अपने हिस्से की चाल चली और इस बार खेल में अपने दाव को बदल कर एक नया प्रयोग किया। भाजपा ने इस बार टोंक के चुनावी मैदान में उतारा राजस्थान से अपने एकमात्र मुस्लिम चेहरे, बड़े नेता और कैबिनेट मंत्री यूनुस खान को। कैबिनेट मंत्री यूनुस खान इससे पहले यहाँ से चुनाव नहीं लड़ते थे। युनुस इससे पहले डीडवाना से चुनाव लड़ते आये हैं और जीते भी। लेकिन मुस्लिम बहुलता होने के कारण और सचिन पायलट के समक्ष किसी बड़े नेता को ही लड़वाने की वजह से भाजपा के इस चयन को भी रोचक माना जा रहा था और इस टक्कर को नेताओं की रैलिओं और जन सभाओं ने रोमांचक बनाए रखा।

2018 की रिकॉर्ड जीत कांग्रेस के पाले में

2018 के चुनाव का परिणाम इस सीट के लिए अपने आप में बदलाव की आंधी की तरह आया। भाजपा के उम्मीदवार कैबिनेट मंत्री यूनुस खान पराजित हुए और सचिन पायलट ने दमख़म दिखाते हुए यूनुस खान को 54000 से अधिक के वोटों से हराया। ये मार्जिन जनता की मनसा को स्पष्ट कर गया था। टोंक की सीट पर अपनी आँखें गड़ाए पत्रकारों ने आम जनता से वार्ता करते हुए एक बात का अनुभव किया और ज्यादातर जनता के मुंह से सुना भी कि कांग्रेस को इस बार जिताने के पीछे की जनता की वजह थी कि टोंक की जनता सीधे तौर पर सचिन पायलट को अगला मुख्यमंत्री चाहते थे।

मुख्यमंत्री पद के लिए जाना पड़ा 10 जनपद

अब जीत होने के बाद इस बात पर बहुत दिनों तक मंथन चला। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच खूब बार बातचीत हुई। जब इसका फैंसला राजस्थान में नहीं हो पाया तो दोनों ही दिल्ली 10 जनपद की शरण में जा पहुंचे। दिल्ली से निर्णय आया जो सभी नेताओं को मानना पड़ा। पर जनता इस बात से बेहद आहात दिखाई दी। अशोक गहलोत के होते ये संभव हो भी नहीं हो सकता था क्योंकि ये अशोक गहलोत की राजनैतिक साख पर सवाल उठाने जैसा था। फिर दिल्ली से निर्णय पर सचिन पायलट को संतोष करना पड़ा उपमुख्यमंत्री के पद से। हालांकि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच आपसी विवादों की शुरुआत यहीं से मानी जाती है।

पायलट की बगावत की वजह जान लीजिए

फिर कैलेंडर में आया साल 2020। पायलट के उपमुख्यमंत्री के सफ़र में 2020 का साल आते – आते बहुत सारे बदलाव आए। अप्रत्यक्ष रूप से पायलट की नाराज़गी सामने आने लगी थी। पार्टी के अन्दर और बाहर सभी को ये लगने लगा था कि पायलट का जीत के लिए इस्तेमाल हुआ है। पायलट महज़ कठपुतली बन कर रह गए हैं। उनके हाथ में वो शक्तियां नहीं है जो होने का वायदा आलाकमान ने किया था या उनको वोट करने वाली जनता ने देखा था। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस में फूट दिखाई देने लगी। दो खेमों का जन्म हुआ। फिर पायलट और गहलोत ख़ेमे के बीच की तनातनी खुलकर आई और पायलट अपने ख़ेमे के 28 विधायकों के साथ मानेसर के एक रिसोर्ट में जा कर बैठ गए। राजस्थान की सत्ता डगमगाती हुई नज़र आई। अशोक गहलोत को इसकी शायद उम्मीद भी नही थी।

विरोध के बाद गद्दार कहलाए सचिन

सचिन पायलट पर गद्दारी के आरोप लगे। उनें बाग़ी कहा गया पर सब कुछ होने पर भी सचिन ने हमेशा एक ही बात कही कि वो कभी भी पार्टी बदल लेने जैसे विचार के साथ वहां नही गए थे। ये सरकार के प्रति उनकी नाराज़गी जाहिर करने की स्थिति थी, जिसे हमेशा गलत समझा गया। ये नाराज़गी भी इसी लिए थी क्योंकि गहलोत और उनके कुछ चहीते नेता उनकी बात को अनसुनी कर रहे थे और जनता की भलाई का एजेंडा कर जो सरकार बनाई थी उस एजेंडा पर काम नहीं कर रहे थे। मानेसर से प्रियंका गांधी और राहुल गांधी से बात करने के बाद सचिन पायलट पुनः लौटने को तैयार हुए। जब वे लौटे तब उनके उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तमगे उखाड़ लिए जा चुके थे जबकि गहलोत की ना सिर्फ साख यथावत रही बल्कि उनकी राजनैतिक जादूगर की छवि भी बरक़रार रही। इस सीट के भविष्य की गणना में बहुत असमंजस दिखाई देता है। 36 कोमों में अपना वर्चस्व दिखा सके, ऐसे नेता का प्रभाव होना जरुरी है। वैसे जीत की गणित में सचिन पायलट ने इस बात को साबित किया था।

टोंक की अभी तक की हार – जीत का इतिहास और भविष्य

1951 से अभी तक आज़ाद भारत में टोंक सीट पर 18 चुनाव लड़े गए हैं। इन चुनावों में भाजपा ने 5 बार जीत दर्ज की है तो वहीं कांग्रेस ने 2018 की जीत मिला कर 9 बार अपना परचम लहराया है। सचिन पायलट की जीत यहाँ की बड़ी जीतों में शामिल भी है। कांग्रेस ने इस सीट पर 18 बार के चुनाव में से 11 बार मुस्लिम प्रत्याशी को ही उम्मीदवारी सौंपी इसकी वजह मुस्लिम बहुलत रही। इस सीट में टोंक शहर में 36 ग्राम पंचायत और 45 वार्ड शामिल है। सचिन पायलट से पहले 1967 में गैर मुस्लिम चेहरा उतरा गया था। यहाँ हिन्दुओं को जोड़ना थोडा मुश्किल समझा जाता रहा है पर सचिन पायलट ने हिन्दू ध्रुवीकरण कर बड़ी जीत हासिल की थी। 2018 के चुनवा की गणना देखी जाए तो उस समय 2 लाख २३ हज़ार कुल मतदाता थे। जिसमें मुस्लिम मतदाता 60 हज़ार के करीब रही थी। SC, ST गुर्जर और मुस्लिम समीरण कांग्रेस के लिए और मुख्यतः सचिन पायलट के लिए बड़ी जीत दर्ज करने में फायदा पंहुचा सकती है।

पिछली बार महावीर प्रसाद जैन ने बीजेपी से बगावत कर दी थी। जो बीजेपी की सबसे बड़ी चूक साबित हुई और इस बगावत ने बीजेपी को बड़ा नुक्सान भी दिया। पिछली बार डैमेज कंट्रोल के नाम पर युनुस खान को भेज देना नाकाफी रहा था। इस बार यहाँ बीजेपी को कांग्रेस से बड़ा दाव खेलना पड़ेगा और आरएसएस या किसी भी और तरीके से चुनाव से पहले ही अपनी ज़मीन बनानी पड़ेगी।

कांग्रेस के पाले में विवाद ज्यादा

राजस्थान में भारत जोड़ो यात्रा के दौसा दौरे के दौरान म जनता के साथ साथ सचिन पायलट ने भी वहां अपना वर्चस्व दिखने में कोई कमी नहीं छोड़ी। जनता के विशाल जन सैलाब ने वहां भारत जोड़ो यात्रा के स्वागत के नारों के साथ साथ सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में भी जीतोड़ नारेबाज़ी की, इससे आलाकमान तक साफ सन्देश पहुँचाना जनता का उद्देश्य माना जा रहा है कि टोंक विधानसभा से पायलट की जीत का रास्ता बहुत आसान हैं और साथ ही आवाम की भावनाएं भी पायलट के साथ है बस पायलट को मुख्यमंत्री पद की दावेदारी इस जीत को और इतिहासिक बना सकती है।

आगामी विधानसभा चुनाव में तय माना जा रहा है सचिन पुनः यहीं से चुनाव लड़ेंगे। देखना ये हैं कि क्या टोंक की जनता की मांगो पर अमल होता है? क्या पायलट मुख्यमंत्री बन पाते हैं या फ़िर अशोक गहलोत अपना वर्चस्व बनायें रखते है और पायलट के हिस्से और इंतज़ार आता है? देखना ये भी होगा कि क्या भाजपा पुनः यूनुस खान को टिकट देती है या कोइ और चेहरा मैदान में उतरती है? क्योंकि पायलट के वहां से लड़ने की रणनीति को अगर सच में टक्कर देनी है तो भाजपा को इस मैदान में अपनी जीत दर्ज करनी होगी। जो हाल स्थिति में तो थोडा मुश्किल नज़र आ रहा है।

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