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Rajya Sabha Election: राजस्थान में प्रमोद तिवारी के लिए खतरा बने सुभाष चंद्रा, जीत के लिए दोनों पक्षों ने कमर कसी
Rajasthan Rajya Sabha Election: राजस्थान चुनाव में सुभाष चंद्रा और प्रमोद तिवारी के बीच टक्कर है।
Rajasthan Rajya Sabha Election: राज्यसभा चुनाव की 57 सीटों पर नामांकन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब सबकी निगाहें चुनाव पर टिकी हैं। कई राज्यों में नामांकन करने वाले प्रत्याशी निर्विरोध चुन लिए जाएंगे तो कुछ राज्यों में दिलचस्प जंग की बिसात बिछ गई है। सबकी निगाहें खासतौर पर राजस्थान पर हैं क्योंकि यहां चार सीटों पर पांच प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे हैं। मीडिया जगत के दिग्गज सुभाष चंद्रा ने भाजपा के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल करके चुनावी जंग को दिलचस्प बना दिया है।
राजस्थान से कांग्रेस ने रणदीप सिंह सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी को चुनाव मैदान में उतारा है। इस सूची में प्रमोद तिवारी का नाम तीसरी वरीयता पर रखा गया है। राजस्थान में कांग्रेस की दो सीट पक्की मानी जा रही है जबकि तीसरी सीट के लिए उसे निर्दलीयों और दूसरे दलों के विधायकों की मदद लेनी होगी। ऐसे में सुभाष चंद्रा प्रमोद तिवारी के चुनाव के लिए ही बड़ा खतरा बनकर उभरे हैं। सुभाष चंद्रा की जीत के लिए भाजपा ने कांग्रेस और निर्दलीयों के बीच सेंधमारी की कोशिशें शुरू कर दी हैं। दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस के तीनों उम्मीदवारों को जिताने की कमान संभाल ली है।
राज्यसभा चुनाव का गणित
राजस्थान के राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने घनश्याम तिवाड़ी को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। इसके साथ ही पार्टी ने निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष चंद्रा का समर्थन करके राज्यसभा चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। यदि राजस्थान विधानसभा में विभिन्न दलों की सियासी ताकत देखी जाए तो कांग्रेस के 108, भाजपा के 71, निर्दलीय 13, आरएलपी के तीन, बीटीपी और माकपा के दो-दो और आरएलडी के पास एक विधायक है।
राजस्थान में राज्यसभा का चुनाव जीतने के लिए 41 मतों की जरूरत है। ऐसी स्थिति में भाजपा के उम्मीदवार घनश्याम तिवाड़ी के लिए प्रथम वरीयता के 40 मतों का उपयोग करने के बाद भाजपा के पास 30 मत बचेंगे। इन 30 मतों को अब सुभाष चंद्रा के लिए ट्रांसफर किया जाएगा।
दोनों पक्षों को अतिरिक्त मतों की दरकार
भाजपा के 30 मतों की मदद के बाद सुभाष चंद्रा को जीत हासिल करने के लिए 11 और मतों की जरूरत होगी। हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी के 3 विधायकों का समर्थन सुभाष चंद्रा को मिलना तय माना जा रहा है। अब सुभाष चंद्रा के लिए असली चुनौती निर्दलीयों, कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों और दूसरे दलों में सेंधमारी की है। उन्हें 8 मतों की व्यवस्था करनी है। दूसरी ओर कांग्रेस के पास 82 मतों के उपयोग के बाद 26 मत बचेंगे और उसे 15 मतों की व्यवस्था करनी है। इस कारण निर्दलीय और दूसरे दलों के विधायक काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं।
दोनों पक्षों की ओर से जीत का दावा
निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष चंद्रा का दावा है कि वे इस बाबत बातचीत करने के बाद ही चुनाव मैदान में उतरे हैं। उन्होंने अपनी जीत पक्की होने का दावा करते हुए कहा कि उन्हें जीत हासिल करने के लिए आवश्यक मत हासिल हो जाएंगे। ऐसे में सुभाष चंद्रा कांग्रेस के तीसरे उम्मीदवार प्रमोद तिवारी के लिए बड़ा खतरा बनते दिख रहे हैं। दूसरी और अशोक गहलोत ने कांग्रेस के तीनों उम्मीदवारों को जीत दिलाने की कमान संभाल ली है। वे विधायकों की नाराजगी दूर करने में जुटे हुए हैं।
गहलोत ने पायलट ग्रुप के 19 विधायकों की बगावत की याद दिलाते हुए कहा कि जब वे उस समय भी विधायकों की एकजुटता से अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहे तो इस बार भी कांग्रेस के तीनों उम्मीदवारों को जिताने में कामयाब रहेंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का कोई भी विधायक बिकने वाला नहीं है और भाजपा के मंसूबे कभी पूरे नहीं होंगे।
बाहरी उम्मीदवारों से कांग्रेस में नाराजगी
राजस्थान के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस ने तीनों बाहरी उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं। रणदीप सिंह सुरजेवाला का हरियाणा से, मुकुल वासनिक का महाराष्ट्र से और प्रमोद तिवारी का उत्तर प्रदेश से ताल्लुक है। तीनों बाहरी उम्मीदवार उतारने के कारण कांग्रेस का एक वर्ग नाराज बताया जा रहा है। कांग्रेस विधायक संयम लोढ़ा इस बाबत नाराजगी भी जता चुके हैं। बाहरी उम्मीदवारों के कारण कांग्रेस में क्रॉस वोटिंग की आशंका पैदा हो गई है। भाजपा और सुभाष चंद्रा की नजर निर्दलीयों के साथ कांग्रेस में सेंधमारी करने पर टिकी हुई है।
गहलोत और सुभाष चंद्रा की सियासी परीक्षा
सुभाष चंद्रा को सियासत का माहिर खिलाड़ी माना जाता है और इसका सबूत वे 2016 के राज्यसभा चुनाव में भी दे चुके हैं। 2016 के राज्यसभा चुनाव में उन्होंने हरियाणा में कांग्रेस उम्मीदवार आरके आनंद को हराने में कामयाबी हासिल की थी। हालांकि उस समय भी सुभाष चंद्रा की जीत काफी मुश्किल मानी जा रही थी मगर सुभाष चंद्रा बाजी जीतने में कामयाब हुए थे।
दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी सियासी दांवपेच के माहिर खिलाड़ी हैं। सचिन पायलट गुड की बगावत के समय भी वे अपनी सरकार बचाने में कामयाब हुए थे। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि वे कांग्रेस के तीसरे उम्मीदवार प्रमोद तिवारी को जिताने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं।