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9 मार्च 1996 : जयसूर्या ने खुद को मुगले आजम और इंग्लैंड को अनारकली समझ लिया था
नई दिल्ली : 9 मार्च 1996 वो दिन जिसने क्रिकेट को दिया सनथ जयसूर्या। श्रीलंका का वो बल्लेबाज जो पिच पर आते ही गेंदबाजों का काल बन जाता था। मजे की बात ये है कि 96 के वर्ल्ड कप से पहले सनथ ने 98 वनडे मैच खेले। लेकिन औसत 20 भी नहीं था। जब वर्ल्ड कप समाप्त होने को आया तो जयसूर्या मैन ऑफ द वर्ल्ड कप भी बने और श्रीलंका बना चैम्पियन।
9 मार्च 1996 को पाकिस्तान के फैसलाबाद में इंग्लैंड के विरुद्ध जयसूर्या ने 44 गेंदों में 82 रनों ठोंक दिए। आज भले ही ये कम लगते हों लेकिन उस समय के हिसाब से ये कल्पना से परे थे।
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236 रनों का पीछा करते हुए श्रीलंका 56 गेंद बाकी रहते ही जीत गई थी। वर्ल्ड कप के पहले क्वार्टरफाइनल में श्रीलंका ने इंग्लैंड को 5 विकेट से हराया था। इसके बाद क्रिकेट पंडितों ने जयसूर्या को सिर आखों पर बैठा लिया था।
मचा था गदर
श्रीलंका इस टूर्नामेंट को जीतने की पूरी तैयारी करके ही मैदान में आई थी। 1992 में लागू हुई फील्ड रिस्ट्रिक्शन को टीम ने अपने लिए वरदान साबित कर लिया था। ओपनर जयसूर्या और रमेश कालूवितर्णा पहले 15 ओवरों में गेंदबाजों को इतना पीट देते थे कि बाद में आने वाले गेंदबाज समझ ही नहीं पाते थे कि हम यहां क्यों हैं।
भारत के खिलाफ जयसूर्या और रमेश ने सिर्फ चार ओवरों में 50 और केन्या के खिलाफ मैच में 3 ओवरों में 43 रन मार अपने तीखे तेवर दुनिया को जाहिर कर दिए थे। इन दोनों ने ही सिखाया कि पहले 15 ओवरों में ही विरोधियों की कमर तोड़ दो तो मैच जेब में।