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प्रतिशोध की साक्षी
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय। धर्म में हर संत ने इसकी वकालत की है। कोई भी समाज अथवा परिवार आपसी प्रेम के बिना चल नहीं सकता। बिरले ही नौजवान ऐसे होंगे जिनकी जिंदगी में इस ढाई आखर के संयोग या वियोग का अहसास न हुआ हो। प्रेम को लेकर अनंत कथाएं हैं। प्रेम के अनंत आयाम हैं। अनंत रूप हैं। प्रेम जोड़ता है। प्रेम में जब-जब तोड़ने या टूटने की स्थिति आती है। तब तब वही उत्सर्ग करता है। टूटने-तोड़ने के दुख का दंश खुद सहना पसंद करता है। लेकिन बरेली के विधायक राजेश मिश्र की बेटी साक्षी के प्रेम ने प्रेम के सभी मानक पलट कर रख दिये। उनके प्रेम ने खुद दंश सहने की जगह माता-पिता को वेदना दे डाली है। पगड़ी उछाल दी। आमतौर पर यह कहना बड़ा आसान लग सकता है कि साक्षी मिश्रा बालिग हैं। नतीजतन, उन्हें अपना जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता है। जीवन साथी चुन लेने के बाद जीवन की सुरक्षा उनका मौलिक अधिकार है। इसीलिए उन्होंने सोशल मीडिया पर अपना और अपने पति अजितेश का खुद रिकार्ड किये गये दो वीडियो पोस्ट किया। दोनों वीडियो की भाषा प्रेम नहीं गुस्सा बयान कर रही है। वह भी मां-बाप के प्रति।
सोशल मीडिया पर डाले गए इस वीडियो का असर सकारात्मक हुआ। राजेश मिश्र ने पत्र लिखकर यह जता दिया कि उनकी बेटी बालिग है, जो चाहे करे। लेकिन दुखद पहलू यह है कि मीडिया ने सोशल मीडिया पर वायरल इस वीडियो को जब हथियाया तब मीडिया के सभी मानदंड टूट गए। एक निजी चैनल ने तो अपने स्टूडियो में साक्षी के ससुराल वालों को इकट्ठा कर लिया। फोन से उसके आहत पिता राजेश से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ भी की। पुलिस अधीक्षक को डीजीपी की तर्ज पर सुरक्षा देने के निर्देश दिये। जाति के बंधन इस बहस में तार-तार किये गये। कहा गया विवाह के विरोध की वजह अजितेश का दलित होना है। हालांकि सोशल मीडिया का रोल ठीक था। चैनल व उसके एंकर को इतना ट्रोल और अनसब्सक्राइब किया गया कि उन्हें तौबा करना पड़ा। किसी को ट्रोल करना अच्छा नहीं है। अच्छा नहीं कहा जाना चाहिए। लेकिन जो लोग इस प्रेम विवाह के पक्ष में खड़े हैं उन्हें पक्षधरता से पहले इस सवाल का उत्तर तलाश लेना चाहिए कि क्या राजेश के स्तर का व्यक्ति अपनी बेटी के लिए ऐसा लड़का ढूंढता जिसकी उंगलियां कटी हों, जिस पर कर्ज हो, जिसकी दहेज की मांग के चलते शादी टूट चुकी हो, सगाई टूटने वाली लड़की के पिता उस पर सात लाख से अधिक खर्च करने की बात कहते हों, जो कच्चा पक्का-नशा करता हो, जो लड़की से बहुत ज्यादा उम्र का हो, जिसके खिलाफ छेड़खानी के तमाम मामले हों। यदि हां, तो साक्षी के प्रेम विवाह की पक्षधरता जायज करार दी जा सकती है। यदि नहीं, तो बालिग होने की ओट में जीवन को अंधेरी सुरंग में डालने के फैसले का कोई भी गार्जियन विरोध करेगा यह मान लेना चाहिए।
अनुसूचित जाति से कोई जातीय घृणा नहीं होनी चाहिए। लेकिन कल तक बरेली में अपनी गाड़ी पर अभि ठाकुर लिखकर घूमने वाले अजितेश को भी तो सोचना चाहिए कि आखिर उसे खुद को ठाकुर बताने की जरूरत क्यों आन पड़ी। यही नहीं, रोटी बेटी के रिश्तों के लिए भी अगर प्रगतिशीलता की दुहाई देते हुए धर्म और जाति के बंधन तोड़ने की बात की जाती हो तो यह वैयक्तिक स्वतंत्रता में अनावश्यक हस्तक्षेप कहा जाएगा। पल-पल अपने बयान, अपने स्टैंड और बहाने बदल रही साक्षी जो भी कह रही है उसमें प्रेम नहीं प्रतिशोध झलकता है। उसने अपने एक वीडियो में कहा है कि उसके पिता उसे बाहर पढ़ने जाने देना नहीं चाहते थे। हालांकि वह राजस्थान के एक अच्छे कॉलेज में तालीम ले रही है। जहां मोबाइल एलाऊ नहीं है। फिर भी उसे खरीदकर दिया गया। साक्षी यह भी कह रही है कि पढाई के दौरान उसके पिता उसकी शादी किसी अफसर से करना चाहते थे। पढ़ाई साक्षी के लिए इतना बड़ा विषय थी कि उसे इन सपनों के पूरा होने की उम्मीद अजितेश में दिखने लगी! कुल मिलाकर साक्षी अपने माता-पिता को जमाने की नजर में नफरत का किरदार बना रही है, जलील कर रही है। विलेन साबित करने के किस्से गढ़ रही है। उसकी लानत की मार झेलते झेलते मां बीमार हो गई है। पिता को आत्महत्या की बात कहनी पड़ रही है। साक्षी के बयान और स्टैंड बताते हैं कि जिसमें पुराने रिश्तों को बरकरार रखने की कूव्वत नहीं है, उससे भावी रिश्तों में ईमानदारी की उम्मीद रखना बेमानी है।
जिसे साक्षी प्रेम जता रही हैं, वह वासना जनित लिप्सा है, जो देह का आलंबन पाने के कुछ ही दिनों बाद दमतोड़ देती है। क्योंकि प्रेम होता तो 23 साल तक जिस मां-बा पके साये में रही, भाई-बहन के साथ रही उनके बारे में भी साक्षी सोचती। साक्षी का फैसला लव जेहाद का एक नया वर्जन है। यह पूरी घटना बता रही है कि देश किस दिशा में जा रहा है। समाज कहां जा रहा है। लड़कियों के कोमल मन को किस तरह कुछ मनचले लड़के अपने सपनों को पूरा करने का जरिया बनाते हैं। इस घटना ने साक्षी और अजितेश की जितनी कलई खोली उससे अधिक कलई मीडिया की खोल के रख दी है। क्योंकि मीडिया पीड़ित पिता से ही सवाल पूछता रहा। पहले वह साक्षी और अजितेश के पक्ष में फ्रंट खोलकर खड़ा हो गया। हालांकि बाद में सोशल मीडिया के ट्रेंड को देखते हुए उसे अपने पैर पीछे खींचने पड़े। सोशल मीडिया पर लगभग 95 फीसदी लो साक्षी और अजितेश के खिलाफ हैं। यही वजह है कि साक्षी को 24 घंटे के अंदर अपना ट्वीटर एकाउंट बंद करना पड़ा।
कुछ महीने पहले 19 साल की राखी दत्ता ने अपने पिता को अपना 65 फीसदी लीवर देकर जीवन दिया। लेकिन इस खबर को मीडिया की सुर्खियां नहीं मिल पाईं। क्योंकि इसमें न तो झगड़ा है, न लस्ट है, न सेक्स है और न किसी परिवार की रुसवाई। लेकिन सिद्धू के इस्तीफे को एक महीने बाद ब्रेकिंग न्यूज की तरह परोसने वाली मीडिया के लिए उस प्यार में ईमानदार कोशिश दिखने लगी जिसमें मीडिया को नहीं सोशल मीडिया को एप्रोच किया गया था। नए रिश्तों के प्रति साक्षी की प्रतिबद्धता और प्रेम की तारीफ तभी की जानी चाहिए जब वह अपने पुराने रिश्तों को भी उसी तरह सहेज कर उसी प्रतिबद्धता के साथ रखती। पुराने रिश्तों को शर्मसार करके नए रिश्ते बनाने की इजाजत कानून भले दे देता हो। लेकिन समाज कानून से कई मायनों में ज्यादा बड़ा है क्योंकि जीवन की जरूरतें समाज से पूरी होती हैं। कानून से नहीं। जो भी लोग साक्षी के पक्ष में हैं, उन्हें अपनी बेटी के लिए अजितेश के गुण धर्म वाले लड़के के चुनाव की कल्पना करनी चाहिए। शायद वे इस कल्पना मात्र से सिहर जाएं। प्रेम ने यहां पुराने रिश्तों को तोड़ दिया है इसलिए यह ढाई आखर वाला नहीं कहा जा सकता।