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अब नई लीक पर चला संघ
क्या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कोई नई राजनीतिक लाइन तय करना चाह रहा है? क्या संघ भाजपा के लिए किसी नई पृष्ठभूमि का निर्माण कर रहा है? क्या अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत के लिए संघ ठीक उलट रणनीति पर काम कर रहा है? इस तरह के कई सवाल प्रणब मुखर्जी के संघ के दीक्षांत भाषण में उठे और इसके जवाब भी मिले। यह भी साफ हो गया कि अब संघ परिवार और गांधी नेहरू परिवार आमने-सामने हैं। संघ उस राजनीति को साधने लगा है जहां कांग्रेस गांधी-नेहरू परिवार से अलग दिखने की कोशिश करने लगे। इतिहास साक्षी है कि नरेंद्र मोदी के आर्विभाव से पहले संघ परिवार और नेहरू परिवार कभी नहीं टकराए। अटल बिहारी वाजपेयी ने तो इंदिरा गांधी को दुर्गा तक कहा। संघ ने संजय गांधी के नसबंदी कार्यक्रम का समर्थन किया। राजीव गांधी को ‘मिस्टर क्लीन‘ कहा। आपातकाल के बाद जब जनता पार्टी शासन में आई तो उसके बाद उस समय के सर संघ संचालक भाऊराव देवरस जी ने इंदिरा गांधी पर रहम करते हुए कहा था, ‘भूल जाइए और माफ कीजिए।‘
आपातकाल में संघ राजनीतिक रूप से सक्रिय हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और डा. मुरली मनोहर जोशी ने कभी गांधी परिवार पर सीधा निशाना नहीं साधा था। पं. जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू के गुरु अखंडानंद थे। वो रामकृष्ण मिशन से जुड़े थे। गुरु गोलवरकर से भी उनकी काफी निकटता थी। इन्हीं रिश्तों के वजह से संघ का रुख जवाहर लाल नेहरू के प्रति नरम था और नेहरू भी संघ के प्रति ‘साफ्ट‘ थे। जबकि सरदार वल्लभ भाई पटेल का रुख कठोर था। लेकिन आज स्वयं सेवक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेहरू गांधी परिवार पर सीधे हमलावर हैं। सोनिया और राहुल पर उनके फितरे और तंज आम हैं। भाजपा कोई भी वैचारिक काम बिना संघ के समर्थन के नहीं करती। क्योंकि संघ के लिए सरकार नहीं, विचार महत्वपूर्ण हैं। भाजपा अगर उसके विचार को दर-किनार करने की कोशिश करेगी तो संघ के लिए उसे सबक देना अनिवार्य हो जाएगा। शायद यही वजह है कि जब भाजपा ने गांधीवादी समाजवाद की डगर पकड़ी तब 2004 में संघ ने भाजपा से मुंह मोड़ा और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के ‘शाइनिंग इंडिया कैम्पेन‘ ने जमीन पकड़ ली।
प्रणब मुखर्जी को संघ के दीक्षांत कार्यक्रम में बुलाना, उसकी इस रणनीति का खुलासा है कि कांग्रेस नेहरू गांधी परिवार से ऊपर उठकर सोचें तो भी उसकी प्रासंगिकता बनी रहेगी। तभी तो दीक्षांत समारोह में प्रणब द्वारा नेहरू गांधी के दर्शन का पाठ, नेहरू की ‘डिस्कवरी आॅफ इंडिया‘ से इतिहास का सबक, नेहरू के नेशनलिज्म का पाठ, विविधिता के उत्सव मनाने, सहमत-असहमत होने और सेक्युलिरिज्म को आस्था बताने, हिंदुत्व को सांप्रदायिकता के दायरे से बाहर निकालने की बात अनसुनी नहीं रही। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कबीर की भूमिका निभाई। कांग्रेस को यह समझाया कि संघ से घृणा ठीक नहीं है। संघ को बताया कि नेहरू का योगदान कम नहीं है। अपने भाषण में उदार लोकतांत्रिक, प्रगतिशील, संविधान सम्मत, मानवतावादी भारत की बात, बहुलतावाद, सहिष्णुता, बहुभाषिकता तथा मिली-जुली संस्कृति को देश की आत्मा बताना भी स्वीकार किया गया। राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर प्रणब दा जो बोल रहे थे वह खांटी संघी नहीं था, वह कांग्रेसी भी था। देश के इतिहास और संस्कृति तथा उसकी पहचान पर प्रणब मुखर्जी बोलते समय ‘डिस्कवरी आॅफ इंडिया‘ वाले भारत का जिक्र करते दिखे। 12 से ज्यादा भाषा, 16 सौ से ज्यादे बोली और सात बड़े धर्मों वाले देश को लेकर सिटीजन मुखर्जी जो दीक्षांत उद्बोधन दे रहे थे उसने उनके संघ के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर अनंत आशंकाओं में घिरी कांग्रेस को निःसंदेह राहत दी। प्रणब मुखर्जी ने अपना ट्वीटर अकाउंट ‘सिटीजन मुखर्जी‘ के नाम से बनाया है।
संघ के मंच पर जो अतिथि विराजमान थे उनमें से अधिकांश पश्चिम बंगाल के नामचीन परिवारों के लोग थे। प्रणब मुखर्जी के अलावा सुभाष चंद्र बोस के परिवार के लोगों को भी बुलाया गया था। केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु सरीखे कुछ गिने-चुने ही ऐसे राज्य बचे हैं जो भाजपा की जद से बाहर हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने भाजपा को कांग्रेस सरीखी राष्ट्रीय पार्टी तो बना ही दिया है। मोदी और शाह के काल में भाजपा ने देश के हर इलाकों में अपना पार्टी कार्यालय बनाकर अपनी राष्ट्रीय उपस्थिति दर्ज करा दी है। नरेंद्र मोदी ने संघ की लाइन से उलट गांधी नेहरू परिवार पर हमला करके यह साबित कर दिया कि इस रणनीति और नारे में कांग्रेस के समानांतर खड़े होने की शक्ति है। डा. राममनोहर लोहिया और पं. दीनदयाल उपाध्याय की संघ शक्ति भी केवल कांग्रेस को अपदस्थ कर पाई थी। गैर कांग्रेसवाद का विकल्प तैयार कर पाई थी। लेकिन इस विकल्प में जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी सिर्फ एक ‘टूल‘ थे। इसमें और भी कई पार्टियों का माटी-गारा लगा था। लेकिन नरेंद्र मोदी ने अकेले के बूते कांग्रेस के विकल्प का सपना साकार कर दिखाया।
कांग्रेस हर तबके की पार्टी थी। सभी धर्म और संप्रदाय की पार्टी थी। आजादी के बाद कांग्रेस की जो मान्यता थी वह मोदी-शाह कालखंड में भी भाजपा को हासिल नहीं हो पाई है। लगता है संघ की कोशिश इसे हासिल करना और भाजपा को गांव गली की पार्टी बनाना है। तभी तो उसने प्रणब मुखर्जी से महात्मा गांधी, सरदार पटेल और डा. भीमराव अंबेडकर की राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ा। गांधी को याद करते हुए प्रणब मुखर्जी से सुना कि भारत का राष्ट्रवाद आक्रामक और विभेदकारी नहीं हो सकता। वह समन्वय पर ही चल सकता है। धर्म, नफरत और भेदभाव के आधार पर राष्ट्र की पहचान गढ़ने की कोशिश में हमारे राष्ट्र की मूलभावना कमजोर होगी। संघ यह जानता है कि किसी भी गाड़ी का ‘डेंट‘ तभी ठीक हो सकता है जब उसे अंदर से ठीक किया जाए। अंदर घुसने के लिए जरूरी है कि प्रणब मुखर्जी सरीखे कांग्रेस के लोगों तक पहुंच बनाई जाए। संघ का प्राथमिक सिद्धांत है कि हर दिन ऐसे नए लोगों से संपर्क करें जो तो आज या तो स्वयंसेवक हैं या तो कल स्वयंसेवक बन सकते हों। ऐसे व्यक्तियों और व्यक्तित्वों से लगातार संपर्क किया जाए। संघ की मान्यता है कि संपूर्ण समाज के सभी लोग स्वयं सेवक हैं। इनमें कुछ आज के हैं, कुछ आने वाले कल के।
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