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बच्चों के लिए माता-पिता दोनों हैं बेबी हलदर, ऐसे सुनाई संघर्ष की कहानी
( चारू खरे )
लखनऊ : कहते हैं, परिस्थितियां अनुकूल नहीं होती उन्हें अनुकूल बनाना पड़ता है अर्थात् जरुरी नहीं कि जिंदगी में हमेशा वही हो जो हम चाहते है कभी-कभी वास्तविकता कल्पना से बेहद परे होती है। बावजूद इसके लगातार जिंदगी से झूझते रहना ही 'संघर्ष' कहलाता है।
चूँकि आज ‘फादर्स डे’ भी है तो ऐसे में आज हम आपके लिए एक ऐसी मां की कहानी लेकर आएं हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी में मां के साथ-साथ एक पिता की भी भूमिका बखूबी अदा की।
जी हां 'संघर्ष की मिसाल' कही जाने वाली और देशभर में लेखिका के तौर पर मशहूर 'बेबी हलदर' की कहानी लेकर आएं हैं, जिनको सताने में हालातों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन हलदर मानो जैसे उल्टा हालात को हराने की जिद ठान चुकी थी।
पहले मां ने छोड़ा साथ, फिर पति ने किया रेप -
एक गरीब परिवार में पलीं-बढ़ी 'बेबी' वेस्ट बंगाल के दुर्गापुर की रहने वाली हैं उनकी जिंदगी किसी भयावह फिल्मों की कहानियों से कम नहीं है। न्यूज़ट्रैक.कॉम से हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि, उनका जन्म सांतवे महीने में ही हो गया था और जब वह 4 साल की हुईं तो उनकी अपनी मां ने उनका दामन छोड़ दिया।
इसके बाद 12 वर्ष की उम्र में बेबी का ब्याह करा दिया गया और तो और शादी की रात ही पति ने उनका रेप किया। उनके 25 वर्ष सिर्फ पति की गालियां सुनकर आखिरकार 2 बच्चों की मां बनने के बाद उन्होनें घर छोड़ने का फैसला किया और ट्रेन में टॉयलेट के पास बैठकर दिल्ली आ गई, जहां उन्होनें प्रबोध कुमार, जो रिटायर्ड मानव विज्ञान प्रोफेसर और महान लेखक प्रेमचंद के पोते हैं, उनसे घरेलू मदद मांगी। प्रबोध कुमार के घर काम करते हुए उनकी जिंदगी ने मानो जैसे यू-टर्न ले लिया।
किताबों को हमेशा निहारती रहती थी ''हलदर' -
बेबी हलदर बताती हैं, प्रबोध के घर साफ-सफाई करते-करते वह अक्सर बुक शेल्फ को निहारती रहती थी। कभी-कभी तो वह बंगाली किताबों को उठाकर पढ़ने भी लगती थी फिर एक दिन प्रबोध ने जब खुद उनका रुझान किताबों की तरफ देखा तो उन्होंने बेबी को बांग्लादेशी ऑथर तसलीमा नसरीन की किताब दी और पढ़ने को कहा। पूरी किताब पढ़ने के बाद प्रबोध ने उनको खाली नोटबुक दी और अपनी कहानी लिखने को कहा।
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पहले बेबी घबरा गई थीं क्योंकि उन्होंने सिर्फ 7वीं क्लास तक ही पढ़ाई की थी, लेकिन जैसे ही वो किताब लिखने बैठीं तो उनमें अलग ही कॉन्फिडेंस आ गया। उन्होंने कहा- 'जब मैंने हाथ में कलम थामा तो घबरा गई थी। वह बताती हैं मैंने स्कूली दिनों के बाद कभी पेन नहीं थामा था लेकिन जैसे ही मैंने लिखना शुरू किया तो मुझमें नई ऊर्जा आ गई थी। किताब लिखना उनका सबसे अच्छा एक्सपीरियंस रहा।'
'बेबी' की लिखी किताब पढ़ रो पड़े थे प्रबोध -
बेबी की लिखी पहली किताब जब प्रबोध ने पहली बार पढ़ी तो वह इतने भावुक हो उठे कि उन्होनें उनकी किताब का हिंदी में अनुवाद किया। इसके बाद किताब का प्रकाशन हुआ और धीरे-धीरे यह किताब लोगों की जुबां पर छा गई।
बेबी हलदर : साहित्य की पहचान -
2002 में उनकी पहली किताब 'आलो आंधारी' नाम से आई। पिछले ही साल उनकी ये किताब अंग्रेजी में पब्लिश हुई थी। 'बेबी हलदर' आज साहित्य की दुनिया का जाना-माना चेहरा हैं वो अब रोज इंटरव्यू देती हैं। पेरिस, हॉन्ग कॉन्ग जैसे देशों में वो टूर कर चुकी हैं। 24 भाषाओं में उनकी किताब ट्रांस्लेट हो चुकी हैं। दुनिया के कई हिस्सों में वो लिट्रेचर फेस्टिवल अटेंड कर चुकी हैं। 2002 से अब तक बेबी 4किताबें लिख चुकी हैं।
नहीं छोड़ी 'बाई' की नौकरी -
बेबी को लेकर सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि, एक मशहूर लेखिका हो जाने के बावजूद वो अब तक बाई का काम करती हैं। आज भी जब हमने उनसे इसकी वजह पूछी तो वह मुस्कुराकर जवाब देती हैं कि जिन्होंने मुझे काम दिया और लेखन के लिए प्रेरित किया मैं उन्हें छोड़कर नहीं जाउंगी।
मां-पिता दोनों की भूमिका निभाती हैं बेबी –
लोगों का मानना होता है कि बिना पति के औरत का इस समाज में कोई वजूद नहीं होता लेकिन बेबी ने आज लोगों की इस मिथ्या को खत्म कर दिया है बेबी ने बताया कि, उनके तीन बच्चे हैं और तीनों बेहद समझदार हैं। बेबी ने अपने बच्चों की जिंदगी में माँ-बाप दोनों की भूमिका अदा की है। हालांकि उनका बड़ा बेटा बचपन में ही पति के पास चला गया था लेकिन बेबी का छोटा बेटा अभी जॉब की तलाश में हैं वहीँ बेटी जॉब कर रहीं है।
स्वावलंबी बनें महिलाएं –
बातचीत के दौरान बेबी ने देश की सभी महिलाओं को यह सीख दी कि वह आत्मनिर्भर बनें और अगर वह भी किसी हिंसा की शिकार हुई हैं तो बेशक ही इसके खिलाफ आवाज उठाये। साथ ही जिंदगी में आगे बढ़ें।
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फ़िलहाल बेबी अभी एक एनजीओ में काम कर रहीं हैं। साथ ही बच्चों का भविष्य संवारने में जी जान से जुटी हुई हैं।