×

मां लक्ष्मी करती हैं भगवान जगन्नाथ के भोग की देखरेख, धर्मानुसार बनता है महाप्रसाद

suman
Published on: 13 July 2018 10:32 AM GMT
मां लक्ष्मी करती हैं भगवान जगन्नाथ के भोग की देखरेख, धर्मानुसार बनता है महाप्रसाद
X

जयपुर.:भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभ आरंभ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को होता है। भगवान जगन्नाथ की यह रथ यात्रा पूरे में प्रसिद्ध है। इस महीने भगवान जगन्नाथ की यात्रा 14 जुलाई 2018 से शुरू हो रही है।जगन्नाथ मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण यहां का रसोई है। यह रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई के रूप में जानी जाती है। यह मंदिर के दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। माता लक्ष्मी की निगरानी में 500 रसोइये तैयार करते हैं,इसे महाप्रसाद कहते हैं कि इस रसोई में भगवान जगन्नाथ के लिए भोग तैयार किया जाता है। इस विशाल रसोई में भगवान को चढ़ाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए लगभग 500 रसोइये और उनके 300 सहयोगी काम करते हैं।

रथयात्रा: भगवान जगन्नाथ का रथ है खास, खींचने से मिलता है मोक्ष

ऐसी मान्यता है कि इस रसोई में जो भी भोग बनाया जाता है, उसका निर्माण माता लक्ष्मी की देखरेख में ही होता है। यहां बनाया जाने वाला हर पकवान हिंदू धर्म पुस्तकों के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही बनाया जाता है। भगवान जगन्नाथ के लिए तैयार किया गया भोग पूरी तरह शाकाहारी होता है। भोग में किसी भी रूप में प्याज और लहसुन का भी प्रयोग नहीं किया जाता। भोग बनाने के लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया जाता है। रसोई के पास ही दो कुएं हैं जिन्हें गंगा-यमुना कहा जाता है। केवल इनसे निकले पानी से ही भोग का निर्माण किया जाता है। इस रसोई में 56 प्रकार के भोगों का निर्माण किया जाता है।

रथयात्रा:भगवान जगन्नाथ को बहुत ही प्रिय ये काम, पूजा से पहले जरूर करें आप

रसोई में पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे साल के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी यह व्यर्थ नहीं जाएगी, चाहे कुछ हजार लोगों से 20 लाख लोगों को खिला सकते हैं। मंदिर में भोग पकाने के लिए 7 मिट्टी के बर्तन एक दूसरे पर रखे जाते हैं और लकड़ी पर पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में सबसे ऊपर रखे बर्तन की भोग सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकते जाती है।

जगन्नाथ मंदिर का 4,00,000 वर्ग फुट में फैला है और चहारदीवारी से घिरा है। कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्यकला, और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण, यह मंदिर, भारत के भव्य स्मारक स्थलों में से एक है।मुख्य मंदिर वक्र रेखीय आकार का है, जिसके शिखर पर भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र मंडित है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है। मंदिर के भीतर आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।

suman

suman

Next Story