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पैरेंट्स की इन आदतों से बच्चों का नहीं होता है विकास, होते हैं डिप्रेशन के शिकार

बच्चों के दिमाग पर घर के माहौल का असर पड़ता है। इसके लिए माता-पिता को विशेष ध्यान रखना चाहिए। माता-पिता और घर के बाकी सदस्यों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह कोई भी ऐसा काम न करें, जिसका बुरा असर बच्चों पर पड़े। 

suman
Published on: 1 Feb 2020 2:44 AM GMT
पैरेंट्स की इन आदतों से बच्चों का नहीं होता है विकास, होते हैं डिप्रेशन के शिकार
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जयपुर: बच्चों के दिमाग पर घर के माहौल का असर पड़ता है। इसके लिए माता-पिता को विशेष ध्यान रखना चाहिए। माता-पिता और घर के बाकी सदस्यों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह कोई भी ऐसा काम न करें, जिसका बुरा असर बच्चों पर पड़े। इनमें से एक है हिंसा,हिंसा किसी भी इंसान को अंदर से झकझोर सकती है।

*ऐसे बच्चे जीवन की सही दिशा से भटक कर बिगड़ रहे हैं। जो बच्चे हाथा-पाई और वाद-विवाद होते देखते हैं, उन्हें एंग्जायटी का अनुभव करते हैं, जो बाद में गुस्सा, उदासी या डर में बदल जाती है। अगर उस समय वे ज्यादा छोटे हैं, तो मनोवैज्ञानिक असर और भी ज्यादा बुरे होते हैं। आईये जानते है कि माता-पिता के झगड़े का बच्चों पर क्या असर पड़ता है।

लेकिन लड़ाई-झगड़ों का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है। हिंसा के कारण बच्चे को गहरा मानसिक आघात पहुंचता है। वेब वर्ल्ड की दुनिया में बच्चे आसानी से किसी भी हिंसक सामाग्री तक पहुंच जाते हैं। जैसे कहीं कोई भी हिंसा होती है इंटरनेट या न्यूज के माध्यम से बच्चों को पता चल जाता है। इस तरह की हिंसा हो या घरेलू हिंसा इसका बच्चों के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है।

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*हाल में हुई एक रिसर्च में इस बात की पुष्टि की गई है कि जो बच्चे ज्यादा हिंसा देखते हैं, करते हैं या शिकार होते हैं उन बच्चों में अवसाद, गुस्सा और तनाव अन्य बच्चों की तुलना में ज्यादा होता है। साथ ही इसके अलावा इस तरह के बच्चों में दूसरे बच्चों के प्रति भाईचारे की भावना भी कम होती है।

*ऐसे में पैरेंट्स की हमेशा यह कोशिश रहनी चाहिए कि किसी भी हिंसात्मक घटना को समझने और उसका सही तरह से सामना करने में बच्चों की मानसिक तौर पर मदद करें। साथ ही बच्चों से बात करें और उनकी बात को सुनने-समझने की कोशिश करें। ज्यादातर पैरेंट्स अपने बच्चों की बात बचपन में तो सुनते हैं, लेकिन किशोरावस्था में ध्यान नहीं देते हैं, जबकि किशोरावस्था में भी बच्चों को मानसिक तौर पर सहयोग की जरूरत होती है।

*जब स्थिति तनावपूर्ण होती है, अगर आपकी आवाज़ में गुस्सा होता है और अगर आपका चेहरा आक्रामक है तो वे उसे भी महसूस कर सकते हैं।

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*झगड़ा कितना मामूली है, एक तनावपूर्ण पारिवारिक माहौल में पलने-बढ़ने से बच्चे में गहरे भावनात्मक जख्म पैदा हो सकते हैं। क्योंकि ऐसे माहौल में चिंता और आत्म-विश्वास में कमी जैसी समस्याओं को बढ़ावा मिलता है। एक शांत माहौल, जहां बड़ों के झगड़ों में बच्चे शामिल नहीं होते हैं, उनके अच्छे विकास में मदद करता है।

* बच्चे अभी इन झगड़ों की वजह नहीं समझ पाते हैं। उनकी ईगोसेन्ट्रिक सोच की वजह से उन्हें लगता है, वे ही लड़ाई की जड़ हैं। नतीजा यह होता है कि वे अपने मम्मी-पापा के आपसी झगड़े के लिए खुद को दोषी मानने लगते हैं।

*हर बच्चे के रिएक्शन अलग-अलग होते हैं। कुछ ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे कोई समस्या ही नहीं है। लेकिन कुछ इतनी बुरी तरह सहम जाते हैं जैसे कुछ डरावना हो रहा है। जब तक उन्हें सुरक्षा का अहसास नहीं होता तब तक वे खुद को दुनिया से अलग-थलग कर लेते हैं।

*आम तौर पर इस तरह की लड़ाई एक अस्थिर परिवार माहौल पैदा करती है। इस तरह के माहौल में बच्चा समझने लगता है कि छोटी-छोटी चीजें बहुत बड़ी मुसीबत पैदा कर सकती है। इस कारण बच्चे को लग सकता है कि उसे ही स्थिति को काबू में करना पड़ेगा। इतना ही नहीं, कोई समस्या न हो इसके लिए वे अपनी असली जरूरतें छिपाने लगते हैं।

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