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श्मशान में अर्थी के सामने चली तलवार और भाला, नजारा देख हक्का-बक्का हुए लोग, जानें पूरा मामला
MP News: मध्यप्रदेश के दमोह में श्मशान घाट में अर्थी के सामने लोगों ने तलवार, भाले और लाठियां चलाई। यह अपने गुरु के निधन पर श्रद्धांजलि देने की एक प्रक्रिया थी।
MP News: श्मशान घाट में अमूमन लोग नम आंखों से अपनों को विदाई देते नजर आते हैं। मगर भारत की विविधता में अंतिम यात्रा की विभिन्न परंपराए हैं। ऐसी ही एक मामला मध्यप्रदेश के दमोह की है। दमोह नगर के सीता बावली मुक्तिधाम में कई लोगों ने एक अर्थी के सामने जमकर तलवार, लाठी और भाला चलाया। श्मशान में मौजूद लोग यह देखकर दंग रह गए। यह अर्थी 84 वर्षीय पंडित रामचंद्र पाठक की थी।
गुरु को दी श्रद्धांजलि
पाठक कर्मकांडी पुरोहित होने के साथ ही पहलवान और दमोह जिले में चल समारोह में निकलने वाले कई अखाड़ों के प्रमुख रह चुके थे। उस्ताद के नाम से मशहूर पंडित रामचंद्र के हजारों शिष्य हैं। उन्हीं शिष्यों ने अर्थी के सामने बल्लम, बनेटी, भाला और तलवार सहित कई हथियार चलाकर अपनी कला का प्रदर्शन किया। यह गुरु शिष्य परंपरा का परंपरा का एक हिस्सा था। ऐसा करके शिष्य अपने गुरु को अंतिम विदाई और श्रद्धांजलि दी। पाठक को विदाई देने के लिए जिले भर के विभिन्न अखाड़ों के प्रमुख और कार्यकर्ता पहुंचे थे। अपने गुरु को विदाई देने के लिए सीता बावली मुक्तिधाम में शिष्यों की भीड़ लगी थी। उन्हें मखाग्नि देने से पहले शिष्यों ने तलवार, बल्लम, भाला, बनेटी आदि चलाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। उसके बाद उनका अंतिम संस्कार किया गया।
नम आंखों के साथ चलाए हथियार
पाठक कर्मकांडी पुरोहित तो थे ही उसके साथ ही वह पहलवान भी थे। दमोह जिले में चल समारोह में निकलने वाले कई अखाड़ों के प्रमुख थे। वह पांच दशक से अधिक समय तक अखाड़े में लोगों को तलवार, बल्लम, भाला, बनेटी चलाना अपने शिष्यों को सिखाते थे। उनके हाथ से निकले हुए नवयुवक अब प्रशिक्षण के साथ अखाड़ों का संचालन कर रहे हैं। हालांकि अब यह विद्या धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। मगर गुरु को अंतिम समय में श्रद्धांजलि देने के लिए शिष्यों ने नम आंखों के साथ हथियार चलाए। यह देखने वाले लोग दंग रह गए।