संगठन से लेकर सरकार तक ऊंचाइयों पर रहे कल्याण सिंह

उत्तर प्रदेश में भाजपा की राजनीति के पर्याय रहे कल्याण सिंह पार्टी की यूपी इकाई के अध्यक्ष रहने के साथ ही दो बार यहां के मुख्यमंत्री बने। इसके अलावा सितंबर 2014 में राजस्थान व जनवरी 2015 से अगस्त 2015 तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी बने।

Shreedhar Agnihotri
Published on: 21 Aug 2021 6:02 PM GMT (Updated on: 21 Aug 2021 6:17 PM GMT)
former UP CM Kalyan Singh
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यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह।(Social Media)

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में भाजपा की राजनीति के पर्याय रहे कल्याण सिंह का लम्बी बीमारी के बाद आज 89 वर्ष में यहां निधन हो गया। कल्याण सिंह का लम्बा राजनीतिक जीवन रहा। वह उत्तर प्रदेश में भाजपा की राजनीति के पर्याय रहे कल्याण सिंह पार्टी की यूपी इकाई के अध्यक्ष रहने के साथ ही दो बार यहां के मुख्यमंत्री बने। इसके अलावा राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी बने। कल्याण सिंह को भाजपा की राजनीति में प्रखर हिन्दुत्व व राष्ट्रवादी चेहरा माना जाता था। अयोध्या आंदोलन को धार देने और एक रामभक्त होने के नाते उन्होंने सत्ता को मोह छोडकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया था।

कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1935 को अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील के मढ़ौली ग्राम के एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम तेजपाल सिंह लोधी और माता का नाम सीता देवी था। कल्याण सिंह बचपन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़कर संघ की शाखाओं में जाने लगे थे। गरीब किसान परिवार में जन्म लेने के बाद भी कल्याण सिंह ने उच्च शिक्षा प्राप्त कर अध्यापक की नौकरी की। साथ-साथ वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ कर राजनीति के गुण भी सीखते रहे।

पहला चुनाव 1967 मे अतरौली से लड़कर पहुंचे यूपी विधानसभा

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जनसंघ में आने वाले कल्याण सिंह ने अपना पहला चुनाव 1967 मे अतरौली से लड़कर यूपी विधानसभा पहुंचे। इसके बाद वह लगातार 1980 तक चुनाव जीतते रहे। इस बीच जब जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ और 1977 में उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्हें रामनरेश यादव की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। इसके बाद 1980 के चुनाव जनता पार्टी टूट गई तो इस चुनाव में कल्याण सिंह को हार का सामना करना पड़ा।

भारतीय जनता पार्टी का जब 6 अप्रैल 1980 को गठन हुआ तो कल्याण सिंह को पार्टी का प्रदेश महामंत्री बनाया गया। उन्हें जब प्रदेश पार्टी की कमान भी सौंपी गई तो इसी बीच अयोध्या आंदोलन की शुरुआत हो गया जिसमें उन्होंने गिरफ्तारी देने के साथ ही कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने का काम किया। इस आंदोलन के दौरान ही उनकी इमेज रामभक्त की हो गई। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। राम मंदिर आंदोलन की वजह से उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में भाजपा का उभार हुआ और जून 1991 में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। इसमें कल्याण सिंह की अहम भूमिका रही इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। कल्याण सिंह की सरकार के दौरान ही बाबरी ढांचा विध्वंस हो गया तो इसका सारा दोष अपने ऊपर लेते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

भाजपा को कल्याण सिंह के रूप में मिला हिंदुत्ववादी चेहरा

यहीं से भाजपा को कल्याण सिंह के रूप में हिंदुत्ववादी चेहरा मिल गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में अनेक आयाम छुए। 1993 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह अलीगढ़ के अतरौली और एटा की कासगंज सीट से विधायक निर्वाचित हुए। इन चुनावों में भाजपा कल्याण सिंह के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। लेकिन सपा-बसपा ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में गठबन्धन सरकार बनाई और उत्तर प्रदेश विधानसभा में कल्याण सिंह विपक्ष के नेता बने।

इसके बाद कल्याण सिंह 1997 से 1999 तक भाजपा के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। 1998 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में 58 सीटें जीतीं। 1999 में भाजपा से मतभेद के कारण कल्याण सिंह ने भाजपा छोड़ दी। कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का गठन किया और 2002 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अपने दम पर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी से लड़ा। राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के चार विधायक चुने गए लेकिन कल्याण सिंह ने अपने दम पर पूरे प्रदेश में भाजपा को बडा नुकसान पहुंचाया।

इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव के पहले कल्याण सिंह ने भाजपा में वापसी बुलन्दशहर से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा। चुनाव जीतकर वह पहली बार संसद पहुंचे। इसके बाद 2007 का उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में लड़ा गया। लेकिन भाजपा को इसमें कोई बड़ी सफलता नहीं मिल सकी।

2009 चुनाव में एटा से चुने निर्दलीय सांसद

2009 में कल्याण सिंह भाजपा से फिर नाराज हो गए तो उन्होंने भाजपा का दामन छोड़ कर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से नजदीकियां बढ़ा लीं। मुलायम सिंह की पार्टी के समर्थन से उन्होंने वह 2009 चुनाव में एटा से निर्दलीय सांसद चुने गए। लेकिन इस चुनाव में मुलायम सिंह यादव की पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ। उनका एक भी मुस्लिम प्रत्याषी चुनाव नहीं जीत सका। पार्टी में कलह हुई तो मुलायम सिंह ने कल्याण से नाता तोड़ लिया। इसके बाद कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय जनक्रान्ति पार्टी का गठन किया जो कि 2012 के विधानसभा चुनाव में कुछ विशेष नहीं कर सकी।

2013 में कल्याण सिंह की भाजपा में पुनः वापसी

एक बार फिर 2013 में कल्याण सिंह की भाजपा में पुनः वापसी हुई तो 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा का खूब प्रचार किया। भाजपा ने अकेले अपने दम पर यूपी में 80 लोकसभा सीटों से 71 लोकसभा सीटें जीतीं। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो मोदी सरकार ने कल्याण सिंह को सितंबर 2014 में राजस्थान का राज्यपाल बना दिया। इसके बाद कल्याण सिंह को जनवरी 2015 से अगस्त 2015 तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया। अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्होंने भाजपा की फिर से सदस्यता ली। इन दिनों वह अपने घर पर आराम कर रहे थे तभी उनका स्वास्थ्य खराब हो गया था ।वह पिछले एक महीने से अस्पताल में थें .

Deepak Kumar

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