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जयंती विशेष: ललित निबंध में विशिष्ट योगदान के लिए जाने जाते हैं कुबेरनाथ राय

भारतीय साहित्य में अपने विशेष योगदान के लिए जाने वाले कुबेरनाथ राय का जन्म 26 मार्च 1933 में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के मतसाँ ग्राम में हुआ

Apoorva chandel
Published on: 26 March 2021 8:50 AM GMT
ललित निबंध में विशिष्ट योगदान के लिए जाने जाते हैं कुबेरनाथ राय
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कुबेरनाथ राय(सोशल मीडिया)

कुबेरनाथ राय को ललित निबंध में विशेष योगदान के लिए जाना जाता है। वह एक ऐसे रचनाकार है, जिन्होंने भारतीय साहित्य में इस विधा को स्थापित करने में बेहद अग्रणी भूमिका निभाई है। उनकी रचनाओं में संस्कृति के साथ-साथ इतिहास का नवीनतम बोध भी स्पष्ट दिखाई देता है। आइये जानते है कुबेरनाथ राय और उनकी रचनाओं के बारें में।

जन्म और शिक्षा

भारतीय साहित्य में अपने विशेष योगदान के लिए जाने वाले कुबेरनाथ राय का जन्म 26 मार्च 1933 में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के मतसाँ ग्राम में हुआ। उनकी माता का नाम स्व॰ लक्ष्मी राय, जो एक ग्रहणी और पिता का नाम स्व॰ बैकुण्ठ नारायण राय किसान। कुबेरनाथ से कई विद्यालयों से शिक्षा प्राप्त की जिसमें क्विंस कालज, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी और कलकत्ता विश्वविद्यालय का नाम शामिल है।

कुबेरनाथ राय अपने माता-पिता की सबसे बड़ी संतान रहे उनकी तीन बहने और दो भाई है। जब कुबेरनाथ राय 12-13 आयु के रहें होंगे तब उनका विवाह महारानी देवी के साथ कर दिया गया। जिसके बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और 1958 में उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की। अपने सेवाकाल के शुरुआत में उन्होंने विक्रम विद्यालय, कोलकाता में अध्यापन किया।

रचनायें-

कुबेरनाथ राय के एकमात्र कविता संग्रह 'कंथामणि' को छोड़ दिया जाए तो उन्होंने हिंदी साहित्य की सिर्फ एक विधा 'निबंध' को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। प्रिया नीलकंठी', 'गंधमादन', 'पर्णमुकुट', 'मणिपुतुल के नाम', 'महाकवि की तर्जनी', 'राम कथा:बीज और विस्तार', 'रस आखेटक', 'निषाद बाँसुरी', 'विषाद योग', 'माया बीच', 'मन पवन की नौका', 'दृष्टि अभिसार', 'त्रेता का वृहत्साम' आदि उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियां हैं।

पहला निबंध

उनका पहला ललित निबंध 'हेमंत की संध्या' 15 मार्च 1964 के 'धर्मयुग' के अंक में छपा। जो उनकी पहली कृति 'प्रिया नीलकंठी' का पहला निबंध है। उनका यह निबन्ध काफी चर्चित रहा। हेमंत की संध्या के प्रकाशन से लेकर उन्होंने अपने देहातवास तक करीब 200-250 निबन्ध लिखे। श्रेष्ठ साहित्यिक ग्रंथ 'रामचरितमानस' और 'महाभारत' में उनकी विशेष रुचि रही है। वह अपने समूचे रचना-कर्म को 5 खंडों में बांटते- पहला भारतीय साहित्य, दूसरा गंगातीरी लोक-जीवन और आर्येतर भारत, तीसरा राम-कथा, चौथा गांधी-दर्शन और पांचवां आधुनिक विश्व- चिंतन की चर्चा।

प्रमुख पुरस्कार और उपलब्धि

- प्रथम कृति 'प्रिया नीलकंठी' पर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सम्मान 1971

- 'पत्र मणिपुतुल के नाम' के लिए अभयानन्द पुरस्कार (1982)

- 'किरात नदी में चन्द्रमधु' पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार 1987

- 'कामधेनु' पर मूर्तिदेवी पुरस्कार, 1992

- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण सम्मान 1995

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