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28-29 मार्च की तिथि में है मतभेद, जानिए किस दिन, कैसे होगी चैत्र नवरात्रि की शुरुआत?
लखनऊ: चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होने वाली है। चैत्र नवरात्रि की शुरुआत को लेकर लोगों में दुविधा है। तिथि को लेकर ज्योतिषविदो में मतभेद है। यह 28 मार्च को मनाया जाएगा या फिर 29 मार्च 2017 को। लेकिन इसको लेकर शास्त्रों में सआप कहा गया है कि सनातन संस्कृति में संवत यानि नए साल का शुभारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को होता है और इसी दिन चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ भी करते हैं।
आगे...संवत 2074 में 28 मार्च 2017 मंगलवार के दिन नवरात्रि में घट स्थापना किया जाएगा, क्योंकि भारतीय सनातन शास्त्रों में से धर्मसिन्धु और निर्णयसिंधु में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि नवरात्रि आरम्भ प्रतिपदा के दिन ही है। अगर सूर्योदय के समय एक मुहूर्त से कम यानी लगभग 48 मिनट से कम प्रतिपदा हो तो जिस दिन अमावस्या रहे उसी दिन घट स्थापना करना शात्रोक्त सही माना गया है।
आगे...इस साल 29 मार्च 2017 को प्रतिपदा सवेरे 5 बजकर 45 मिनट पर समाप्त हो जाएगी और सूर्योदय 5 बजकर 36 मिनट पर होगा। ऐसे में प्रतिपदा मात्र 9 मिनट ही है। इसलिए नवरात्रि का आरम्भ 28 मार्च 2017 को ही किया जाएगा। शास्त्रों के हिसाब से 28 मार्च 2017 को ही नवरात्रि का आरम्भ होगा। 29 मार्च को नहीं होगी।
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कलश स्थापना विधि
सुबह स्नान करके पूजन सामग्री के साथ पूजा स्थल पर पूर्वाभिमुख (पूर्व दिशा की ओर मुंह करके) आसन लगाकर बैठें। उसके बाद नीचे दी गई विधि अनुसार पूजा प्रारंभ करें-
घट स्थापना मुहूर्त- सुबह 08:26 से 10:23
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- सुबह 08:26, 28 मार्च 2017
प्रतिपदा तिथि समाप्त- सुबह- 05:44, 29 मार्च 2017
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नीचे लिखे मंत्रों से पूजन सामग्री और अपने शरीर पर जल छिड़कें।
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपी वा
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाहान्तर: शुचि:
हाथ में अक्षत, फूल, और जल लेकर पूजा का संकल्प करें। माता शैलपुत्री की मूर्ति के सामने दोनों कलश मिट्टी के ऊपर रखकर हाथ में अक्षत, फूल, और गंगाजल लेकर वरूण देव का आवाहन करें। बाएं भाग वाला कलश शांति कलश होगा। इसी कलश में सर्वऔषधी, पंचरत्न डालें। दोनों कलश के नीचे रखी मिट्टी में सप्तधान्य और सप्तमृतिका मिलाएं। आम के पत्ते को दूसरे कलश में डालें। इसी कलश के ऊपर एक पात्र में अनाज भरकर उसके ऊपर एक दीया जलाएं। शांति कलश में पंचपल्लव डालकर उसके ऊपर पानी वाला नारियल रखकर लाल वस्त्र से लपेट दें। दोनों कलश के बीच में जौ बो दें।
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फिर इस मंत्र से देवी का ध्यान करें।
खडगं चक्र गदेषु चाप परिघांछूलं भुशुण्डीं शिर:।
शंखं सन्दधतीं करैस्त्रि नयनां सर्वांग भूषावृताम।।
नीलाश्म द्युतिमास्य पाद दशकां सेवे महाकालिकाम।
यामस्तीत स्वपिते हरो कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम॥