TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

बड़ी फलदायी होती है आस्था के महापर्व की छठ पूजा, जानें किसने की थी इसकी शुरुआत?

By
Published on: 2 Nov 2016 3:42 PM IST
बड़ी फलदायी होती है आस्था के महापर्व की छठ पूजा, जानें किसने की थी इसकी शुरुआत?
X

chhath pooja

लखनऊ: हिंदी में इस त्योहार को कई नामों से जाना जाता है, जैसे- छठ, छठी, छठ पर्व, छठ पूजा, डाला छठ, डाला पूजा। छठ का त्योहार सूर्य की आराधना का पर्व है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है। सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। सुख-स्मृद्धि तथा मनोकामनाओं की पूर्ति का यह त्योहार सभी समान रूप से मनाते हैं।

पुराने धार्मिक संदर्भ में यदि इस पर दृष्टि डालें, तो पाएंगे कि छठ पूजा का आरंभ महाभारत काल के समय से देखा जा सकता है। छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है तथा गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा संपन्न की जाती है।

आगे की स्लाइड में जानिए किसने शुरू की थी इस पर्व की शुरुआत

chhath pooja

लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृ का षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पर्व की परंपरामें बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है, षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगौलीय अवसर है। उस समय सूर्यकी परा बैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से मानव की यथा संभव रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में है। पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैंगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है।

पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिल सकता है। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैंगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुंचता है, तो पहले उसे वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैंगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्यकी पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है।

आगे की स्लाइड में जानिए और क्या हैं इस व्रत के फायदे

pooja

पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाली पराबैंगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ ही होता है।

छठ जैसी खगौलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर) सूर्य की पराबैंगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई, पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुंच जाती हैं। वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन उपरांत आती है। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है।

आगे की स्लाइड में जानिए छठ पूजा की तिथि

pooja3

छठ पूजा तिथि: छठ पूजा चार दिनों का अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण महापर्व होता है इसका आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है और समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है इस लंबे अंतराल में व्रतधारी पानी भी ग्रहण नहीं करता बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाकों में छठ पर्व पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है छठ त्यौहार के समय बाजारों में जमकर खरीदारी होती है लोग इसके लिए खासकर फल, गन्ना, डाली और सूप आदि जमकर खरीदते हैं

छठ पूजा व्रत आरंभ

नहाय खाय - 3 नवंबर 2016

लोहंडा और खरना - 4 नवंबर 2016

संध्या अर्घ्य- 5 नवंबर 2016

सूर्योदय अर्घ्य - 6 नवंबर 2016



\

Next Story