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Starlink के India में एंट्री से मंडरा सकता है राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा, रक्षा और डेटा को लेकर बढ़ी चिंताएं

भारत में स्टारलिंक की एंट्री से कनेक्टिविटी में सुधार की उम्मीद जताई जा रही है, लेकिन इसके साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर खतरे भी सामने आ रहे हैं। रक्षा डेटा की लीक, साइबर हमले और विदेशी निगरानी की चिंताएं बढ़ गई हैं।

Newstrack          -         Network
Published on: 20 March 2025 4:07 PM IST (Updated on: 20 March 2025 4:11 PM IST)
Starlink के India में एंट्री से मंडरा सकता है राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा,  रक्षा और डेटा को लेकर बढ़ी चिंताएं
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भारतीय मूल की अंतरिक्ष वैज्ञानिक सुनीता विलियम्स को नौ महीने बाद सुरक्षित धरती पर लाने के लिए एलन मस्क की स्पेस X ने जो पहल की है, उसने दुनियाभर में सराहना हासिल की है। इसके अलावा, मस्क की दूसरी कंपनी, स्टारलिंक, जो सैटेलाइट तकनीकी के क्षेत्र में अत्याधुनिक सेवाएं प्रदान करती है ने भी एक महत्वपूर्ण साझेदारी की है। इस साझेदारी के तहत भारतीय कंपनियां, जैसे एयरटेल और रिलायंस जियो, अपनी इंटरनेट सेवाओं के लिए स्टारलिंक से जुड़ी हैं। हालांकि, इस डील को लेकर भारत में सुरक्षा से संबंधित कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं, जिनमें न केवल व्यक्तिगत सुरक्षा, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे भी शामिल हैं।

इससे पहले, जो इंटरनेट सेवाएं हमारे घरों तक पहुंचती हैं, उनके लिए मोबाइल कंपनियों को फाइबर ऑप्टिक केबल और टॉवर्स की आवश्यकता होती है, जिसके कारण पहाड़ी इलाकों, घने जंगलों और दूरदराज के गांवों में कनेक्टिविटी की कमी बनी रहती है। वहीं, स्टारलिंक की तकनीक इस समस्या का समाधान पेश करती है, क्योंकि यह सैटेलाइट्स के जरिए इंटरनेट सिग्नल सीधे पहुंचाती है, बिना जमीन पर टॉवर्स या केबल लगाए। इस लिहाज से, स्टारलिंक का भारत में आना एक क्रांतिकारी कदम माना जा सकता है, खासकर जब भारत की भौगोलिक स्थिति में कई इलाके पहाड़ों, रेगिस्तानों और जंगलों से घिरे हैं। लेकिन इसके साथ कुछ सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी सामने आई हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

भारत की सुरक्षा को खतरा?

इस साझेदारी के साथ यह सवाल उठता है कि क्या इससे भारत की सुरक्षा को खतरा हो सकता है, खासकर रक्षा प्रतिष्ठानों, सैन्य ठिकानों और संवेदनशील डेटा की सुरक्षा को लेकर।

डेटा सुरक्षा और जासूसी का खतरा

स्टारलिंक एक सैटेलाइट-आधारित इंटरनेट सेवा है, जिसमें डेटा सीधे सैटेलाइट्स के जरिए भेजा और प्राप्त किया जाता है। ऐसे में यदि सही सुरक्षा उपाय नहीं किए जाते, तो विदेशी कंपनियां संवेदनशील डेटा पर नियंत्रण कर सकती हैं, जिससे रक्षा जानकारी लीक होने का खतरा हो सकता है।

भारत पहले भी साइबर हमलों और डेटा लीक के मामलों का शिकार हो चुका है। यदि स्टारलिंक के सर्वर और डेटा केंद्र भारत के बाहर स्थित होते हैं, तो भारतीय रक्षा योजनाओं, सैन्य ठिकानों और हथियारों की तैनाती से जुड़ी जानकारी लीक होने का खतरा हो सकता है।

संभावित सुरक्षा जोखिम

1. सैन्य ठिकानों की ट्रैकिंग: स्टारलिंक की लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट्स रियल-टाइम डेटा ट्रांसमिट कर सकती हैं, जिससे भारतीय सेना की मूवमेंट, मिसाइल लॉन्च पैड्स, एयरबेस और नौसेना डॉकयार्ड्स का ट्रैक किया जा सकता है।

2. डेटा सर्वरों का विदेशी नियंत्रण: इस डील के चलते, सभी डेटा विदेशी कंपनियों के नियंत्रण में हो सकता है, हालांकि यह कहा जा रहा है कि सर्वर भारत में रखे जाएंगे, फिर भी डेटा अंततः विदेशी कंपनियों के नियंत्रण में ही रहेगा।

3. साइबर हमले: भारत में कई महत्वपूर्ण रक्षा और परमाणु प्रतिष्ठान हैं, जो विदेशी साइबर हमलों का शिकार हो सकते हैं। यदि स्टारलिंक के सिस्टम को हैक किया जाता है, तो महत्वपूर्ण रक्षा जानकारी दुश्मन देशों के हाथ में जा सकती है।

4. संचार का इंटरसेप्शन: भारतीय सेना के ऑपरेशन्स में गुप्त संचार प्रणाली का उपयोग किया जाता है। अगर स्टारलिंक जैसी विदेशी सेवा का उपयोग किया जाता है, तो संदेशों को इंटरसेप्ट या डिक्रिप्ट किया जा सकता है।

भारत को क्या कदम उठाने चाहिए?

1. कंट्रोल सेंटर का निर्माण: सरकार को एक स्थानीय कंट्रोल सेंटर स्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि यदि कोई सेवा बंद करनी हो, तो इसका नियंत्रण भारत में हो।

2. सैटेलाइट कॉल्स के लिए नियम बनाना: विदेशों में की जाने वाली कॉल्स को भारत में बनाए गए स्टारलिंक गेटवे से होकर भेजने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

3. स्वदेशी नेटवर्क का निर्माण: सभी सैन्य और सरकारी उपयोग के लिए एक विशेष नेटवर्क बनाया जाए, जो पूरी तरह से भारत के नियंत्रण में हो।

4. साइबर सुरक्षा पॉलिसी को मजबूत करना: भारत को अपनी साइबर सुरक्षा नीति को सशक्त बनाना होगा, ताकि विदेशी कंपनियां रक्षा से जुड़ी संवेदनशील जानकारी एक्सेस न कर सकें।

5. स्वदेशी सैटेलाइट नेटवर्क का विकास: भारत को ISRO और DRDO के सहयोग से स्वदेशी सैटेलाइट इंटरनेट नेटवर्क विकसित करना चाहिए, ताकि रक्षा क्षेत्र में विदेशी कंपनियों का इस्तेमाल न हो।

6. डिजिटल बुनियादी ढांचे को मजबूत करना: विदेशी कंपनियों के साथ डील करते समय राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े जोखिमों को ध्यान में रखते हुए, उचित सुरक्षा उपायों को अपनाना जरूरी है।

7. स्वदेशी तकनीकों को बढ़ावा देना: भारत को स्वदेशी तकनीकों को बढ़ावा देना चाहिए और साइबर सुरक्षा उपायों को मजबूत करना चाहिए, ताकि कोई विदेशी कंपनी हमारे रक्षा तंत्र में सेंध न लगा सके।

Shivam Srivastava

Shivam Srivastava

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