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इन गुरुओं की वजह से बुलंदी पर पहुंचा भारत, Tokyo Olympics में खिलाड़ियों की कामयाबी में निभाई बड़ी भूमिका

पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के बारे में तो हर कोई जानता है मगर इन्हें बुलंदी पर पहुंचाने वाले गुरु यानी कोच की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman TiwariPublished By Shivani
Published on: 9 Aug 2021 11:37 AM GMT
Tokyo Olympics
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Tokyo Olympics : टोक्यो ओलंपिक का रंगारंग समापन हो गया है। इस ओलंपिक के दौरान भारतीय टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए देशवासियों का दिल जीत लिया है। ओलंपिक की शुरुआत से पहले ही भारतीय टीम के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद जताई जा रही थी और खिलाड़ियों ने देशवासियों की उम्मीदों को पूरा करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। भारत 1900 से ओलंपिक खेलों में हिस्सा ले रहा है मगर इस बार भारतीय खिलाड़ियों ने सबसे ज्यादा सात पदक जीतने में कामयाबी हासिल की है।

टोक्यो ओलंपिक के दौरान नीरज चोपड़ा, रवि कुमार दहिया मीराबाई चानू, पीवी सिंधु, लवलीना बोरगोहेन, बजरंग पूनिया और पुरुष हॉकी टीम ने पदक जीते हैं। हालांकि कई और खिलाड़ियों ने भी अपने शानदार प्रदर्शन से देशवासियों का दिल जीता है। पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के बारे में तो हर कोई जानता है मगर इन्हें बुलंदी पर पहुंचाने वाले गुरु यानी कोच की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि वे कौन से कोच हैं जिनकी देखरेख में इन खिलाड़ियों ने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है।

नीरज के खेल को इन कोचों ने संवारा

Neeraj Chopra Ke Coach Kaun Hain- टोक्यो ओलंपिक के दौरान भारत के जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण पदक जीतने के साथ ही इतिहास भी रच दिया। भारतीय ओलंपिक के 121 वर्ष के इतिहास में यह ट्रैक एंड फील्ड में भारत का पहला पदक है और वह भी गोल्ड। अभिनव बिंद्रा के बाद नीरज चोपड़ा व्यक्तिगत स्पर्धा में सोना जीतने का कमाल दिखाने वाले दूसरे भारतीय खिलाड़ी हैं। पानीपत के रहने वाले किसान के बेटे नीरज में जेवलिन थ्रो के फाइनल मुकाबले में 87.58 मीटर की दूरी तक भाला फेंक कर हर किसी को चौंका दिया। नीरज की जीत के साथ भारत 13 साल बाद ओलंपिक खेलों में एक बार फिर स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब रहा।

2019 में कोहनी में चोट लगने के बावजूद नीरज ने हार नहीं मानी और दुनिया के दिग्गज खिलाड़ियों को पीछे छोड़ते हुए ओलंपिक का स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया। स्वर्ण पदक जीतने के बाद नीरज ने खुद कहा कि भाला फेंकना सिर्फ ताकत का खेल नहीं है बल्कि इसमें तकनीकी की भी बहुत बड़ी भूमिका होती है। खिलाड़ी को कई अलग-अलग एरिया पर काम करना होता है और कोच की मदद से ही उसके खेल में निखार आता है।

नीरज का कहना है कि उनका खेल निखारने में उनके कोच गैरी कॉलवर्ट, उवे हॉन और डॉक्टर क्लोस बारतोनित्ज की बड़ी भूमिका है। जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के समय नीरज को ऑस्ट्रेलियाई कोच गैरी कालवर्ट ने जैवलिन थ्रो के गुर सिखाए थे। उनकी मदद से नीरज 2016 में हुई जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब हुए थे।

नीरज का कहना है कि बाद में मैंने हॉन से कोचिंग लेनी शुरू की और उनकी ट्रेनिंग से मेरे खेल में और निखार आया। बाद में नीरज चोपड़ा ने डॉक्टर क्लोस के साथ भी काम किया। भाला फेंकने में गहरी समझ और अनुभव रखने वाले डॉक्टर क्लोस ने नीरज चोपड़ा की शारीरिक संरचना के हिसाब से उनका ट्रेनिंग प्लान तैयार किया। नीरज ने खुद स्वीकार किया है कि डॉ. क्लोस के इनपुट्स से मुझे अपना खेल निखारने में काफी मदद मिली।

नीरज के कोच भी दिखा चुके हैं कमाल

नीरज को ट्रेनिंग देने वाले महान जर्मन थ्रोअर उने हॉन इकलौते ऐसे थ्रोअर हैं जिन्होंने 100 मीटर की दूरी तक जेवलीन को फेंका है। 1984 में हॉन ने 104.8 मीटर की दूरी तक भाला फेंक कर वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम किया था। हालांकि हॉन ने यह रिकॉर्ड पुराने भाले के साथ कायम किया था। बाद में 1986 में नए डिज़ाइन के भाले से जेवलिन थ्रो के इवेंट होने लगे। नए भाले के साथ अब वर्ल्ड रिकॉर्ड जैन जेलेगनी के नाम है। 1996 में उन्होंने 98.48 मीटर की दूरी तक भाला फेंक कर विश्व रिकॉर्ड बनाया था।


हॉन को गुरु बनाने से मिलीं कई सफलताएं

हॉन को गुरु बनाने के बाद नीरज चोपड़ा ने कई सफलताएं हासिल कीं। उनकी देखरेख में ही 2018 में नीरज ने कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान 86.47 मीटर की दूरी तक जेवलिन फेंक कर स्वर्ण पदक जीता था। हॉन की देखरेख में ही नीरज को एशियाई खेलों में भी कामयाबी मिली थी और उन्होंने 88.06 मीटर की दूरी तक भाला फेंक कर स्वर्ण पदक जीतने में कामयाबी हासिल की थी। नीरज को ट्रेनिंग देने वाले हॉन को आज भी ओलंपिक में पदक न जीत पाने का अफसोस है। उनका कहना है कि मैं अपनी गलती से चूक गया नहीं तो मैं ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीत सकता था।

पूनिया को बेंटिनिडिस ने बुलंदी पर पहुंचाया

Bajrang Punia Ke Coach Ka Naam- पहलवान बजरंग पूनिया ने 65 किलोग्राम भार वर्ग में शानदार प्रदर्शन करते हुए कांस्य पदक जीता है। बजरंग ने प्लेऑफ मुकाबले में कजाकिस्तान के दौलत नियाज बेरोजकोव को एकतरफा मुकाबले में 8-0 से पराजित किया। बजरंग को सेमीफाइनल मुकाबले में हाजी अलीव के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में बजरंग ने नियाज बेरोजकोव को कोई मौका नहीं दिया।

पूनिया को इस मुकाम तक पहुंचाने में उनके कोच एमजारियोस बेंटिनिडिस की बड़ी भूमिका है। बेंटिनिडिस ने पूनिया को कुश्ती के दांव पेच की बारीकियां सिखा कर विरोधियों को चित करने की कला में माहिर बनाया है।

खुद भी नामी पहलवान रहे हैं बेंटिनिडिस

जॉर्जिया के फ्री स्टाइल पहलवान बेंटिनिडिस ने 2000 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में जॉर्जिया का प्रतिनिधित्व किया था। 16 अगस्त 1975 को जन्मे बेंटिनिडिस ने 2004 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में ग्रीस की ओर से हिस्सा लिया था। 74 किलो के भार वर्ग में उन्होंने 2008 के ओलंपिक में भी हिस्सा लिया था। इस तरह बेंटिनिडिस को ओलंपिक खेलों का अच्छा खासा अनुभव है और उन्होंने अपने अनुभवों के दम पर बजरंग पूनिया को पदक जिताने में काफी बड़ी भूमिका अदा की है।

सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ यह वीडियो

टोक्यो ओलंपिक के दौरान उनका एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिसे लोगों ने काफी पसंद किया था और इस वीडियो में पूनिया की अपने कोच के साथ जबर्दस्त बॉन्डिंग दिखती है। यह वीडियो 2018 की वर्ल्ड चैंपियनशिप का है। वीडियो में देखा जा सकता है कि पूनिया के मैच जीतने के बाद बेंटिनिडिस दौड़ते हुए मेट पर आते हैं और पूनिया से गले मिलते हैं। पूनिया भी अपने कोच के गले में हाथ डालते हैं, लेकिन इसी दौरान उनके कोच धोबी पछाड़ दांव लगाकर पुनिया को नेट के बाहर फेंक देते हैं।

यह वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ और कई लोगों ने कोच के साथ ही पूनिया के मुकाबले की मांग कर डाली। एक यूजर ने तो यहां तक लिखा कि जो काम विरोधी खिलाड़ी नहीं कर पाए वह काम कोच ने कर डाला।

इस वीडियो से समझा जा सकता है कि बेंटिनिडिस का पूनिया के साथ कितना जबर्दस्त आत्मीय रिश्ता रहा है कि उनके जीतते ही वे कुछ इस तरह खुशी मनाने लगे। जानकारों का कहना है कि पूनिया को निखारने में बेंटिनिडिस की बड़ी भूमिका रही है और इसी वजह से पूनिया टोक्यो ओलंपिक में कमाल दिखाने में कामयाब रहे।

गाजियाबाद के हैं मीराबाई चानू के कोच

Saikhom Mirabai Chanu Ke Coach Ki Profile- टोक्यो ओलंपिक के वेटलिफ्टिंग मुकाबले में मीराबाई चानू ने रजत पदक जीतकर पूरे देश को जश्न मनाने का मौका दिया था। चानू को इस मुकाम तक पहुंचने के लिए काफी कड़ी मेहनत करनी पड़ी है। उन्होंने ओलंपिक मुकाबले में पदक जीतने के लिए पटियाला स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स में पांच साल तक पसीना बहाया है। मणिपुर की चानू की इस कामयाबी के पीछे उनके कोच विजय शर्मा की बड़ी भूमिका रही है। गाजियाबाद के मोदीनगर के रहने वाले विजय शर्मा ने चानू को वेटलिफ्टिंग की ऐसी बारीकियां सिखाईं कि चानू ने टोक्यो में रजत पदक जीतकर पूरे देश को गौरवान्वित किया।

कोच के खाते में भी कई बड़ी उपलब्धियां

चानू के कोच विजय शर्मा खुद भी बहुत अच्छे वेटलिफ्टर रहे हैं और स्पोर्ट्स कोटे से ही उन्हें रेलवे में नौकरी मिली है। बचपन से ही उनकी खेलों में गहरी दिलचस्पी रही है। शुरुआत में वे फुटबॉल खेला करते थे मगर बाद में उनका दौड़ के प्रति आकर्षण बढ़ा। आखिरकार वे वेटलिफ्टिंग में ऐसा रमे कि फिर उन्होंने इसी खेल में तमाम कामयाबियां हासिल कीं। 1993 में रेलवे में नौकरी मिलने के बाद उन्होंने कई प्रतियोगिताओं में रेलवे का प्रतिनिधित्व किया और स्वर्ण जीत कर रेलवे का नाम रोशन किया।

नेशनल चैंपियन रह चुके हैं विजय शर्मा

उन्होंने इंटर रेलवे चैंपियनशिप में चार बार जीत हासिल की। इसके साथ ही वे 1998 और 1999 में राष्ट्रीय चैंपियन भी रहे। वेटलिफ्टिंग के क्षेत्र में काफी नाम कमाने के बाद उन्होंने कोचिंग देने का काम शुरू किया। कोचिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए उन्हें 2018 में द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

मीराबाई चानू को बुलंदी पर पहुंचाने में विजय शर्मा का भी महत्वपूर्ण योगदान माना जा रहा है। चानू ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि कोच विजय शर्मा से बारीकियां सीखने के बाद उन्हें बुलंदी पर पहुंचने में काफी मदद मिली। चानू विजय शर्मा के मोदीनगर स्थित आवास पर भी आती रही हैं।

दहिया को निखारने में कई कोचों की भूमिका

Ravi Kumar Dahiya Coach Ka Jeevan Parichay- टोक्यो ओलंपिक के दौरान पहलवान रवि दहिया ने अपने धमाकेदार प्रदर्शन से हर किसी को चौंका दिया। ओलंपिक शुरू होने से पहले दहिया से पदक की उम्मीद नहीं की जा रही थी मगर दहिया ने अपने पहले ही ओलंपिक में एक-एक करके सभी पहलवानों को चित करते हुए फाइनल में जगह बनाई। क्वार्टर फाइनल मुकाबले के दौरान दहिया पहले पिछड़ गए थे मगर बाद में उन्होंने वापसी की और प्रतिद्वंद्वी पहलवान को चित करने में कामयाब रहे। हालांकि फाइनल मुकाबले के दौरान उन्हें रूस ओलंपिक कमेटी के पहलवान से हार झेलनी पड़ी मगर दहिया ने अपने शानदार प्रदर्शन से पूरे देश का दिल जीत लिया। दहिया कुश्ती में भारत के लिए रजत पदक जीतने वाले दूसरे पहलवान हैं। उनसे पहले सुशील कुमार ने 2012 के लंदन ओलंपिक में भारत के लिए रजत पदक जीता था।

रवि को इस मुकाम तक पहुंचाने में उनके कई कोचों की बड़ी भूमिका रही है। उनकी कामयाबी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके साथ ही उनके कोच अनिल मान से फोन पर बातचीत करके उन्हें बधाई दी। हालांकि इसके पहले रवि ने दूसरे कोचों से भी कुश्ती की बारीकियां सीखी हैं।

शिष्य ने पूरा किया गुरुओं का सपना

रवि को इस मुकाम तक पहुंचाने में मुजफ्फरनगर के रहने वाले जगमेंद्र सिंह और बागपत के राजीव तोमर का भी महत्वपूर्ण योगदान है। रवि के ये दोनों कोच खुद भी ओलंपियन रह चुके हैं। ओलंपिक पदक जीतने का अपना सपना पूरा करने के लिए उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर रवि दहिया को कुश्ती के दांवपेच सिखाए हैं।

मुजफ्फरनगर के रहने वाले जगमेद्र सिंह ने 1984 के लॉस एंजिल्स के ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था जबकि बागपत के राजीव तोमर ने 2008 में बीजिंग में हुए ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व किया था। पदक जीतने का अपना सपना पूरा न होने के बाद इन दोनों पहलवानों ने दूसरे पहलवानों को कुश्ती के दांव सिखाने शुरू किए ताकि उनका सपना पूरा हो सके। जगमेद्र सिंह 2004 से ही नेशनल कोच की जिम्मेदारी निभा रहे हैं जबकि राजीव तोमर पहलवानों को करीब 6 वर्षों से कुश्ती की बारीकियां सिखा रहे हैं।

दहिया को मानसिक रूप से मजबूत बनाया

पूर्व में दिग्गज पहलवान रह चुके इन दोनों कोचों का मानना है कि रवि दहिया ने 57 किलो भार वर्ग में उनका सपना पूरा करने में कामयाबी हासिल की है। दहिया का भी मानना है कि ओलंपिक से पहले लगे कैम्प में उनके कोच जगमेद्र सिंह और राजीव तोमर ने उन्हें कुश्ती के दांव पेंच सिखाने के साथ ही उन्हें मानसिक रूप से भी मजबूत बनाया है।

वैसे रवि दहिया ने कुछ समय तक महाबली सतपाल से भी कुश्ती के दांव सीखे हैं। सतपाल का कहना है कि सेमीफाइनल मुकाबले में पिछड़ने के बाद भी रवि दहिया ने जोरदार पलटवार किया। उन्होंने बेजोड़ प्रदर्शन करके देश के लिए रजत पदक जीता है और उनका यह प्रदर्शन देश के युवाओं को प्रेरित करेगा। महाबली सतपाल ने कहा कि मैंने अभी तक किसी को भी 2-9 से पिछड़ने के बाद एक मिनट के भीतर जीतते हुए नहीं देखा है मगर दहिया ने इस असंभव काम को भी संभव करके दिखाया है। उन्होंने कहा यह मुकाबला भी सुशील के लंदन के सेमीफाइनल की तरह ही था जब सुशील ने सेमीफाइनल में पिछड़ने के बावजूद जीत हासिल की थी।

सिंधु की कामयाबी में सांग की अहम भूमिका

PV Sindhu Ka Coach Kaun Hai- भारत की बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु ने लगातार दो ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला बन गई हैं। सिंधु ऐसी चौथी महिला बैडमिंटन खिलाड़ी बन गई हैं जिन्होंने लगातार दूसरे ओलंपिक में पदक जीता है। दुनिया की सातवें नंबर की खिलाड़ी सिंधु ने प्लेऑफ मुकाबले में नौवें नंबर की चीन की बिंगजियाओ को 52 मिनट तक चले मुकाबले में 21-13 और 21-15 से हराकर टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीता है। सिंधु से पहले सिर्फ पहलवान सुशील कुमार ही लगातार दो ओलंपिक में पदक जीत पाए हैं। हालांकि सिंधु को इससे बेहतर की उम्मीद थी मगर उनका मानना है कि ओलंपिक में कोई भी पदक जीतना कम महत्वपूर्ण नहीं है।

सिंधु की जीत के पीछे उनके कोच पार्क ताए सांग की भी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है। सिंधु के कांस्य पदक जीतते ही सांग की खुशी की दहाड़ हर किसी ने सुनी थी। वे सिंधु की जीत से इतना ज्यादा खुश हुए कि मास्क भी उनकी खुशी को नहीं छिपा सका था। सांग ने सिंधु को मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए काफी मेहनत की है।

बिना किसी दबाव के खेलने की नसीहत

कांस्य पदक जीतने के बाद सिंधु ने कहा कि खेल के दौरान जब भी दबाव की स्थितियां पैदा होती हैं तब कोच उन्हें शांत बने रहने की नसीहत देते हैं। वे मुझसे हमेशा बिना किसी तनाव के आराम से खेलने को कहते हैं।

सिंधु के कांस्य पदक जीतने पर सांग का कहना था कि यह मेरे लीडरशिप करियर का सबसे महत्वपूर्ण पल है क्योंकि एक खिलाड़ी या कोच के तौर पर मैंने अभी तक कभी ओलंपिक पदक नहीं जीता था। सिंधु ने मेरी यह इच्छा पूरी कर दी है और मैं कितना खुश हूं, इसे बता नहीं सकता। वैसे सीनियर लेवल पर सांग सिंधु के चौथे कोच हैं।

इन कोचों ने भी सिंधु को बुलंदी पर पहुंचाया

सिंधु को सुपरस्टार बनाने में पुलेला गोपीचंद की भी बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने सिंधु को शुरुआती दौर में बैडमिंटन के ऐसे गुर सिखाए जिसके बाद सिंधु लगातार बुलंदी पर पहुंचती चली गईं। बाद में सिंधु को इंडोनेशिया के मुलयो हंडोयो ने भी ट्रेनिंग दी। वे 2017 में भारत आए थे मगर किन्ही कारणोंवश वे ज्यादा दिनों तक भारत में नहीं रुक सके। उसके बाद सिंधु को दक्षिण कोरिया के किम जी ह्यू ने ट्रेनिंग दी। किम ने साइना नेहवाल को भी ट्रेनिंग दी थी मगर उनका पूरा फोकस सिंधु पर ही था। मार्च 2019 में किमी के कोचिंग संभालने के बाद ही अगस्त में सिंधु विश्व चैंपियन बनने में कामयाब हुई थीं। किम के दक्षिण कोरिया लौटने के बाद सिंधु ने पार्क से ट्रेनिंग लेनी शुरू की। यह पार्क की ट्रेनिंग का ही कमाल है कि सिंधु लगातार दो ओलंपिक में पदक जीतने में कामयाब हुई हैं।

लवलीना ने इस तरह जीता कांस्य पदक

Lovlina Borgohain Coach- असम के गोलाघाट की रहने वाली लवलीना बोरगोहेन ने टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर देश को गौरवान्वित किया है। लवलीना सेमीफाइनल मुकाबले के दौरान तुर्की की विश्व चैंपियन से 0- 5 के अंतर से मुकाबला हार गईं मगर सेमीफाइनल में एंट्री के साथ ही उन्होंने देश के लिए एक कांस्य पदक पक्का कर लिया था। लवलीना ने 2018 में इंडिया ओपन में स्वर्ण पदक जीतकर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था।

लवलीना को बुलंदी पर पहुंचाने में कई कोचों की भूमिका रही है। सबसे पहले स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के बॉक्सिंग ट्रायल के दौरान कोच पद्म बोरो की नजर लवलीना पर पड़ी थी।

इन कोचों ने भी की है लवलीना की मदद

बाद में भारतीय महिला बॉक्सिंग टीम के मुख्य कोच शिव सिंह ने बॉक्सिंग की बारीकियां लवलीना को सिखाईं। लवलीना के खेल को बुलंदी पर पहुंचाने में इन दोनों कोचों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

इन दोनों कोचों के अलावा लवलीना ने मोहम्मद अली कमर की देखरेख में भी ट्रेनिंग की है। ओलंपिक खेलों के लिए लवलीना को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करने में कमर की बड़ी भूमिका रही है। कोलकाता के रहने वाले कमर कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले बॉक्सर थे। उन्होंने 2002 में मैनचेस्टर में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीता था। शिव सिंह के बाद उन्होंने ही लवलीना को बॉक्सिंग की बारीकियां सिखाकर ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक जीतने में मददगार की भूमिका निभाई।

हॉकी टीम ने फिर दिया जश्न मनाने का मौका

Hockey Team Ka Coach Kaun hai- भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में 41 साल के इंतजार के बाद जर्मनी की ताकतवर टीम को 5-4 से हराकर कांस्य पदक जीता है। भारत ने इससे पहले 1980 के मास्को ओलंपिक में हॉकी में स्वर्ण पदक जीता था। मास्को ओलंपिक में मिली इस बड़ी जीत के बाद भारत का प्रदर्शन कभी भी अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा और 2008 के बीजिंग ओलंपिक में तो भारत क्वालीफाई भी नहीं कर सका था। टोक्यो ओलंपिक के दौरान भारत की टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए हर किसी का दिल जीत लिया। भारतीय पुरुष हॉकी टीम की जीत के बाद एक बार फिर हॉकी के प्रति पूरे देश का प्रेम जगा है।

कोच का युवा खिलाड़ियों पर भरोसा रंग लाया

भारतीय हॉकी टीम की जीत में ऑस्ट्रेलियाई कोच ग्राहम रीड की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है। भारतीय हॉकी टीम की जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कप्तान मनप्रीत के साथ ही रीड से भी बात करके उन्हें इस जीत के लिए बधाई दी है। भारत को कांस्य पदक मिलने के बाद रीड ने कहा कि वे इस जीत पर काफी गर्व महसूस कर रहे हैं। बार्सिलोना ओलंपिक में 1992 में रजत पदक जीतने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम का सदस्य रहे रीड को 2019 में भारतीय हॉकी टीम को कोचिंग देने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। भारत की जीत के बाद रीड ने कहा कि युवा खिलाड़ियों पर भरोसा करने के कारण ही भारत को यह महत्वपूर्ण जीत हासिल हुई है।

टीम को कभी भी निराश न होने की नसीहत

रीड का मानना है कि कांस्य पदक जीतना एक अद्भुत एहसास है और इसके लिए टीम ने काफी बलिदान किया है। रीड ने कहा कि भारत के लिए हॉकी में पदक जीतना है काफी महत्वपूर्ण है और मैं इस मुहिम का हिस्सा बन कर खुद को भी गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि मैंने हमेशा टीम के खिलाड़ियों को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया और किसी भी टीम के खिलाफ पिछड़ने पर निराश न होने की नसीहत दी। भारतीय खिलाड़ियों ने इसी नसीहत पर काम करते हुए पिछड़ने के बाद भी पलटवार किया और मैच जीतने में कामयाबी हासिल की।

Shivani

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