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Father's Day 2022: जानें कैसा होता है पिता-पुत्र का संबंध, किस वजह से दोनों में आने लगती है दूरी

Father's Day 2022: विदेशों में जहां पिता-पुत्र का संबंध दोस्ताना होता है वही भारत में आज भी पिता पुत्र के संबंध में आदर के साथ साथ हिचकिचाहट शर्म डर होता है।

Prachi Tiwari
Written By Prachi Tiwari
Published on: 19 Jun 2022 3:30 PM IST (Updated on: 19 Jun 2022 3:30 PM IST)
Father’s Day
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Father’s Day (photo: social media )

Father's Day 2022: मंजिल दूर और सफर बहुत है, छोटी सी जिंदगी की फिक्र बहुत है,

मार डालती यह दुनिया कब की हमें,

लेकिन पापा के प्यार में असर बहुत है।

जी हां मां बाप के प्यार और आशीर्वाद ही है जो बच्चों पर आने वाली ब्लॉक को भी टाल देते हैं। पिता अपने बच्चों के लिए एक प्रेरणा स्रोत होते हैं इसीलिए पिता की जिम्मेदारी केवल अपने बच्चों के प्रवेश करने तक ही सीमित नहीं होती बल्कि एक ऐसे पिता के बनने की भी होती है जिस के पद चिन्हों पर चलकर उनके बच्चे या तो उनके जैसे या उनसे भी बेहतर बन कर दिखाएं|

विदेशों में जहां पिता-पुत्र का संबंध दोस्ताना होता है वही भारत में आज भी पिता पुत्र के संबंध मैं आदर के साथ साथ हिचकिचाहट, शर्म, डर होता है। एक पुत्र को अगर अपने पिता से अपने स्कूल कॉलेज या कैरियर के संबंध में बात करनी होती है तो वह इसके लिए अपनी मां या बड़ी दीदी का सहारा लेते हैं। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि पिता को अपनी जिम्मेदारी के साथ साथ सख्त रवैया भी अपनाना पड़ता है ताकि उसके बच्चे गलत दिशा में अपने कदम ना भटका ले। चलिए हम समझने की कोशिश करते हैं ऐसी कौन सी वजह है जो पिता-पुत्र के संबंधों में दूरी बनाती है।

1• लड़के रोते नहीं

रोना कमज़ोरी की निशानी नहीं है, लेकिन हमारे डैडियों ने ज़रूर हमें यह महसूस कराया है कि यह कमजोरी की निशानी है। लेकिन इस बात को समझें हर कोई रोता है और रोने और पुरुष होने का कोई संबंध नहीं है।

जब भी आप गिरते तो आपके पिताजी आपको तुरंत रोना-धोना बंद कर इस बात को भूल जाने को कहते थे। उन्हें भी हमेशा इसी तरह से अपनी समस्याओं से निपटना सिखाया गया था ; पापा लोग आपको कठोर बनाने की कोशिश करते रहते हैं|

2• अपनी ख्वाहिश लादना

यूं तो अपने बेटे के लिए एक पिता का कोई सपना देखना और अपने बच्चों के ज़रिए अपने सपनों को जीना कोई गलत बात नहीं। लेकिन कुछ पिता जबरन अपनी हसरतों को अपने बच्चों पर थोपते हैं। इस तरह के रवैये से बेटे के मन में कड़वाहट पैदा होती है। वह इन उम्मीदों पर खरा उतरने की भरपूर कोशिश करता है, लेकिन फिर भी लगता नहीं कि वह अपने पिता को खुश कर पाया है। इस कारण उसे खुद से और अपने पिता से नफरत होने लगती है।

हमें यह समझना होगा कि ज़रूरी नहीं कि बेटे अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए बने हों। अगर कोई अपनी मर्ज़ी से ऐसा करता है, तो ठीक है। लेकिन आपके लिए पहले से ही तय, पत्थर पर खिंची हुई लकीर आपके लिए आरादायक हो ये जरूरी नहीं है। इसलिए हमेशा अपने बच्चे से एक दोस्त की तरह पेश आएं और ये देेखें कि वो क्या करना चाहता है और आगे का क्या प्लान है। कोई भी चीज थोपने की बजाय उसकी मर्जी जानने की कोशिश करें।

3• आगे चलकर तुम्हें घर संभालना है

यह एक अनकहा नियम है ; एक ऐसा निर्देश जिसका पालन किया जाना ही होता है।

एक जवान लड़के के मन के लिए, पहले से ही युवा जीवन को समझना टेढ़ी खीर होता जाता है, उस पर पर इन बातों को भी थोप देना , अरे बाप रे !उस पर, बेटा अगर लड़कों से अलग हटकर किसी फील्ड में करियर बनाने का फैसला करे, तो अक्स़र पिता ही उसे ऐसा करियर अपनाने को कहते हैं जो एक पुरुष के लिए सामाजिक रूप से अच्छाा माना जाता है।

जो भारतीय बच्चेह ऐसा कोई कारोबार अपनाते हैं जिस पर समाज नाक-भौंह सिकोड़ता है, उनके मां-बाप को अपने बच्चोंम का सपोर्ट करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उन्हें इस बात के लिए उकसाया जाता है कि आगे चलकर तुम्हें घर संभालना है इसलिए वही करो जो हम कह रहे हैं|

4• दुनिया ऐसे नहीं चलती

अपने बेटों को दुनियादारी बनाने की प्रक्रिया में, पिता लोग अक्सर ऐसी तरकीबें और पाठ पढ़ाते हैं जो हमेशा अच्छे नहीं हो सकते। पहली बार किसी दुकानदार द्वारा ठगे जाने पर या आपको कोई चपत पड़ने पर समझाने की बजाय ज़्रयादातर आपको लेक्चोर ही सुनाया जाता है।

"दुनिया उस तरह से नहीं चलती जैसा तुम चाहते हो" यह डाइलॉग तो आपको घुट्टी में पिलाया जाता है।

हालांकि उस समय आपको यह बहुत बुरा लगा होगा, लेकिन आपको बालिग बनाया भी तो इसी ने बनाया है, यह अलग बात है कि सबसे बढि़या तरीके से नहीं।

आप अपनी ग़लतियों को छिपाते रहे होंगे ताकि आपको एक और 'प्रवचन' सुनना न पड़े। बाप लोग तो बस आपको स्ट्रीट-स्मार्ट बनाना चाहते हैं ताकि आप वही ग़लतियां न दोहराएं जो उन्होंने की थीं।

5• हमारे जमाने में

झगड़े की की सबसे बड़ी जड़ पीढ़ी-अंतर होता है-हमारे समय और हमारे पिता के समय और परिस्थितियों में काफी फर्क होता है।

मोबाइल फोन या लैपटॉप जैसी कई चीज़ें उन्हेंह आसानी से समझ में नहीं आतीं। हो सकता है उन्हेंस वह म्यूजिक अच्छाह न लगे जो आप सुनते हैं, वे खेल पसंद न आएं जो खेल आप खेलते हैं या जो शो आप देखते हैं या जिस तरह से आप बड़े हो रहे हैं, इसमें कोई बुराई नहीं।

आपको अक्सर यह जाना-माना जुमला जरूर सुनाया गया होगा, "हमारे ज़माने में तो हम ऐसा करते थे," या "हमारे जमाने में हम बड़ों से जुबान नहीं लड़ाते थे।"

बेटों को बस यह समझने की ज़रूरत है कि उनके पिता अपटूडेट होने की कोशिश कर रहे हैं, वह इस बारे में सोचते भी नहीं हैं कि आज के समय में उनका बेटा उन्हें कैसे आंकता है। इस तरह पहले ही से नाजुक रिश्ते में मौजूद तनाव को बढ़ाता है।

6• नियमों का पालन सख्ती से करवाना

भारतीय पिता एक कदम आगे रहते हुए, नियमों को बहुत सख्तीे से लागू करते हैं ताकि थोड़ा भी मज़ा भी न रहे।

बहुत कड़क नियम, व्यक्ति को दबा कर रखते हैं। ज़रूरत से ज़्जयादा नियम होने से बच्चेम में विद्रोह पैदा होता है, खासकर अगर शारीरिक हिंसा शामिल हो तो। उन पर जबरन कंट्रोल रखने से उनके मन में अपने पिता के प्रति और भी अधिक विद्रोह पैदा होता है।

थप्पड़ मारना, पीटना या अपमान करना किसी काम के नहीं होते, इन सबसे छोटे बच्चेअ को सिर्फ गुस्सा ही आता है। हो सकता है वह अपने इस गुस्सेो का इस्तेकमाल दूसरों पर करने लग जाए।

यह मनमानी की लड़ाई बन जाती है, एक तरफ बेटा ज़्।यादा आज़ादी चाहता है तो दूसरी ओर बाप अपने तरीकों से बेटे को दोष दिखाने के और अधिक प्रयास कर रहा होता है।

भारतीय पिताओं के अहंकार का कोई मुकाबला नहीं है, "बत्तियां तो तुम्हा रे पापा बंद करेंगे" या "पापा तो ATM ही हैं।" ऐसी बातें सुनने में तो मजे़दार होती हैं लेकिन आपको झुंझलाती भी हैं|

7• अच्छाई में भी बुराई ढूंढना

शर्मा जी का बेटा 100 नंबर लाया !

बेटे ने जो हासिल किया है, उसकी तारीफ करने की बजाय, ज्यादातर पिता इस बात पर ज़ोर देते हैं कि उसे अभी और कितनी मेहनत करनी है। भविष्य के लिहाज़ से यह एक अच्छी बात तो हो सकती है, लेकिन तारीफ की चाह अधूरी रह जाने पर, बेटे में क्रोध और निराशा की भावना पैदा होती है।

वह सोचने लगता है कि वह अपने पिता की शाबाशी पाने में हमेशा असफल रहता है। अपने बेटे के लिए पिता द्वारा बनाया गया पैमाना उनके रिश्ते पर ब्रेक लगाता है।

घाव पर नमक की तरह काम करते हुए, भारतीय पिताओं को अपने बेटों की तुलना उनके आसपास के लोगों से करने की आदत होती है। "अगर राहुल को 98 मिले तो तुम्हें 100 क्यों नहीं मिले ? हालाँकि वे सिर्फ आपको खुद से बेहतर बनाने के लिए हल्काह-सा ज़ोर दे रहे हैं, लेकिन आपकी कोशिशों की तारीफ न कर वे आपको दुखी ही कर रहे होते हैं।

तुलना करना किसी को भी बेहतर नहीं बनाता, इससे तो आपको खुद पर ही शक होने लगता है।

कुछ पिता अनजाने में अपने बेटों के प्रति कठोर हो जाते हैं, फिर चाहे मामला उनके हुलिये या उनकी आदतों पर टोकाटाकी का हो। इस सबसे बेटे के मन में हीन भावना पैदा होती है।

ऐसे लाएं रिश्ते में प्यार

पिता को यह समझने की ज़रूरत है कि उनके शब्दों का उनके बेटों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कभी-कभार उन्हें थोड़ा सा नर्म भी होना चाहिए ताकि वे अपने बेटों को दिखा सकें कि उन्हें भी मजा कर सकते है। उन्हें बेटे को छूट देनी चाहिए, यह दोनों के लिए फायदेमंद होता है।

बेटे को भी यह समझने की ज़रूरत है कि उस शिकायती चेहरे और रूल-लंविंग चेहरे के पीछे एक ऐसा व्यक्ति छुपा होता है जो आपके लिए बेस्ट चाहता है और आपसे प्यार करता है। उनके द्वारा दिखाए जाने वाले रास्ते हमेशा सही नहीं हो सकते हैं, लेकिन बेटे के नाते इसे समझना आपकी जिम्मेदारी बनती है।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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