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गोरखपुर के खिलाड़ी इनको गॉडफादर मानते हैं, प्रॉपर डाईट खिला, सपनों को पंख दे दिया

गोरखपुर में एक दूधवाले हैं जो उभरते खिलाडियों के अभावग्रस्त जीवन में उम्मीद की नयी किरण बनकर आये हैं। दूध-दही की छोटी सी दुकान करने वाले वीरेन्‍द्र पासवान अपने युवावस्‍था

Anoop Ojha
Published on: 2 Dec 2017 2:34 PM IST
गोरखपुर के खिलाड़ी इनको गॉडफादर मानते हैं, प्रॉपर डाईट खिला, सपनों को पंख दे दिया
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गोरखपुर के खिलाडी इनको गॉडफादर मानते हैं, प्रॉपर डाईट खिला, सपनों को पंख दे दिया

गोरखपुर: गोरखपुर में एक दूधवाले हैं जो उभरते खिलाड़ियों के अभावग्रस्त जीवन में उम्मीद की नयी किरण बनकर आये हैं। दूध-दही की छोटी सी दुकान करने वाले वीरेन्‍द्र पासवान अपने युवावस्‍था में राष्‍ट्रीय स्‍तर के खिलाड़ी हालात कुछ ऐसे बने कि वह दूध बेंचने के कारोबार में आ गये लेकिन खिलाड़ियों के प्रति अपने लगाव के कारण ये दूसरे खिलाड़ियों को आगे प्रमोट करने का निश्‍चय किया और ग्रामीण क्षेत्र के खिलाड़ियों को अपनी दुकान से मुफ्त में दूध, दही, रूपये और अन्य जरूरत की चीजें देकर उनको हर तरह की मदद देनी शुरू की।

अब तक इनकी सहायता से 100 से अधिक युवा खिलाड़ी सफल होकर राष्‍ट्रीय और अर्न्‍तराष्‍ट्रीय स्‍तर पर खेल रहे हैं या फिर सरकारी नौकरी कर रहे हैं। गोरखपुर के पादरी बाज़ार इलाके में एक छोटी सी दुकान के मालिक हैं वीरेंद्र पासवान।

दूध दही और मिठाई की इस दुकान को वीरेंद्र 1995 से चला रहे हैं और तभी से चल रहा है इनका वो काम जो इनको आज गोरखपुर ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल में सबसे अलग पहचान दिलाता है।

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वीरेंद्र युवावस्था में खुद खिलाड़ी बनना चाहते थे और इसके लिए वीरेंद्र ने काफी मेहनत भी की पर आर्थिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से इनको अपना खेल प्रेम छोड़ना पड़ा और दूध का व्यापार शुरू करना पड़ा। दूध की दुकान तो चल निकली पर एक खिलाड़ी का मन आज भी खेल से दूर नहीं हुआ। वीरेंद्र ने तय किया कि जिस वजह से उनका खेल से नाता टूट गया उस वजह से दूसरे प्रतिभावान खिलाडियों को दिक्कत न झेलनी पड़े और इसके बाद ये अपनी दुकान समर्पित कर दी उन नए खिलाड़ियों को जो सुविधाओं के अभाव में पीछे रह जाते हैं।वीरेंद्र ने अपनी दुकान पर आने वाले सभी खिलाड़ियों को मुफ्त में दूध दही मिठाई और पनीर देना शुरु कर दिया। जो खिलाड़ी आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं उनको रुपयों से मदद करते, उनके लिए एक अदद छत भी मुहैया कराते और पूरी कोशिश करते कि उसका जीवन संवर जाए।

इनकी दुकान और दरियादिली कि बदौलत आज 100 से अधिक खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय खेल में भाग ले रहे है। कई यहीं रहकर और यहाँ का दूध-दही खाकर सरकारी सेवा में जा चुके हैं। पिछले 18 सालों हर रोज इनकी दुकान पर दर्जनों उभरते खिलाड़ी आते हैं और यह उनको अपनी दुकान का दूध, मिठाई और पनीर मुफ्त खिलाने के साथ उनके रहने-खाने, किट और कहीं आने जाने के लिए रूपयों-पैसों की भी व्यवस्‍था करते हैं। हर सुबह वीरेन्द्र की दुकान पर इन खिलाड़ियों की भीड़ लगी रहती है जो यहाँ खाने के बाद अपने साथ भी दूध दही लेकर जाते है।

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इसके अलावा गोरखपुर के रीजनल स्टेडियम में खेलने वाले अधिकतर खिलाड़ी यहां पर आकर वीरेन्द्र का सहयोग लेते है। वीरेन्द्र के इस काम में इनके घरवाले भी इनका पूरा सहयोग करते हैं। वीरेन्द्र के भाई पढ़कर सरकारी नौकरी में लग गए। आज दोनों भाई इस दुकान की कमाई से गरीब एथलीट को आगे लाने और उसे उसकी मंजिल दिलाने का प्रयास कर रहे है। हालत ये हैं की यहां के खिलाडी इनको अपना गॉडफादर मानते हैं। राष्‍ट्रीय और अर्न्‍तराष्‍ट्रीय स्‍तर पर पहुंच चुके खिलाड़ी अपने जीवन के संवरने में वीरेन्द्र का महत्‍वपूर्ण योगदान मानते हैं। इनका मानना है कि ऐसे लोग 10-20 और हो जाए तो कई अन्‍य लोगों को भी आगे बढने का अवसर मिलेगा।

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महिला एथलीट खिलाड़ी निक्की राय

महिला एथलीट खिलाड़ी निक्की राय बताती हैं कि वीरेंद्र सर हम लोगों की हर तरह से मदद करते हैं। चाहे डिस्ट्रिक्ट लेवल खेलने के लिए पैसे का आवश्यकता हो या बाहर कहीं जाना हो वह हर तरह से हमारी मदद करते हैं। हम मैराथन भी खेलते हैं इनके सहयोग से हम गुजरात जामनगर तक खेलने जा चुके हैं। वीरेंद्र सर वीरेंद्र सर हम लोगों को खाने पीने और किराया भाड़ा अपने ही निर्वहन करते हैं। हम एथलेटिक्स करते हैं लांग Run करते हैं मैराथन भी साथ-साथ करते हैं। 6 वर्ष से हम यहां हैं यहां पर अगर इनके जैसे दो चार लोग शहर में रहे तो खिलाड़ी बहुत आगे बढ़ सकते हैं।

महिला एथलीट खिलाड़ी निक्की राय महिला एथलीट खिलाड़ी निक्की राय

एथलीट शैलेंद्र सिंह

वहीं एथलीट खिलाड़ी शैलेंद्र सिंह का कहना है मैं तो पहले गांव में ऐसे दौड़ा करता था। वीरेंद्र सर के भाई रमेश सर हैं वो ही मुझे वहां से ले आए। मुझे यहां पर खाने पीने के साथ सारी व्यवस्था दिया क्योंकि मैं बहुत गरीब परिवार से हूं वीरेंद्र सर की देन है कि मैं राज्य स्तरीय एथलीट खिलाड़ी रूप में खेल रहा हूं, 7 से 70 बच्चे वीरेंद्र सर की देखरेख में हैं और वीरेंद्र सर इनका ख्याल रखते हैं। यहां पर सिंथेटिक ग्राउंड बन जाता तो हम दौड़ सकते हैं क्योंकि हम लोगों को बरसात में काफी दिक्कत होती है। बरसात में हम दौड़ नहीं सकते।

एथलीट शैलेंद्र सिंह एथलीट शैलेंद्र सिंह

कोच जवाहर प्रसाद

कोच जवाहर प्रसाद का कहना है कि वीरेंद्र जी को देख कर और लोगों आगे आना चाहिए और खिलाड़ियों की मदद करनी चाहिए आज की डेट में वीरेंद्र जी जैसा आदमी मिलना मुश्किल है क्योंकि बहुत ऐसे बच्चे हैं जिनमें काबिलियत है, और वह धन के अभाव से अपना हुनर नहीं दिखा पाते।यहां से 100 लड़के कामयाब हो गए हैं और वह आर्मी और रेलवे से लेकर अदर फोर्स में नौकरी भी कर रहे हैं। यही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी खिलाड़ी जा चुके हैं जिसका नाम रोशनी कुमारी है,जो इस समय दिल्ली में है।

कोच जवाहर प्रसाद कोच जवाहर प्रसाद

यहां के खिलाड़ियों का कहना है की उनमें उर्जा तो बहुत है और वह भी बहुत कुछ करना चाहते हैं पर प्रॉपर डाईट नहीं मिलने के कारण उनकी सारी प्रतिभा दम तोड़ देती है। सरकारी स्तर पर एक खिलाड़ी को जो खाने पीने के लिए रूपये मिलते हैं वो उतने में उसकी प्रॉपर डाईट नहीं मिल सकती है। ऐसे में अगर एक समर्थ व्यक्ति सिर्फ एक ही खिलाड़ी का खर्चा उठा ले तो वह उम्मीद से कहीं बेहतर परफार्मेंस देगा और प्रदेश और देश का नाम रोशन करेगा।

वहीँ वीरेंद्र का मानना है कि उन्होंने बस एक छोटा सा प्रयास किया है उन प्रतिभाओं के लिए जो सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ देती हैं। हर इंसान को अपने छोटी कमाई में दूसरों के लिए कुछ न कुछ प्रयास करना चाहिए ताकि खेलों को नयी ऊर्जा और हौसलों से लैस प्रतिभाये मिल सकें।

वीरेन्‍द्र भले ही अपने सपने को पूरा नहीं कर पाए लेकिन उनके जज्‍बे ने कई राष्‍ट्रीय और अर्न्‍तराष्‍ट्रीय खिलाड़ियों के सपनों को पंख दे दिया है। जिससे वह उंची उडान के सपनों को पूरा कर सकें। यदि देश का हर नागरिक इनकी दूधवाले की तरह सोच रखे तो प्रतिभाएं कभी भी अभावग्रस्त नहीं होंगी और देश ही नहीं,विदेशों तक में भारत का नाम रोशन कर,पदक लाने के अपने सपने को पूरा करने में कामयाब हो सकेंगी।



Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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