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बैट-बाल के बीच संतुलन जरूरी: सचिन

seema
Published on: 29 Jun 2018 4:51 PM IST
बैट-बाल के बीच संतुलन जरूरी: सचिन
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दुनिया के महान बल्लेबाज माने जाने वाले सचिन तेंदुलकर वनडे क्रिकेट में दो नई बॉल का उपयोग किए जाने के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि इस नियम के आने के बाद क्रिकेट में बैट और बॉल के बीच संतुलन बिगड़ गया है। सचिन का मानना है कि इस नियम के आने के बाद बोलर्स को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। सचिन क्रिकेट में ट्रिपल बी (बॉल, बैट और बैलंस) के पक्षधर हैं। उन्होंने कहा कि इस खेल की कामयाबी के लिए जरूरी है कि बॉल और बल्ले में संतुलन स्थापित किया जाए। सौरभ गांगुली, माइक अथर्टन और वकास युनूस जैसे क्रिकेटरों ने भी सचिन की बातों से सहमति जताई है।

गेंदबाजों के लिए कुछ नहीं बचा

सचिन का कहना है कि वनडे क्रिकेट के नए नियम बोलरों के लिए इतने घातक साबित हो रहे हैं कि उनके लिए अब कुछ नहीं बचा है। सचिन के मुताबिक यह नियम दूसरे मकसद से लाया गया था। उस समय का इसका मकसद बोलर्स को मदद करना था। जब एक ही गेंद से खेल होता था तो उसका रंग बिगड़ जाता था। इससे बल्लेबाजों को कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ता था मगर अब ऐसा नहीं है। अब जिस तरह की सतह पर खेल हो रहा है उस पर गेंदबाजों को बॉल स्विंग कराने में कोई मदद नहीं मिल रही है। अब ऐसी पिच बन रही है कि गेंदबाजों को कोई मदद नहीं मिल रही है। न तो वे शुरुआत के ओवरों में बॉल स्विंग करा पा रहे हों और न ही अंत के समय बॉल को रिवर्स स्विंग करा पा रहे हैं। पहले रिवर्स स्विंग को खेलने में काफी दिक्कत होती मगर अब गेंदबाजों का यह हथियार भी छीन लिया गया। इसी का नतीजा है कि अब वनडे क्रिकेट में काफी रन बन रहे हैं। गेंदबाजों के नजरिये से इस नियम की वकालत नहीं की जा सकती।

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गेंदबाजों को देनी होगी मददगार पिच

सचिन का कहना है कि अगर आप दो नई बॉल से खेल रहे हैं तो आपको ऐसी सतह भी देनी होगी जो गेंदबाजों को मदद उपलब्ध कराए। समय के साथ-साथ मैदान अब हरे-भरे रहते हैं। मैदान पर घास होने के कारण बॉल में भी किसी प्रकार का घिसाव नहीं होता। ज्यादातर घास में रहने के कारण अब बॉल अपना रंग ही नहीं छोड़ता।

सचिन का कहना है कि जब 25-25 का नियम आया तबसे मैं कोई बहुत ज्यादा वनडे क्रिकेट नहीं खेला हूं। इस नियम के आने तक मैं करीब-करीब वनडे क्रिकेट से रिटायर ही हो चुका था। उनका कहना है कि मैं तो फील्ड रिस्ट्रिक्शन के नए नियम में भी ज्यादा नहीं खेला। सचिन के मुताबिक दो नए बॉल वाले नियम के साथ मैं 1992 वल्र्ड कप में खेला था और इससे पहले 1991 में खेली गई त्रिकोणीय सीरीज के दौरान ऐसा हुआ था। इसके बाद से मैं हमेशा एक नई बॉल वाले नियम से ही खेला। शारजाह में हम ड्यूक की बॉल से खेले और भारत में हुए हीरो कप (1993 में) के दौरान कोकाबूरा की बॉल पहली बार इस्तेमाल में लाई गई। उन्होंने कहा कि सफेद बॉल के उपयोग से गेंदबाज को मदद मिलती थी क्योंकि यह रिवर्स स्विंग होती थी।

ऑस्ट्रेलिया व इंग्लैंड की सीरीज में गेंदबाजों को मदद नहीं

सचिन का कहना है कि नियम तुरंत बदलना संभव नहीं है। इसके लिए कई फैक्टर्स पर ध्यान देना होगा। खासतौर पर सतह पर ध्यान देना होगा। हमें मुख्य रूप से यह सोचना होगा कि दो नए बॉल के कॉन्सेप्ट से बल्लेबाज को कितना फायदा हो रहा है और बोलरों को कितना फायदा हो रहा है। हमें दो नए बॉल की एक नए बॉल से तुलना करनी होगी और फिर इस अंतर को समझना होगा। जब फील्ड रिस्ट्रिक्शंस का नियम लागू है और गेंद कोई हरकत नहीं करेगी तो पहलुओं पर भी विचार करना होगा। ऑस्ट्रेलिया व इंग्लैंड की सीरीज मेरे पॉइंट को फिर दोहराती है। अगर देखा जाए तो बोलरों को सतह से जो स्विंग मिलती है, वह पर्याप्त नहीं थी। जब सतह से कोई मदद नहीं मिलेगी, तब इतने रन जरूर बनेंगे। आज के समय में 320 रन का लक्ष्य भी सुरक्षित नहीं रहता। ऐसे में किसी को तो इस पर सोचना होगा कि खेल में संतुलन बना रहे। खेल की भलाई के लिए बॉल और बैट में संतुलन बना रहे ताकि क्रिकेट का भला हो।

गेंदबाज नहीं करा पाते रिवर्स स्विंग

इस नियम के कारण गेंद अब पुरानी ही नहीं होती और गेंदबाज रिवर्स स्विंग कराने में कामयाब नहीं हो पाता। इसी का नतीजा है कि पारी के अंतिम ओवरों में भी गेंदबाजों के हाथ बंधे रहते हैं। पहले गेंदबाज रिवर्स स्विंग पर काफी निर्भर होते थे। उन्हें यह आस होती थी कि अंत के समय जब गेंद पुरानी हो जाएगी तो उन्हें कुछ मदद मिलेगी और वे विकेट निकालने में कामयाब होंगे मगर इस नियम के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा। सचिन के मुताबिक टेस्ट और वनडे क्रिकेट में रिवर्स स्विंग हमेशा से एक बड़ा हथियार रहा है मगर जब से वनडे क्रिकेट में दो नई बॉल का नियम लागू हुआ है तब से किसी ने भी बॉस को रिवर्स स्विंग होते नहीं देखा। नए नियम ने रिवर्स स्विंग को वनडे क्रिकेट से पूरी तरह बाहर कर दिया है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि बल्लेबाज के लिहाज से तो यह नियम अच्छा है मगर गेंदबाज के लिहाज से बहुत खराब। इसे ठीक नहीं माना जा सकता।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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