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सूर्योपासना का महान पर्व है चतुर्दिवसीय छठ पूजा, जानें कब होगा प्रथम अर्घ्य?
गोरखपुर: सूर्य का पूजन षष्ठी वर्ष में दो बार किया जाता है, पहला चैत्र मास में दूसरा कार्तिक मास में। चैत्र शुक्ल षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैत्री छठ एवं कार्तिक शुक्ल पक्ष पर मनाए जाने छठ को कार्तिक छठ पर्व कहते है। व्रत पूजा, उपासना, उपवास, अर्घ्य आदि में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। दीपावली पर हुई साफ़-सफाई के उपरांत भी इस पर्व में पुनः घर, रसोई आदि को धोया जाता है और व्रत में उपयोग की जाने वाली वस्तुओं की पवित्रता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस पर्व पर निर्मित भोजन प्रसाद आदि में लहसुन, प्याज आदि वर्जित होते है।
छठ पूजा का आरंभ: इसका आरंभ नहाय-खाय से होता है। यह व्रत 4 नवंबर को है। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 29 मिनट और पंचमी तिथि संपूर्ण दिन और रात्रि पर्यन्त तक है। नहाय-खाय के अंतर्गत व्रती, जो कि सामान्यतः घर की प्रमुख महिला होती है, समीप की नदी, जलाशय या तालाब में नहाकर घर में खाना पकाती है। खाने में कद्दू चावल (कद्दू भात) पकाती है और इसे एक वक्त ग्रहण कर जमीन पर काष्ठ आसन पर शयन करती है।
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2-खरना: द्वितीय दिन अर्थात पंचमी के दिन महिला उपवास रखती है। यह 5 नवंबर को है। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 30 मिनट और पंचमी तिथि प्रातः 6 बजकर 55 मिनट तक है। इस दिन सायं काल पूजा करने के उपरांत ही व्रत खोला जाता है। व्रत खोलने में रसियाव ( चावल और गन्ने के रस से पकी खीर ) का उपयोग किया जाता है। इसे ही खरना कहा जाता है।
3-पूर्ण उपवास: षष्ठी पर्व के तीसरे दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल षष्ठी को व्रती महिला निर्जल उपवास रखती है। यह 6 नवंबर को है। इस दिन भी सूर्योदय 6 बजकर 31 मिनट और षष्ठी तिथि दिन में 7 बजकर 47 मिनट तक है। व्रत का यह प्रमुख दिन है । इस दिन सूर्यास्त के समय महिला नदी अथवा तालाब के किनारे जाती है और स्नान करने के उपरांत जल में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य प्रदान करती है।
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प्रथम अर्घ्य का समय:- प्रथम अर्घ्य का समय सायंकाल 5:00 बज कर 29 मिनट पर है। यह डूबते हुए सूर्य को प्रदान किया जाता है और अर्घ्य जल और दूध से दिया जाता है। तालाब के किनारे षष्टी देवी की वेदी ( मिटटी सीमेंट ईट इत्यादि से निर्मित) की पूजा कर सूप टोकरी में रखा प्रसाद षष्ठी माता एवं सूर्य को अर्पित की जाती है। प्रसाद सामग्री में समस्त मौसमी फल, सब्जियां के आलावा ठेकुआ (टिकरी ) लडुवा ( लड्डू ) आदि मुख्य होते हैं। ठेकुआ गेहूं के आटे और गुड़ तथा लडुआ चावल के आटे और गुड़ से निर्मित होता है। सूर्यास्त के पश्चात उन सूंपों को घर लाया जाता है और उन्हें श्रद्धा पूर्वक एवं पवित्रता के पूजा घर में रखा जाता है। इस दिन व्रती महिला रात्रि जागरण करती है।
अर्घ्यदान और पारण का दिन 7 नवंबर: इस दिन सूर्योदय 6:00 बज कर 31 मिनट और सप्तमी तिथि प्रातः 8:00 बज कर 5 मिनट है। इस दिन व्रती महिला स्नान कर प्रातः 6:31 पर जल में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करती है तथा सूपों की सामग्री बदलकर प्रसाद चढ़ाया जाता है। उसके बाद व्रती महिला घर के अन्य सदस्यों को और आसपास के व्यक्तियों को प्रसाद देती है। घर के बच्चों को अपने गीले आंचल से पहुंचती है। इसके पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से उन्हें आगामी 1 वर्ष तक त्वचा से संबंधित रोग नहीं होंगे । इस प्रक्रिया के पश्चात महिला अपना व्रत खोलती है।
छठ पूजा की विशेषता : छठ पूजा की सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी ,पवित्रता, भक्ति एवं आध्यात्म है। इसकी उपासना पद्धति सरल है। इसमें किसी आचार्य की आवश्यकता नहीं है। यह लौकिक रीति-रिवाज एवं ग्रामीण जीवन पर आधारित है।