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केरल चुनाव के बाद राहुल गांधी का नया राजनीतिक भविष्य होगा तय
केरल में छह अप्रैल को होने वाले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी प्रतिष्ठा राहुल गांधी की जुड़ी हुई है।
श्रीधर अग्निहोत्री
नई दिल्ली: केरल में छह अप्रैल को होने वाले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी प्रतिष्ठा राहुल गांधी की जुडी हुई है। जहां कांग्रेस के सामने 'करो या मरो' की स्थिति है वहीं राहुल गांधी के सामने भी खुद को साबित करने की बडी चुनौती है। राहुल गांधी केरल से सांसद है इसलिए वह अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक समय केरल में ही दे रहे हैं।
राहुल गांधी की प्रतिष्ठा दांव पर
केरल विधानसभा चुनाव की 140 सीटों पर लेफ्ट के अगुवाई वाले एलडीएफ और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ के बीच मुकाबला होने जा रहा है लेकिन इस सबके बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव मेें कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीद केरल और असम से ही है। लिहाजा, राहुल गांधी प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। पार्टी केरल चुनाव में जीत दर्ज करती है, तो इसका पूरा श्रेय राहुल गांधी को मिलेगा।
चुनाव प्रचार में राहुल गांधी के साथ पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा सहित तमाम बड़े नेता हिस्सा ले रहे हैं। वहीं, पार्टी बूथ मैनेजमेंट पर भी पूरा ध्यान दे रही है। पर कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता उन नेताओं की है जो कांग्रेस छोडकर चले गए इनमें इनमें वरिष्ठ नेता पीसी चाको, प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष ललिता सुभाष और प्रदेश उपाध्यक्ष केसी रोजाकुट्टी सहित कई नेता शामिल हैं।
एलडीएफ का पलड़ा भारी
केरल की राजनीतिक जमीन को देखा जाए तो यहां पर केरल में 1980 के बाद किसी राजनीतिक दल या गठबंधन ने दोबारा जीत दर्ज नहीं की है। पर इस चुनाव में सत्तारुढ़ एलडीएफ का पलड़ा भारी दिख रहा है। वहीं भाजपा भी इस विधानसभा चुनाव में कुछ उम्मीद के साथ उतरी है उसे लग रहा है कि इस बार प्रधानमंत्री मोदी का जादू यहां पर जरूर चल सकेगा। प्र्रधानमंत्री मोदी यहां पर स्थानीय मुद्दो के साथ ईसाई समुदाय पर टिकी हुई है जबकि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के कई पदाधिकारी यहां पर पिछले कई महीनों से डेरा जमाए हुए है।
यहां हिंदुत्व की जमीन तब से तैयार की जा रही है जब भाजपा का जन्म भी नहीं हुआ था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केरल में एक जमीन तैयार कर रहा है। जहां भगवा झंडा लहराया जा सके, लेकिन उसे आज तक सफलता नहीं मिली है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की केरल के प्रति गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां पर अन्य राज्यों से कहीं ज्यादा लगभग 4,500 शाखांए हर रोज लगाती हैं। .इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि राज्य में लगभग 45 फीसदी आबादी गैर हिंदू है।
इसके साथ 55 फिसदी हिंदू आबादी कई विचारधाराओं में बटी हुई है। दूसरा कारण यह है कि केरल में दशकों से वामपंथ की विचारधारा फलती फूलती रही है जिसके कारण कई बार उसके हाथ में सत्ता आती रही है। यहां पर हिन्दूओं की संख्या तो खूब है पर वह अधिकतर वामपंथी विचारधारा से प्रभावित हैं जिसके कारण हर चुनाव में भाजपा को इसका नुकसान उठाना पडता है।