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चने की दाल और प्याज का भोग लगाने से यहां पूरी होती है मनोकामना

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Published on: 31 Aug 2017 9:12 AM GMT
चने की दाल और प्याज का भोग लगाने से यहां पूरी होती है मनोकामना
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चने की दाल और प्याज का भोग लगाने से यहां पूरी होती है मनोकामना

सहारनपुर: आप किसी भी प्रकार की परेशानी से ग्रस्त हैं और आपके पास अपने ईष्टदेव भगवान को भोग लगाने के लिए पैसे भी नहीं हैं, तो चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है। सहारनपुर में एक तीर्थ ऐसा है, जहां पर भगवान मात्र चने की दाल और प्याज का भोग अर्पित करने से ही प्रसन्न हो जाते हैं और मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। यह देव हैं जाहरवीर गोगावीर।

जहारवीर गोगावीर की स्मृति में आज से नगर निगम सहारनपुर की ओर से भव्य मेला आयोजित किया जा रहा है। यहां हर वर्ष लगने वाले मेलों में जाहरवीर गोगा की म्हाड़ी पर लगने वाले मेला सहारनपुर की अनोखी पहचान व भाईचारे की एकता का प्रतीक है। भादो माह में शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन जिले के अलावा पड़ोसी राज्यों तक से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां गंगोह रोड स्थित जाहरवीर गोगा की म्हाड़ी पर पहुंच मन्नते मांगते हैं।

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श्रद्धालुओं का मानना है कि जाहरवीर गोगा से मांगी मन्नते पूरी होती हैं। मान्यता है कि जाहरवीर बाबा को चने की दाल और प्याज बेहद पसंद थी। इसी वजह से उन्हें चने की दाल और प्याज का भोग लगाया जाता है।

क्या हैं जाहरवीर गोगा का इतिहास?

जाहरवीर का जन्म राजस्थान के चुरू जिले के गांव ददरेगा में हुआ था। चुरू जिले का नाम बाद में राजगढ़ हो गया। इनके पिता का नाम जेवर सिंह व माता का नाम बाछल था। ये राजा उमर सिंह के वंशज थे। जो अत्यंत बलशाली वीर थे। इनके पास विशाल सेना व आलीशान भवन था। दान धर्म में बेहद रूचि रखते थे। इनके दर से कोई भी जरूरतमंद निराश नहीं लौटता था।

बताते हैं कि जाहरवीर गोगा के जन्म से पूर्व उनके पिता जेवर सिंह काफी सोच में रहते थे। एक दिन एक महात्मा उनके द्वार पर पहुंचे तो उन्होंने जेवर सिंह को आशीर्वाद देकर कहा कि तुम्हारें घर में ऐसा पुत्र पैदा होगा, जो दुष्टों का विनाश करेगा और न्यायधर्म की रक्षा करेगा। महात्मा जी के हुकुम पर बाग में कुएं का निर्माण कराने के साथ प्याऊ लगवाया गया था। महात्माओं के आशीर्वाद के बाद बाछल ने पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम जाहरवीर रखा गया।

कबली भगत को दिया था चांदी का नेजा

बताते हैं कि बाबा जाहरवीर गोगा अक्सर गंगा स्नान के लिए हरिद्वार जाया करते थे। अपनी यात्रा के दौरान वे यहां गंगोह मार्ग पर ही रुका करते थे। बाबा जाहरवीर ने कई सदियों पूर्व मछुआरे कबली भगत को को दर्शन देकर अपना चांदी का निशान नेजा दिया था और साथ ही यह भी कहा था कि वह मछली पकड़ने का काम छोड़कर इस स्थान पर म्हाड़ी बनवाकर पूजा करें।

इस पर कबली भगत ने बाबा जाहरवीर गोगा के आगे अपनी जीविका चलाने की मजबूरी बताई, जिस पर बाबा ने कहा कि यदि वह भादो माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को उनके नाम का मेला भरवाएं तो उसकी पूरे वर्ष की रोजी-रोटी चलती रहेगी। कबली भगत ने उनकी आज्ञा को माना और उसी के अनुसार यहां म्हाड़ी का निर्माण करा दिया। तभी से म्हाड़ी स्थल पर जाहरवीर गोगा का यह ऐतिहासिक मेला लगता चला आ रहा है।

किसी जमाने में यह मेला अंबाला रोड पर कुतुबशेर चौक से लेकर बड़ी नहर तक भरता था। बाद में प्रशासन ने इसके लिए भैरव मंदिर के बगल में स्थान नियत कर दिया था। इसके बाद से मेले की रौनक ओर बढ़ गई थी। दशमी के दिन शहर से करीब तीन किलो मीटर दूर गंगोह मार्ग स्थित जाहरवीर गोगा की म्हाड़ी पर विशाल मेला लगता है। एक माह तक शहर में भ्रमण करने व बेसेरों के बाद जाहरवीर गोगा के प्रमुख निशान नेजा सहित 26 छड़ियां शहर के विभिन्न इलाकों से बाजे गाजों व सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ भैरव मंदिर पहुंचती हैं, जहां विधिवत नेजा छड़ी के पूजन के उपरांत सभी छड़ियां म्हाड़ी की ओर प्रस्थान करती हैं।

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म्हाड़ी पर पहले से ही लाखों की संख्या में श्रद्धालु छड़ियों के पहुंचने के इंतजार में मौजूद होते हैं। जैसे ही छड़ियां अपने-अपने स्थलों पर पहुंची हैं, सर्व प्रथम प्रसाद चढ़ाने व मन्नत मांगने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ छड़ियों की ओर उमड़ पड़ती है। जहां कभी आम दिनों में सन्नाटा रहता है, जाहरवीर गोगा की शक्ति व उनके प्रति आस्था का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां पांव रखने को जगह नहीं मिलती। दो दिन तक म्हाड़ी पर श्रद्धालुओं के दर्शन व पूजन के बाद तीसरे दिन वापस प्रस्थान कर जाती हैं।

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