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बहुत याद आता है बचपन, कहां से लाऊं वो चोर-सिपाही, वो कागज की कश्ती, बारिश का पानी

suman
Published on: 3 May 2017 1:41 PM IST
बहुत याद आता है बचपन, कहां से लाऊं वो चोर-सिपाही, वो कागज की कश्ती, बारिश का पानी
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लखनऊ: कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन मेरे प्यार पलछीन, इसी तरह जगजीत सिंह की गजल- ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी। जी हां ! इन पंक्तियों में अल्हड़ बचपन को बहुत ही प्यारे ढ़ंग से संजोया गया है, क्या आपको अपने बचपन की याद जहन में है।

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अगर याद आ जाए तो बरबस खिली हुई मुस्कान दस्तक दे जाती है। कैसे बीत जाते हैं पल? कैसे बचपन बस एहसास बनकर रह जाता है। जिसे हर कोई जीना चाहता है। खिल उठता है मन, जब उन गलियों से होकर बचपन गुजरता है। कभी मुस्कान तो कभी छलक उठते हैं आंसू। ऐसी ही कई यादों से सजा होता है बचपन।

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जब आप छोटे थे आज की तरह इतने साधन नहीं थे। उस समय बच्चों को खेलने के लिए पैरेंट्स फुटबॉल, बैट बॉल और गुड़िया लाया करते थे। वो मासूम बचपन इसी में खुश रहता था। आज की तरह उस समय बच्चों के लिए इतनी टेक्नोलॉजी नहीं थी। बच्चे आस-पास के मुहल्ले के बच्चों के साथ मिलकर ही तरह-तरह गेम खेलते और इजाद करते थे ।

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अगर आज का गेम्स देखें और पुराने समय के देखेंगे तो आपको सपनों सा फील होगा, लेकिन जो बात लगंड़डीप, गुल्ली डंडा, लट्टू, सिंतोलिया में थी, वो आज कल के गेम्स में नहीं मिलेगी। तो चलिए आज कुछ पुराने गेम्स के बारे में बात करके, आपके और अपने बचपन की याद ताजा की जाएं।

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चोर-सिपाही

ये भी अनोखा गेम था। जीत ने पर दोस्तो से पार्टी लेने का अपना अलग ही मजा था। साथ ही जो चोर होता था उसमें एक अलग ही डर होता था और बिना बात के तब तक हंसते थे, जब तक चोर पकड़ा ना जाए। इसमें कागज के चार टुकड़े करके उसपर चोर, सिपाही, राजा और मंत्री होते थे। सबको फोल्ड करके फेंका जाता था फिर खेल शुरू होता था।

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कंचे खेलना

कंचे खेलने से ज्यादा उसे जितने में मजा आता था। जितना ज्यादा कंचे उतना ज्यादा खुशी, जितने कम कंचे उतना मन उदास।

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छुपम-छिपाई

अक्सर इस तरह के गेम में हम दोस्तो से रुठ जाते थे, क्योंकि कोई घंटो दोस्तों को ढूंढना नहीं चाहता था । आजकल बच्चे इसे खेलना भूल गए है। वैसे भी एक घर में ढ़ेर सारे बच्चे अब मिलते भी नहीं। किताबों में डूबे रहना बच्चों की आदत बन गई है,इससे छूटते ही बच्चे मोबाइल में भीड़ जाते है।

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पहिया गाड़ी

जिन बच्चों को साइकिल नहीं मिलते थे, वे बेकार पहिया को गाड़ी बनाकर खेलते थे और कम्पिटिशन में चलाते थे और उनमें एक दूसरे से आगे निकले की होड़ रहती थी।

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गिटी फोड़-पिट्टो(सिंतोलिया)

बहुत सरल और सस्ता गेम था, बस थोड़ी गिट्टी इक्ट्ठा करों और मुहल्ले के दोस्तों के साथ मिलकर खेलों और जब तक गिट्टी इक्ट्ठी ना हो तब तक पिट्टो।

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लंगड़ी

जब मुहल्ले में लड़किया लंगड़ी खेलती थी तो मुहल्ले में भीड़ लग जाती थी, सब इस खेल का आनंद लेते थे । जितना खेलने में मजा उतना ही देखने में भी मजा आता था। याद करिए आपने भी कभी ना कभी छूप-छूप कर लड़कियों के इस खेल का आनंद जरूर लिया होगा।

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पतंग उड़ाना

बचपन में ज्यादातर लोगों ने पतंग उड़ाई होगी और ना जाने कितनों की काटी होगी, उस समय आकाश में किसी ना किसी कोने से रंग-बिरंगे पतंग उड़ते जरूर दिखाई देते थे, वैसे आज भी पतंग उड़ाई जाती है, लेकिन अब उसका स्वरुप बदल गया है। अब त्योहारों पर पतंग उड़ाने की परंपरा बन गई है।

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गिट्टी खेलना

बहुत ही मजेदार गेम होता था। लड़कियां गिट्टी इकट्ठा करके खेलती थी।

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गिल्ली-डंडा

क्रिकेट का ओल्ड वर्जन गिल्ली डंडा ज्यादातर ब्वॉयज ने बचपन में खेला होगा। इसके लिए मम्मी-पापा की डांट भी सुना होगा, लेकिन इन सबके बावजूद इन खेलों के खेलने में मजा था। उसको बयां करना मुश्किल होगा।

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घोड़ा-बदाम छूं…

ये गेम लड़कियों का था। लड़कियां अपनी सहेलियों के साथ गेम खेलती थी। इसमें कुछ लड़कियों के ग्रुप मिलकर ये गोल घेरा बनाकर और मुंह छूपाकर बैठती थी, और कोई एक लड़की रुमाल लेकर दौड़ती हुई कहती थी घोड़ा-बदाम छू,पीछे देखे मार छू। बैठी किसी भी सहेली के पीछे रूमाल डालकर बैठ जाती थी। अगर वो लड़की देख ले तो ठीक, नहीं तो उसे पीठ पर एक पड़ती थी। जो भी खेल में मजा बहुत आता था।

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लट्टू

लट्टू नाम सुनते ही मन लट्टू की तरह नाचने लगा होगा। जरा याद कीजिए जब मुहल्ले के 4-5 बच्चे मिलकर लट्टू खेलते थे और किसी साथी की लट्टू नचाने में पहले गिर जाए तो कितना मजा आता है। उस समय बच्चों को रंग-बिरंगे लट्टू में ही मजा आता था। दिनभर रस्सी लपेटकर लट्टू लेकर रहना कितना अच्छा लगता था, भले ही इसके लिए कितनी डांट पड़ी हो।

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अब बदल गयी तस्वीर

आज के समय में गेम्स की तस्वीर एकदम बदल गई है। ज्यादातर बच्चे इंडोर गेम्स में इंटरेस्ट लेते है। मोबाइल, लैपटॉप पर उनका मन लगता है। एनर्जेटिक गेम्स से आजकल के बच्चे दूर रहना चाहते है। ये सब इनवारमेंट का असर है। पहले के गेम्स बच्चों में स्फूर्ति और ताजगी लाते थे और बच्चे फिजीकली स्ट्रॉग होते थे।



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suman

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