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राम नाम जपने वाली पार्टी का क्यों आया रावण पर दिल, जानिए कौन बनेगा निशाना

Rishi
Published on: 14 Sept 2018 4:38 PM IST
राम नाम जपने वाली पार्टी का क्यों आया रावण पर दिल, जानिए कौन बनेगा निशाना
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लखनऊ : राम नाम जाप करने वाली पार्टी का अचानक रावण प्रेमी हो जाना ऐसे ही नहीं है। पार्टी की कृपा से रावण देर रात जेल से रिहा हो चुका है, और उसने बाहर निकलते ही हुंकार भी भर दी। ऐसे में हम आपको ये बताने का प्रयास करेंगे कि आखिर रावण पर कृपा का कारण क्या है, और इसके नुकसान क्या हैं।

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राज्य की बीजेपी सरकार ने सहारनपुर में मई 2017 की जातीय हिंसा के मुख्य आरोपी और भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर ‘रावण’ की रिहाई के आदेश ऐसे ही नहीं दिए हैं। इसके पीछे दो कारण हैं। पहला ये कि सरकार को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में रावण की जेल बंदी से जुड़ा जवाब दाखिल करना था। क्योंकि शासन एक साल तक ही रासुका बढ़ा सकता है और यह अवधि 1 नवंबर को पूरी हो रही थी। दूसरा सिर पर सवार लोकसभा इलेक्शन से पहले सवर्णों का पार्टी से बिदक जाना। ऐसे में बीजेपी के रणनीतिकारों ने दलित वोटों को अपने पाले में लाने के लिए रावण की रिहाई का खेल रच दिया।

6 महीने से रावण की और से कोई आवेदन नहीं हुआ

चंद्रशेखर रावण की मां की जिस अर्जी को यूपी शासन ने रिहाई का आधार बताया वो 6 महीने से ज्यादा पुरानी है। रावण के वकील हरपाल सिंह जीवन ने बताया, छह महीने से हमने इस संबंध में कोई आवेदन शासन से नहीं किया था।

दलित विरोधी दाग धोने की तैयारी में बीजेपी

6 अगस्त को एससी-एसटी एक्ट के मूल स्वरुप की बहाली के निर्णय के बाद से केंद्र सरकार सवर्णों के विरोध से परेशान है। बीजेपी को अच्छे से पता है कि सवर्ण यदि उससे बिदक गए तो इलेक्शन में उसे नुकसान होना तय है। जिन दलितों ने पिछले लोकसभा और उसके बाद यूपी विधानसभा इलेक्शन में उसे खुले दिल से समर्थन दिया वो भी सहारनपुर के शब्बीरपुर कांड के बाद से उससे नाराज हैं। पश्चिम यूपी में हुए उपचुनावों में वो बीजेपी के उम्मीदवारों को हरा अपना आक्रोश जाहिर भी कर चुके हैं। ऐसे में आरएसएस भी चाहता है की बीजेपी के माथे से दलित विरोधी होने का कलंक मिट जाए और इसके लिए रावण की रिहाई सबसे मुफीद थी। इसके साथ ही आरएसएस रावण के जरिए बसपा सुप्रीमो मायावती को भी निपटाने का मंसूबा पाले हुए है।

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आपको याद दिला दें 18 जुलाई 2017 को मायावती ने राज्यसभा से अपना इस्तीफा दे बीजेपी पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया था। उसके बाद दलितों के बीच माया की छवि बलिदानी नेता की बनने लगी। लेकिन यहां ये भी जान लीजिए कि माया ने शब्बीरपुर हिंसा का खुल कर न सिर्फ विरोध किया बल्कि भीम आर्मी को जेबी संगठन तक बता दिया था। जिसके बाद पश्चिम में दलित बसपा से नाराज हैं। जबकि कांग्रेस रावण के समर्थन में पहले दिन से ही खड़ी थी। बीजेपी और आरएसएस कांग्रेस को यूपी में फेल पार्टी मानती है। ऐसे में उसे रावण और कांग्रेस के मिलन से कोई खतरा नहीं महसूस हुआ। लेकिन जिस तरह सवर्ण उसके खिलाफ खड़े हुए उससे वो अन्दर तक हिल गई है और दोनों ही संगठन देश भर में दलित समाज को जोड़ने में लगे हुए हैं।

ऐसे में संघ और भाजपा अपने ऊपर लगे दलित विरोध के धब्बे साफ करने में लगातार जुटी रही है। वर्ष के आरंभ से ही संघ ने बनारस, आगरा और मेरठ में समागम आयोजित किए और इनके मंच को नील रंग में रंग दिया इसके साथ ही समारोह स्थल पर दलित महापुरुषों की तस्वीरें सजी नजर आईं। मेरठ में तो दलितों के घरों से आया खाना स्वयं सेवकों को परोसा गया।

इसके साथ ही जब बीजेपी ने मेरठ में 11 और 12 अगस्त को प्रदेश कार्यसमिति की बैठक आयोजित की तो उसे ‘शहीद मातादीन बाल्मीकि नगर’ नाम दे डाला। इतना सब करने के बाद भी दलित उसे अपना नहीं रहे थे। ऐसे में पार्टी और संघ के रणनीतिकारों ने रावण की रिहाई को हथियार बनाने की सोची इससे दो फायदे नजर आ रहे थे पहला ये कि दलितों में संदेश जाएगा की बीजेपी ने उनके नेता को सद्भावना रिहाई दी और दूसरा ये कि पश्चिमी यूपी में बसपा और भीम आर्मी आमने सामने होंगे तो बीजेपी विरोधी दलित वोट आपस में कट जाएंगे।

बीजेपी को नुकसान भी दे सकती है रिहाई

रावण ने अपनी रिहाई के बाद ऐलान किया है कि अब वो बीजेपी विरोधी दलों के महागठबंधन का समर्थन करेगा। पश्चिम यूपी में भीम आर्मी बड़ा जनाधार रखती है। ऐसे में यदि वो महागठबंधन में शामिल होती है तो बीजेपी को अच्छा खासा नुकसान होना तय है। क्योंकि 2014 और 2017 में कमल पर मुहर लगाने वाले दलित शब्बीरपुर हिंसा और एससीएसटी ऐक्ट में बदलाव के बाद से बीजेपी के खिलाफ एकजुट हैं। इसके साथ ही भीम आर्मी ने पश्चिम में हुए निकाय चुनावों और उप चुनावों में बीजेपी को अपनी ताकत का अहसास भी करा दिया है।

बीजेपी हाईकमान का पैतरा पड़ा उल्टा

राज्य बीजेपी के एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि मेरठ में हुई बीजेपी कार्यकारिणी बैठक में हाईकमान द्वारा रावण को रिहा करने के लिए कहा गया। ताकि जेल से बाहर आकर रावण दलितों को बीजेपी के पक्ष में लाने में मदद करेगा। लेकिन रावण ने रिहाई के बाद जो तेवर दिखाए उससे बीजेपी सकते में है।

महागठबंधन में लाने का प्रयास

गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी चंद्रशेखर को महागठबंधन में लाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। जिग्नेश ने रावण से कई बार मुलाकात की है। जिग्नेश अक्सर कहते भी रहते हैं कि वो और चंद्रशेखर बसपा सुप्रीमो मायावती के दाएं और बाएं हाथ हैं। लखनऊ में हुए बसपा के मंडल सम्मेलन में भी नेताओं ने चंद्रशेखर को माया के साथ आने का न्योता भी दिया था।

इसके बाद आप से समझ गए होंगे कि भीम आर्मी पश्चिमी यूपी में जिसके साथ होगी उसका पलड़ा भारी होने वाला है।



Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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