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एक दूसरे के सदा पूरक रहे भाजपा और कल्याण सिंह
उत्तर प्रदेश में भाजपा और कल्याण सिंह एक दूसरे के पूरक हुआ करते थे लेकिन कल्याण सिंह जब भाजपा से अलग हुए तो जहां भाजपा भी कमजोर पड़ी तो दूसरी तरफ कल्याण सिंह भी कमजोर हुए।
लखनऊ। एक समय उत्तर प्रदेश में भाजपा और कल्याण सिंह एक दूसरे के पूरक हुआ करते थे लेकिन कल्याण सिंह जब भाजपा से अलग हुए तो जहां भाजपा भी कमजोर पड़ी तो दूसरी तरफ कल्याण सिंह भी कमजोर हुए। अपने जीवन में 60 साल तक राजनीति में सक्रिय रहे कल्याण सिह ने भाजपा से अलग होने के बाद अपनी एक अलग पार्टी भी बनाई थी। प्रखर हिंदुत्व और राष्टृवाद के मुद्दे पर बनी जनक्रान्ति पार्टी (राष्ट्रीय) ने चुनाव में भी हाथ आजमाया पर जल्द ही इसका फिर भाजपा में विलय हो गया।
अयोध्या आंदोलन के दौरान कल्याण सिंह के व्यापक प्रभाव के चलते भाजपा 221 सीटों के साथ उत्तर प्रदेश में पहली बार सत्तारूढ़ हुई। 1998 में भाजपा को अटल लहर के दौरान उसे रिकार्ड 36.49 वोट मिले। इसके बाद 1999 में कल्याण सिंह के मुख्य मंत्रित्वकाल में पार्टी में हुई अंतर्कलह के चलते लोकसभा चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत घटकर 27.44 प्रतिशत हो गया और उसे मात्र 29 सीटें ही मिल सकी। इसके बाद कल्याण सिंह भाजपा से निकाल दिये गयें। 2002 के विधानसभा चुनाव पहली बार कल्याण सिंह की अनुपस्थिति में चुनाव लड़े गए।
कल्याण सिंह ने अपनी जनक्रान्ति पार्टी बनाकर भाजपा प्रत्याशियों का किया विरोध
इन चुनाव कल्याण सिंह ने अपनी जनक्रान्ति (राष्ट्रीय) पार्टी बनाकर भाजपा प्रत्याशियों का जमकर विरोध किया। खुद तो सफलता हासिल नहीं कर सके पर भाजपा को बेहद कमजोर कर दिया। जनक्रान्ति (राष्ट्रीय) के 335 प्रत्याशी इन चुनावों में उतरें. जिसके कारण भाजपा का मत प्रतिशत 25,31 हो गया और उसे 88 सीटें मिली। इसके बाद हुए 2004 के लोकसभा चुनाव के पहले कल्याण सिंह फिर भाजपा में लौटे। हालांकि भाजपा को लोकसभा की मात्र 10 सीटों से ही संतोष करना पड़ा जबकि मतों का प्रतिशत घटकर 22-17 हो गया।
इन जिलों में कल्याण सिंह रखते थे व्यापक असर
इसके बाद उप्र में भाजपा को अपने मनमाफिक पार्टी चलाने की जिम्मेदारी मिलने के बाद साल 2007 के विधानसभा चुनाव कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर लड़े गए। उप्र के इन चुनावों में भाजपा को 51 सीटें मिली। जबकि मतों का प्रतिशत 19,62 प्रतिशत रहा। वैसे तो कल्याण सिंह का पूरे प्रदेश में राजनीतिक प्रभाव रहा पर फर्रूखाबाद, हमीरपुर, फिरोजाबाद, बदांयु, फतेहपुर एटा, अलीगढ, बुलन्दशहर, सहारनपुर, इटावा, मछलीशहर आदि जिलों में उनका व्यापक असर रखते थें।
राजनीतिक के शिखर पुरूष रहे कल्याण सिंह ने आज के न जाने कितने नेताओें को राजनीति का गुर सिखाया। अपने पुत्र राजवीर सिंह को स्थापित करने के साथ ही अपने पोते को भी विधायक बनवाने के साथ ही प्रदेश सरकार में मंत्री भी बनवाया।