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इस तिथि का शास्त्रों में है बहुत महत्व, इस दिन पूजा करने से विवाह में नहीं होता है विलंब

suman
Published on: 25 April 2017 11:21 AM IST
इस तिथि का शास्त्रों में है बहुत महत्व, इस दिन पूजा करने से विवाह में नहीं होता है विलंब
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लखनऊ: अक्षय तृतीया को युगादि तिथि भी कहा जाता है। इसमें सतयुग के कल्पभेद से त्रेतायुग की शुरुआत तक है । वैशाख माह की तेज धूप और प्रचंड गर्मी से प्रत्येक जीवधारी भूख-प्यास से व्याकुल हो जाते हैं। इसलिए इस तिथि में शीतल जल, कलश, चावल, चने, दूध, दही, खाद्य व पेय पदार्थों सहित वस्त्राभूषणों का दान अक्षय व अमिट पुण्यकारी माना गया है। ग्रीष्म ऋतु का आगमन व लहलहाती फसल से लोगों में खुशी का संचार होता है। इसके साथ ही विभिन्न व्रत-पर्वों की भी दस्तक सुनाई देने लगती है। इस बार 28 अप्रैल को अक्षय तृतीया पर्व है। इस व्रत पूजा करने का विधान है।

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स्नान-दान का है महत्व

सुख, शांति, सौभाग्य तथा समृद्धि हेतु इस दिन शिव-पार्वती और नर-नारायण के पूजन का विधान है। इस दिन श्रद्धा विश्वास के साथ व्रत रख जो भी मनुष्य पवित्र नदियों में स्नान कर अपनी शक्तिनुसार देवस्थल व घर में ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ, होम, देव-पितृ तर्पण, जप, दानादि शुभ कर्म करते हैं, उन्हें उन्नत व अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

आगे...गौरी पूजन के साथ विवाह की बाधा दूर

तृतीया तिथि में मां गौरी की तिथि है, जो बल-बुद्धिवर्धक मानी गई है अत: सुखद गृहस्थ की कामना से जो भी विवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन मां गौरी व संपूर्ण शिव परिवार की पूजा करते हैं उनके सौभाग्य में वृद्धि होती है।

जिन कुवांरों की शादी में विघ्न पड़ रहा है। उन्हें इस दिन श्रद्धा-विश्वास से प्रभु शिव व माता गौरी को परिवार सहित शास्त्रीय विधि से पूजते हैं, तो वो जल्द ही परिणय सूत्र में बंध जाते हैं।

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सुख-शांति सौभाग्य की वृद्धि

वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन यानी अक्षय तृतीया में पूजा, जप-तप, दान, स्नानादि शुभ कार्यों का विशेष महत्व रहता है। इस तिथि का बहुत धार्मिक महत्व है, इस दिन सोने-चांदी की खरीद को बहुत ही शुभ माना जाता है ।अक्षय तृतीया के दिन बाजारों की रौनक बढ़ जाती है। अक्षय तृतीया सुख-शांति व सौभाग्य में निरंतर वृद्धि करने वाली है ।

आगे... बद्रीनारायण धाम के खुलते हैं कपाट

अक्षय' जो कभी क्षय यानी नष्ट न हो, ऐसी युगादि तिथि में किए गए शुभ व धर्मकार्य वृद्धिदायक व अक्षय रहते हैं और जीवन के दुर्भाग्य का अंत होता है। मानव कल्याण की इच्छा से धर्मशास्त्रों में पुण्य शुभ पर्व की कथाओं की आवृत्ति हुई है। जिसमें अक्षय तृतीया का व्रत भी प्रमुख है, जो अपने आप में स्वयंसिद्ध है। इसी दिन श्री बद्रीनारायण धाम के पट खुलते हैं, श्रद्धालु भक्त प्रभु की अर्चना-वंदना करते हुए विविध नैवेद्य अर्पित करते हैं।



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