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रैना के पिता बनाते थे बम: मिलता था इतना पैसा, ऐसे बने करोड़ो के मालिक

इंडियन क्रिकेटर सुरेश रैना आज एक बड़ा नाम हैं। विश्व भर के लोग उन्हें क्रिकेट के ज़रिए जानते हैं। दूर-दूर से उनके फैन्स मैच देखने आते हैं। वो आज जो भी हैं अपनी मेहनत और घर वालों के सपोर्ट से हैं।

Monika
Published on: 31 Aug 2020 12:09 PM IST
रैना के पिता बनाते थे बम: मिलता था इतना पैसा, ऐसे बने करोड़ो के मालिक
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इंडियन क्रिकेटर सुरेश रैना (facebook photo)

इंडियन क्रिकेटर सुरेश रैना आज एक बड़ा नाम हैं। विश्व भर के लोग उन्हें क्रिकेट के ज़रिए जानते हैं। दूर-दूर से उनके फैन्स मैच देखने आते हैं। वो आज जो भी हैं अपनी मेहनत और घर वालों के सपोर्ट से हैं।

सैन्य अधिकारी थे पिता

सुरेश रैना के पिता त्रिलोकचंद रैना एक सैन्य अधिकारी थे जिनको आयुध निर्माणी में बम बनाने में महारत हासिल थी। लेकिन इसके लिए उन्हें केवल दस हजार रुपये महीने का मामूली वेतन मिल रहा था। ये रकम उनके बेटे सुरेश के क्रिकेटिंग सपनों को पंख देने के लिए पर्याप्त नहीं थी।

लेकिन इस मुश्किल घड़ी में भी सुरेश रैना ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी कड़ी मेहनत से अपना सपना पूरा किया। इस मुश्किल समय के दो दशक बाद तक दुनिया भर के क्रिकेट मैदान में रैना ने अपने कौशल का लोहा मनवाया। उन्होंने हाल ही में अपने सफल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहा है।

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बड़ा था परिवार

रैना ने निलेश मिसरा के ‘द स्लो इंटरव्यू’ के साक्षात्कार में बताया कि उनके परिवार में आठ लोग थे और उस समय दिल्ली में क्रिकेट अकादमियों का मासिक शुल्क पांच से 10 हजार रुपये प्रति महीना था। इस दौरान लखनऊ के गुरु गोविंद सिंह खेल कॉलेज में उनका चयन हुआ और फिर सब कुछ इतिहास का हिस्सा बन गया।

पिता सैनिकों के परिवारों की देखभाल करते थे

रैना ने आगे कहा, ‘पापा सेना में थे, मेरे बड़े भाई भी सेना में हैं। पापा अयुध फैक्ट्री में बम बनाने का काम करते थे। उन्हें उस काम में महारत हासिल थी।’ रैना के बचपन का नाम सोनू है. उन्होंने कहा, ‘पापा वैसे सैनिकों के परिवारों की देखभाल करते थे, जिनकी मृत्यु हो गई थी। उनका बहुत भावुक काम था। यह कठिन था, लेकिन वह सुनिश्चित करते थे कि ऐसे परिवारों का मनीऑर्डर सही समय पर पहुंचे और वे जिन सुविधाओं के पात्र है वे उन्हें मिले।’

आपको बता दें, 1990 में जम्मू-कश्मीर के पंडितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार पर उनके पिता ने अपना कुछ छोड़ कर अपने परिवार के साथ प्रदेश के मुरादनगर आ गए। रैना ने कहा, ‘मेरे पिता का मानना था कि जिंदगी का सिद्धांत दूसरों के लिए जीना है। अगर आप केवल अपने लिए जीते हैं तो वह कोई जीवन नहीं हैं।’

यहां से शुरू हुआ सफ़र

रैना ने बताया कि बचपन में जब वो खेलते थे तो उनके पास पैसे नही होते थे। उनके पिता कवर दस हजार रुपये कमाते थे और वो पांच भाई और एक बहन थे। फिर उन्होंने 1998 में लखनऊ के गुरु गोबिंद सिंह खेल कॉलेज में ट्रायल दिया। वो उस समय 10000 का प्रबंधन नहीं कर सकते थे।’ उन्होंने बताया, ‘यहां फीस एक साल के लिए 5000 रुपये थी इसलिए पापा ने कहा कि वह इसका खर्च उठा सकते हैं। मुझे और कुछ नहीं चाहिए था, मैंने कहा मुझे खेलने और पढ़ाई करने दो।’

उन्होंने कहा कि वह हाल के वर्षों में कश्मीर गये हैं लेकिन इसके बारे में उन्होंने अपने परिवार खासकर पिता को नहीं बताया। उन्होंने कहा, ‘मैं एलओसी पर दो से तीन बार गया हूं। मैं माही भाई के साथ भी गया था, हमारे कई दोस्त हैं जो कमांडो हैं।’

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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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