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DeepSeek: डीपसीक ने दिखाई इनोवेशन की ताकत, भारत के लिये है बड़ा सबक
DeepSeek: डीपसीक की रिलीज़ ने स्टॉक मार्केट पर गहरा असर डाला है। सबसे ज्यादा प्रभाव चिप निर्माता कंपनी 'एनवीडिया' पर पड़ा है क्योंकि ये कम्पनी एआई मॉडल को शक्ति देने वाले कंप्यूटर चिप्स की एक प्रमुख निर्माता है।
DeepSeek: चीनी स्टार्टअप डीपसीक के सस्ते और पावरफुल एआई मॉडल ने दुनिया में तहलका मचा दिया है। अभी तक अमेरिका समेत सभी देश चीन को आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस के मामले में कमजोर मानते थे लेकिन चीन ने सभी आंकलन झूठे साबित कर दिए हैं। चीनी कम्पनी ने साबित कर दिया है कि जिस एआई को डेवलप करने में अमेरिकी कम्पनियों को अरबों डॉलर खर्च करने पड़ रहे थे उसे मात्र चंद लाख डॉलर में डेवलप किया जा सकता है। उसने ये भी साबित कर दिया है कि एआई मॉडल को बहुत कम एनर्जी खर्च कर ऑपरेट किया जा सकता है। कुल मिला कर चीन ने एआई में अमेरिका की बादशाहत को तगड़ी चुनौती दी है और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस स्थिति को स्वीकार भी किया है।
भारत पर प्रभाव
डीपसीक के उभरने के बाद, एआई के क्षेत्र में भारत की पोजीशन के बारे में चर्चा शुरू हो गई है। सोशल मीडिया, खासकर रेडिट पर लोग भारत की स्थिति पर गम्भीर रिएक्शन दे रहे हैं। देश के प्रमुख संस्थानों में से एक में छात्र होने का दावा करने वाले एक यूजर ने रेडिट पर एक पोस्ट में कहा कि चीन चूंकि हार्डवेयर के मामले में अमेरिका से पीछे है सो उसकी एकमात्र उम्मीद बाजार पर अमेरिकी कंपनी के प्रभुत्व को कम करने के लिए अपने सभी डेवलपमेंट को ओपन सोर्स करना है। यदि आप पिछले 2 वर्षों से चीन से आने वाले सीएसई पेपर्स को देखें, तो आपको एहसास होगा कि हम दशक से नहीं, बल्कि एक सदी से पीछे रह गए हैं।” इस यूजर ने लिखा कि गाड़ी छूट चुकी है और एक बार फिर हम पश्चिम के लिए आउटसोर्स सर्विसप्रोवाइडर या डेटा बाज़ार बन गए हैं।
इस पोस्ट ने भारतीय आईटी कंपनियों और स्टार्ट-अप्स पर व्यापक चर्चा शुरू कर दी है, जिसमें कई उपयोगकर्ताओं ने एआई के प्रति भारत के दृष्टिकोण की आलोचना की है।
- एक यूजर ने लिखा, "हमने कभी भी तकनीकी क्रांति की बस ट्रेन या साइकिल नहीं पकड़ी है। सभी आत्म-प्रशंसा आईटी सर्विस राजस्व के लिए है। वास्तविक रूप से हम दुनिया की किसी भी उपलब्धि के करीब भी नहीं हैं।"
- एक अन्य यूजर ने लिखा, "भारत के सबसे बड़े संगठनों की किसी भी तरह के शोध में कोई दिलचस्पी नहीं है, फार्मा के बाहर शोध के लिए सरकार के बजट सीमित हैं, और शिक्षा और सामाजिक व्यवस्था शोध को प्रोत्साहित नहीं करती है, बल्कि इंजीनियरिंग और सेवाओं को प्रोत्साहित करती है। इससे पहले भी, जब ब्लॉकचेन तकनीक शोध का चलन था, मुझे भारत से कोई रिसर्च पेपर देखने की याद नहीं है।"
- एक यूजर ने लिखा, हमारे स्टार्टअप कुछ सार्थक करने की बजाए सिर्फ एपीआई रैपर बनाने में व्यस्त हैं।
इनोवेशन है असल कुंजी
डीपसीक आर1 के दडेवलपमेंट ने लंबे समय से चली आ रही इस धारणा को तोड़ दिया है कि अत्याधुनिक एआई के लिए अरबों डॉलर के निवेश और विशाल बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है। अपने मामूली बजट और कुशल डिजाइन के साथ, इस प्लेटफ़ॉर्म ने साबित कर दिया है कि छोटी टीमें भी अभूतपूर्व परिणाम प्राप्त कर सकती हैं। कुंजी सिर्फ इनोवेशन है, इसने साबित कर दिया है।
भारत के लिए, जहाँ स्टार्टअप को अक्सर संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, यह एक तगड़ा सबक है कि इनोवेशन सिर्फ पूंजी का काम नहीं है। डीपसीक की सफलता ने भारतीय उद्यमियों को ये बता दिया है।
आगे का रास्ता
भारत जैसे देशों के लिए इसका निहितार्थ यह है कि अगर बेसिक एआई मॉडल सस्ते में बनाये - डेवलप किए जा सकते हैं, तो यह अपने खुद के मॉडल बनाने के इच्छुक देशों के लिए रास्ता बहुत आसान कर देगा। डीपसीक और अलीबाबा मॉडल की सफलता ने दिखाया है कि मॉडल बनाने की लागत को वास्तव में कम किया जा सकता है। यह उन देशों के लिए एक महत्वपूर्ण बात है जो इस दौड़ में शामिल होना चाहते हैं लेकिन प्रोसेसिंग यूनिट यानी चिप्स की उपलब्धता या बेसिक मॉडल को शुरू से स्थापित करने और डेटा की खोज करने के लिए जरूरी फंड्स जैसे संसाधनों से कमजोर हैं।
भारत में इस बात पर बहस चल रही है कि क्या एक बेसिक मॉडल को शुरू से ही बनाया जाए या फिर आगे बढ़ने के लिए पहले से उपलब्ध ओपन सोर्स एलएलएम पर निर्भर रहा जाए। इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी ने कहा है कि भारत को बड़े लैंग्वेज मॉडल बनाने पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए, जबकि एआई उद्योग में अन्य लोग, जिनमें पेरप्लेक्सिटी एआई के संस्थापक अरविंद श्रीनिवास भी शामिल हैं, ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि नीलेकणी की यह टिप्पणी कि भारत को अपने स्वयं के एआई मॉडल बनाने की आवश्यकता नहीं है, "गलत है।"
बाजार पर असर
डीपसीक की रिलीज़ ने स्टॉक मार्केट पर गहरा असर डाला है। सबसे ज्यादा प्रभाव चिप निर्माता कंपनी "एनवीडिया" पर पड़ा है क्योंकि ये कम्पनी एआई मॉडल को शक्ति देने वाले कंप्यूटर चिप्स की एक प्रमुख निर्माता है। डीपसीक की रिलीज का असर ये पड़ा कि एनवीडिया के शेयर गिर गए और कम्पनी ने अपने बाजार मूल्य से लगभग 600 बिलियन डॉलर खो दिए। यही नहीं, गूगल की मूल कंपनी ने 100 बिलियन और माइक्रोसॉफ्ट ने 7 बिलियन डॉलर खो दिए। एनवीडिया की गिरावट अमेरिकी शेयर बाजार के इतिहास में सबसे बड़ी गिरावट थी। बता दें कि नवंबर 2022 में ओपनएआई के चैटजीपीटी के लॉन्च से एनवीडिया के शेयर में जबरदस्त उछाल आया था।
पश्चिम में शेयर बाजार में बिकवाली के लिए तीन व्यापक ट्रिगर हो सकते हैं। सबसे बड़ा ट्रिगर यह अहसास है कि डीपसीक ने बहुत कम चिप्स का उपयोग करके बहुत कम लागत पर एक बेसिक मॉडल को प्रशिक्षित करने में कामयाबी हासिल की है, जो अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों जैसे चैटजीपीटी और मेटा के लामा के समान है। इस अहसास ने चिंता पैदा की कि एआई मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए आवश्यक विशेष हार्डवेयर की तगड़ी मांग अब कम हो जाएगी। यह स्पष्ट रूप से एनवीडिया जैसी कंपनियों के लिए खतरा है, जिन्होंने वैश्विक एआई बूम से मांग अनुमानों पर अपना भविष्य टिका रखा है।
दूसरी बड़ी चिंता यह है कि चैटजीपीटी के लॉन्च होने के बाद से एआई में चीन पर अमेरिका की बढ़त कम होती दिखती है। चीन का आगे निकल जाना चौंकाने वाला है क्योंकि इसे वास्तव में बहुत पीछे देखा गया था। अमेरिका ने चीनी एआई की प्रगति को धीमा करने की पूरी कोशिश की थी।
ट्रम्प की चेतावनी
डीपसीक की प्रगति पर प्रतिक्रिया देते हुए, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे अमेरिकी उद्योगों के लिए "चेतावनी" करार दिया है। ट्रंप ने कहा कि अगर डीपसीक के अमेरिकी मॉडल के बराबर मॉडल डेवलप करने के दावे सच हैं, और इसे बनाने में बहुत कम समय लगा है, तो वे इसे "सकारात्मक" मानते हैं। हमें जीतने के लिए प्रतिस्पर्धा पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।"