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'राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार' के लिए वेटलिफ्टर मीराबाई चानू के नाम ​की सिफारिश

Shivakant Shukla
Published on: 18 Sept 2018 3:49 PM IST
राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के लिए वेटलिफ्टर मीराबाई चानू के नाम ​की सिफारिश
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नई दिल्ली: महिला वेटलिफ्टर मीराबाई चानू का नाम भारतीय खेल के दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के लिए सिफारिश किया गया है। चानू को आज शायद ही कुछ लोग जानते हों इस वेटलिफ्टर ने बेहद ही साधारण परिवार में जन्म लिया और जीवन में काफी दर्द झेले लेकिन इसके बावजूद चानू ने हार नहीं मानी और जीत के मुकाम को हासिल किया।

उनके साथ टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली को भी राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के लिए नामित किया गयरा है विराट कोहली को तो पूरा देश जानता है लेकिन चानू को शायद ज्यादा लोग नहीं जानते। 8 अगस्त 1994 को मणिपुर के इम्फाल से 20 किलोमीटर दूर नोंगपोक काकचिंग गांव में गरीब परिवार में जन्मी मीराबाई चानू छह भाई बहनों में सबसे छोटी हैं।

मीराबाई का जीवन संघर्ष

बचपन में चानू के गांव में वेटलिफ्टिंग सेंटर नहीं था और इसलिए उन्हें रोज़ ट्रेन से 60 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था। चानू ने 2007 में खेलों में अपना सफर शुरू किया। शुरुआत उन्होंने इंफाल के खुमन लंपक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से की थी। मीराबाई चानू 11 साल की उम्र में अंडर-15 चैंपियन बनीं थीं और 17 साल की उम्र में जूनियर चैंपियन का खिताब अपने नाम किया था। लोहे का बार खरीदना परिवार के लिए भारी था तो उन्होंने बांस से ही बार बनाकर अपनी मेहनत जारी रखी।

चानू के बचपन की एक कहानी

एक बार चानू अपने बड़े भाई के साथ जंगल में लकड़ियां बीनने गई थी। जंगल में उनका बड़ा भाई लकड़ियों का भारी गठ्ठर नहीं उठा पाया लेकिन उनसे चार साल छोटी चानू जो उस समय सिर्फ 12 साल की थीं उस गठ्ठर को आसानी से उठा लिया। इसके बाद से ही वो वेटलिफ्टिंग के खेल में ही आगे बढ़ी।

पिछले साल 2017 वर्ल्ड चैंपियनशिप में उन्होंने गोल्ड हासिल किया। इसके बाद इस साल अप्रैल में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भी चानू ने गोल्ड मेडल हासिल किया था। हालांकि चोट के चलते वो एशियन गेम्स में हिस्सा नहीं ले पाई थी।

विदेश में भी भारत के ही चावल उबालकर खाती हैं मीराबाई

मीराबाई चानू की एक बेहद दिलचस्प बात बहुत कम लोगों को पता है। चानू जब भी विदेश में टूर्नामेंट खेलने जाती हैं तो वो भारत के चावल ले जाती हैं। वो विदेश में जहां भी होती हैं वो भारत के ही चावल उबालकर खाती हैं।



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