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ग्रीन पार्क में टॉस बनेगा मैच का बॉस, स्लो विकेट पर मुश्किल होगी बल्लेबाजों की राह
Ruchi Mahawar
कानपुर: 7 साल के लंबे इंतजार के बाद एक बार फिर ग्रीन पार्क स्टेडियम में सफेद पोशाक में टीमें मैदान पर उतरेंगी। टीम इंडिया और न्यूजीलैंड के बीच 22 सितंबर से शुरू हो रही सीरीज का पहला मैच ग्रीन पार्क में खेला जाएगा। इस बीच सबकी नजरें पिच पर टिकी हुई हैं कि आखिर मेहमान टीम को किस तरह की पिच दी जाएगी। पिच के मिजाज को लेकर newstrack.com ने क्यूरेटर शिव कुमार से एक्सक्लूसिव बातचीत की। उन्होंने बताया, ''मैच के लिए जो पिच तैयार की जा रही है वो ज्यादा हार्ड और बाउंसी नहीं होगी, क्योंकि इसके लिए धूप का निकलना जरूरी है। ताकि विकेट सूखकर अंदर से और हार्ड बने, लेकिन बारिश के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा है। इस वजह से विकेट थोड़ा स्लो रहेगा और बल्लेबाजों को दिक्कत आएगी।''
टॉस बनेगा बॉस
क्यूरेटर शिव कुमार के मुताबिक, ''ग्रीन पार्क में टॉस मैच का बॉस बनेगा। जो भी टीम टॉस जीतेगी, वो पहले बल्लेबाजी का फैसला कर सकती है, क्योंकि स्लो विकेट पर दूसरी पारी में बल्लेबाजी करना और मुश्किल होगा। बल्लेबाजी करने वाली टीम अगर पहली पारी में 400 रन बना लेती है तो मैच में उसकी पकड़ मजबूत बन सकती है।''
तेज गेंदबाजों को रोल रहेगा कम: क्यूरेटर
क्यूरेटर शिव कुमार ने बताया, ''पिच के ज्यादा हार्ड और बाउंसी न होने की वजह से तेज गेंदबाजों के लिए इस पिच पर ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं होगा। पहले दिन के फर्स्ट सेशन तक तेज गेंदबाज टीम के लिए अहम रोल अदा कर सकते हैं। इसके बाद उन्हें विकेट निकालने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी और स्पिनर्स का रोल मैच में बढ़ जाएगा।''
नए कलेवर में होगी पुरानी पिच
शिवकुमार ने बताया कि टेस्ट मैच के लिए नई पिच नहीं बनाई गई है, क्योंकि नई पिच पर तुरंत टेस्ट मैच नहीं करवाया जा सकता। पुरानी पिच को ही नए सिरे से तैयार किया जा रहा है। इस वक्त विकेट पर थोड़ी हरी घास है। बेजान घास (डेड ग्रास) को ब्रुश के जरिए हटाया जा रहा है। विकेट पर लगातार वॉटरिंग की जा रही है। 15 सितंबर के बाद इस पर रोलर चलाए जाएंगे, लेकिन बार-बार बारिश होने की वजह से पिच पर काम करने में थोड़ी मुश्किल हो रही है।
कैसे बनती है पिच ?
बीसीसीआई की नई गाइडलाइंस के मुताबिक पिच बनाने में थ्री लेयर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है। शिव कुमार ने बताया कि सबसे पहले 4 इंच की लेयर ग्रेवल (स्टोन पार्टिकल्स/गिट्टी) की बिछाई जाती है। इसके बाद इतने ही इंच की पीले रंग की लोमी सॉयल (मिट्टी) की लेयर उस पर डाली जाती है। ये बाग-बगीचों में इस्तेमाल होने वाली मिट्टी से थोड़ी ज्यादा रिफाइंड होती है। इन दो लेयरों को बिछाने के बाद इस पर 8 इंच की मोटी ब्लैक सॉयल (काली मिट्टी) की लेयर डाली जाती है, लेकिन इसे एक साथ नहीं डाला जाता है। 5 इंच तक ब्लैक सॉयल की लेयर डालने के बाद ग्रास प्लांटेशन का काम किया जाता है। इसके बाद फिर बाकी बची तीन इंच की मोटी ब्लैक सॉयल लेयर को इस पर बिछाया जाता है। तीनों लेयरों को डालने के बाद वाटरिंग और रोलिंग का काम किया जाता है।
3 महीने में बनती है नई पिच
शिवकुमार के मुताबिक, उनके पिच बनाने का तरीका थोड़ा सा अलग है। वो लोमी सॉयल की लेयर बिछाने के बाद ही ग्रास प्लांट कर देते हैं। ऐसा करने से विकेट जल्दी ड्राई होता है। एक नई पिच बनाने में जहां तीन महीने का वक्त लगता है, वहीं मुकाबले से पहले बनी हुई पिच के रेनोवेशन में 45 दिन लगते हैं। उन्होंने बताया कि जिस मिट्टी में क्ले की मात्रा जितनी ज्यादा होगी, वो उतनी ही ठोस और उसमें कसावट भी बाकी मिट्टियों से ज्यादा होती है। ऐसी मिट्टी से बनी क्रिकेट पिच जल्दी टूटती नहीं है।
पिच पर नहीं बचेगी ज्यादा घास
एक आइडियल पिच बनाने में 6 अलग-अलग वजन के हैवी रोलर्स का इस्तेमाल किया जाता है। पिच क्यूरेटर शिवकुमार ने बताया कि एक रोलर को 7 से 8 पासेज ( पिच के एक छोर से दूसरे छोर तक) चलाया जाता है। सबसे पहले पिच पर 300 किलो. के रोलर का इस्तेमाल किया जाता है। इससे पिच की सबसे ऊपरी लेयर पर पड़ी काली मिट्टी एक बराबर हो जाती है। इसके बाद 500 किलो, 750 किलो, 1 टन , 2 टन और 2.5 टन वजन तक का रोलर चलाया जाता है।
एक परफेक्ट पिच बनाने में रोलिंग का अहम रोल होता है। इससे विकेट पर पेस और बाउंस आता है। रोलिंग सही समय पर और सही तरीके से की जानी बेहद जरूरी होती है। हर पिच क्यूरेटर अपने मुताबिक पिच पर रोलर्स का इस्तेमाल करता है। उन्होंने बताया कि ग्रीन पार्क की पिच पर रोलिंग होने के बाद 45 से 50 फीसदी घास खत्म हो जाएगी। वहीं, पिच को फाइनल टच देने के बाद इस पर केवल 3 से 4 मिमी. ही घास बचेगी।
क्यों ग्रीन है ग्रीन पार्क ?
गीन पार्क स्टेडियम के ठीक पीछे गंगा नदी बहती है। इसकी वजह से वहां आसपास का ग्राउंड वॉटर लेवल काफी ऊंचा है। इसका सीधा असर पिच पर भी पड़ता है। कम घास रहने के बावजूद सतह पर नमी जल्दी आ जाती है। शिवकुमार ने बताया कि गंगा नदी की वजह से क्लाइमेट पर काफी असर पड़ता है और यही वजह है कि मैच में पिच के साथ-साथ टॉस का रोल भी अहम हो जाता है।