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जब बुद्धदेव भट्टाचार्य को अपने इस बयान के लिए जनता से मांगनी पड़ी माफी...
2011 में जब विधानसभा चुनाव के नतीजे आये तो टीएमसी ने सीपीएम का सूपड़ा ही साफ कर दिया और राज्य से 34 साल के सीपीएम राज को खत्म कर दिया।
कोलकाता: 1 मार्च को बुद्धदेव भट्टाचार्य का जन्मदिन है। वह तीन बार पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। उनके बारें में कहा जाता है कि अगर वो राजनेता नहीं होते तो एक सफल लेखक होते।
बचपन में इन्हें बैलून उड़ाना बेहद पसंद था। मायकोवस्की की एक कविता से प्रेरित होकर बुद्धदेव भट्टाचार्य राजनीति में आ गए।
उनके जीवन में एक ऐसा पल भी आया जब बुद्धदेव भट्टाचार्य को अपने एक बयान के लिए जनता से माफी मांगनी पड़ी। आइए आज हम आपको उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताते हैं।
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जब बुद्धदेव भट्टाचार्य को अपने इस बयान के लिए जनता से मांगनी पड़ी माफी...(फोटो:सोशल मीडिया)
1977 में कोलकाता के कोसीपुर से पहली बार बने विधायक
बुद्धदेव भट्टाचार्य का जन्म 1 मार्च 1944 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था। उन्होंने शुरूआती शिक्षा शैलेंद्र सरकार स्कूल में प्राप्त की थी। फिर प्रेजिडेंसी कॉलेज में दाखिला ले लिया। यहां से बंगाली में बीए ऑनर्स कम्प्लीट किया था। वह बचपन से क्रांतिकारी स्वभाव के थे।
वह 1966 में सीपीएम में शामिल हो गये। वर्ष 1977 में कोलकाता के कोसीपुर से पहली बार विधायक बने। ये वहीं वक्त था जव ज्योति बसु की अगुवाई में बंगाल में सीपीएम ने सरकार बनाई थीं। 1982 के चुनाव में भट्टाचार्य कोसीपुर से मैदान में खड़े हुए लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। कांग्रेस के प्रफुल्ल कांति घोष से वे हार गए थे।
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जब बुद्धदेव भट्टाचार्य को अपने इस बयान के लिए जनता से मांगनी पड़ी माफी...(फोटो:सोशल मीडिया)
ऐसे बने बंगाल के सीएम
चुनाव में हार के बाद भी वे निराश नहीं हुए। ठीक पांच वर्ष बाद उन्होंने फिर चुनाव लड़ा और जादवपुर सीट से विजयी हुए। वर्ष 1987 से 1996 और 1996 से 1999 के बीच पश्चिम बंगाल सरकार में कैबिनेट मंत्री के पद पर रहे। 6 नवंबर 2000 को उनके राजनीतिक जीवन में ट्विस्ट आया।
ज्योति बसु की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी। उनकी खराब सेहत को ध्यान में रखते हुए भट्टाचार्य को बंगाल का सीएम नियुक्त किया गया। उसके बाद फिर वर्ष 2001 में विधानसभा चुनाव हुआ। जिसमें सीपीएम ने भट्टाचार्य के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और सरकार बनाई।
नंदीग्राम आंदोलन पर दिए बयान के लिए मांगनी पड़ी माफी
14 मार्च 2007 को बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार को पहली बार मुश्किल भरे हालातों से गुजरना पड़ा था। उस वक्त पश्चिमी मिदनापुर में नंदीग्राम के ग्रामीणों ने गांव में केमिकल हब बनाने के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया था। बाद में यह विरोध हिंसा में बदल गया था। नंदीग्राम में पुलिस की फायरिंग में 14 प्रदर्शनकारी मारे गए थे।
ऊपर से भट्टाचार्य के विवादित बयान ने उनकी पार्टी को और भी ज्यादा नुकसान पहुंचाया। उस वक्त बुद्धदेव ने बयान दिया था कि प्रदर्शनकारियों को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया गया। बाद में बुद्धदेव को अपने बयान पर माफी मांगनी पड़ी और उन्होंने स्वीकार किया कि ऐसा बयान नहीं देना चाहिए था।
जब बुद्धदेव भट्टाचार्य को अपने इस बयान के लिए जनता से मांगनी पड़ी माफी...(फोटो:सोशल मीडिया)
टाटा को गुजरात ले जाना पड़ा नैनो प्लांट
टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी तो जैसे मौके की तलाश में बैठी थीं। उन्होंने सीपीएम के खिलाफ जगह-जगह प्रचार करना शुरू कर दिया था।
उसी दौरान सिंगूर में रतन टाटा के नैनो कार प्रोजेक्ट को लेकर भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर राज्य में दोबारा जगह-जगह प्रदर्शन शुरू हो गये था।
ममता बनर्जी ने जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मार्च निकाला। जिसका नतीजा यह हुआ कि अक्टूबर 2008 में टाटा को अपना प्रोजेक्ट वहां से गुजरात ले जाना पड़ा।
बंगाल में ऐसे खत्म हो गया सीपीएम राज
जैसे –जैसे वक्त बीतता गया, सीपीएम की पकड़ बंगाल में कमजोर पड़ने लगी और टीएमसी की पकड़ मजबूत होने लगी।
2011 में जब विधानसभा चुनाव के नतीजे आये तो टीएमसी ने सीपीएम का सूपड़ा ही साफ कर दिया और राज्य से 34 साल के सीपीएम राज को खत्म कर दिया।
उस वक्त टीएमसी ने चुनाव में 184 सीटें जीती थीं जबकि सीपीएम को सिर्फ 40 सीटें ही आई थीं। यही नहीं भट्टाचार्य को अपनी जादवपुर सीट भी गंवानी पड़ी।
यहां तक कि कांग्रेस को भी लेफ्ट से दो सीटें ज्यादा मिली थीं। पांच दशक के बाद 2015 में भट्टाचार्य ने पार्टी के सारी जिम्मेदारियों से खुद को मुक्त कर लिया।
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