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31अक्टूबर देवउठनी एकादशी के साथ शुभ काम शुरू,अब भी विवाह मुहूर्त में है देरी
जयपुर:आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं। देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक यानी चार महीने भगवान विष्णु शयनकाल की अवस्था में होते हैं और इस दौरान कोई शुभ कार्य जैसे, शादी, गृह प्रवेश या कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। 31 अक्टूबर को भगवान का शयनकाल खत्म होगा और इसके बाद ही कोई शुभ कार्य होगा। कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन देवउठनी ग्यारस होती है। इस एकादशी को प्रबोधनी ग्यारस भी कहा जाता है। ये एकादशी दीवाली के 11 दिन बाद आती है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद जागते हैं तो तुलसी के पौधे से उनका विवाह होता है। देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह उत्सव भी कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के बाद सभी तरह के शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं, लेकिन इस बार देव जागने के 18 दिन बाद भी कोई वैवाहिक व अन्य मांगलिक कार्यों ( गृह प्रवेश) के लिए शुभ मुहूर्त नहीं है। दीपावली के बाद साल पूर्ण होने में बचे लगभग दो माह में इस साल विवाह के केवल 14 मुहूर्त हैं।
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31 अक्टूबर को देवउठनी एकादशी है, लेकिन 13 अक्टूबर से देवगुरु बृहस्पति पश्चिामास्त हैं जो कि देवउठनी एकादशी के सात दिन बाद 7 नवंबर को पूर्व दिशा में उदित होंगे और आगामी तीन दिन बाल अवस्था में रहने के बाद 10 नवंबर को बालत्व निवृत्ति होगी। 16 नवंबर को सूर्य वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा। इन समस्त दोषों की निवृत्ति के पश्चात 19 नवंबर से शादियों की शुरुआत होगी और अगले साल भी यानी 2018 में विवाह लग्न कम हैं।
इस साल नवंबर में 19, 22, 23, 24, 28, 29 और 30 नवंबर को विवाह के विशिष्ट मुहूर्त हैं। 3, 4, दिसंबर को विवाह मुहूर्त बन रहे हैं। 15 दिसंबर 2017 से 14 जनवरी 2018 तक मलमास रहेगा। मकर संक्रांति के बाद विवाह मुहूर्त शुरू होते हैं किंतु इस बार शुक्र अस्त हैं। इसलिए जनवरी में कोई मुहूर्त नहीं है।
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बसंत पंचमी को मिलेगा अवसर
22 जनवरी को बसंत पंचमी को देवलग्र होने के कारण विवाह आयोजन कर पाएंगे, लेकिन लग्र शुध्दि के शुभ मुहूर्त फरवरी में ही मिलेंगे। फरवरी में 4, 5, 7, 8, 9, 11, 18 और 19 तथा मार्च में 3 से 8 और 11 से 13 मार्च को शादियों के मुहूर्त हैं।