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जामिया एलुमनाई एसोसिएशन के अध्यक्ष ने दिल्ली कोर्ट में कहा: केवल प्रदर्शनकारी होना कोई अपराध नहीं

जामिया मिलिया इस्लामिया एलुमनाई एसोसिएशन के अध्यक्ष शिफा-उर-रहमान ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि प्रदर्शनकारी होना कोई अपराध नहीं है और हर व्यक्ति को अपनी राय रखने का अधिकार है।

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Newstrack NetworkPublished By Deepak Kumar
Published on: 24 Aug 2021 5:31 PM GMT
Delhi Riots
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दिल्ली दंगे। (Social Media)

जामिया मिलिया इस्लामिया एलुमनाई एसोसिएशन के अध्यक्ष शिफा-उर-रहमान ने 24 अगस्त को दिल्ली की एक अदालत में कहा कि केवल प्रदर्शनकारी होना कोई अपराध नहीं है और हर व्यक्ति को अपनी राय रखने का अधिकार है। रहमान ने दिल्ली दंगों के एक मामले में अपनी जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष यह तर्क रखा। इतना ही नहीं उसने अधूरी जांच पर मुकदमा चलाने की मंजूरी पर भी सवाल उठाया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के समक्ष रहमान की ओर से पेश अधिवक्ता अभिषेक सिंह ने तर्क रखा कि किसी संस्था का सदस्य या एएजेएमआई का हिस्सा होना कोई अपराध नहीं है। प्रदर्शनकारी होना कोई अपराध नहीं है। एक व्यक्ति अपनी राय का हकदार है। जेसीसी का सदस्य होना कोई अपराध नहीं है। जेसीसी एक व्हाट्सएप ग्रुप है।

उन्होंने कहा रहमान के खिलाफ यूएपीए के तहत केस चलाने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार की ओर से जारी स्वीकृति आदेश एक शून्य है। उन्होंने कहा मंजूरी देना आरोप पत्र दाखिल करने या मामले में संज्ञान लेने के लिए एक पूर्वापेक्षा है। उन्होंने कहा कि मुकदमा चलाने की मंजूरी एकत्रित साक्ष्यों की समीक्षा के बाद दी जानी चाहिए थी।

सवाल यह उठता है कि क्या इस तरह की स्वतंत्र समीक्षा की जा सकती है यदि जांच आधी हुई हो। उन्होंने कहा यदि जांच ही पूरी नहीं हुई तो मुकदमें की मंजूरी कैसे दी जा सकती है। अधिवक्ता ने कहा कि 31 जुलाई, 2020 को यदि जांच पूरी नहीं हुई थी तो जांच की स्वतंत्र समीक्षा कैसे हो सकती थी? उन्हें सबूत कैसे प्रदान किए गए थे? इस तारीख तक यदि जांच पूरी नहीं हुई तो इसे एक जांच रिपोर्ट कैसे मान सकते है।

उन्होंने कहा यह मंजूरी की अमान्यता का मामला नहीं है। यह मंजूरी की शून्यता का मामला है। यदि वह पूर्व शर्त पूरी नहीं होती है, तो मंजूरी अमान्य होगी। मेरे खिलाफ यह तर्क नहीं दिया जा सकता है कि मंजूरी एक ऐसी चीज है जिसे मेरे खिलाफ देखा जाएगा। उन्होंने कहा विरोध करने का एक मौलिक अधिकार है।

आप उसे दंगाइयों के ब्रैकेट में क्यों डाल रहे हैं, न कि प्रदर्शनकारी। उसने कुछ वित्तीय व्यवस्था भी की थी। उसने कुछ प्रदर्शनकारियों को भुगतान किया जो विरोध कर रहे थे लेकिन क्या यह यूएपीए के तहत अपराध है?

पुलिस ने आरोपी पर एक बड़ी साजिश का लगाया आरोप

पिछले वर्ष हुए दंगो के सिलसिले में पुलिस ने आरोपी पर एक बड़ी साजिश का आरोप लगाया है। उस पर यूएपीए की धारा 13, 16, 17, 18, आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम, 1984 की धारा 3 और 4 और भारतीय दंड के तहत अन्य अपराधों सहित कड़े आरोप शामिल हैं।

Deepak Kumar

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