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शुरू हुआ भगवान विष्णु का शयनकाल, 4 माह तक करें धार्मिक काम
लखनऊ: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान क्षीरसागर चले जाते है। इस दिन से भगवान विष्णु का शयनकाल शुरू हो जाता है इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं। भगवान का शयन काल 4 मास तक रहता है। इसके बाद प्रबोधिनी एकादशी के दिन जागते है।
देशयनी एकादशी के बाद चार माह का समय आत्मसंयम का होता है। इस अवधि में धार्मिक चरण किया जाता है। देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
हरि वासर के बाद करें पारण
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण हमेशा द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना चाहिए।
देवशयनी एकादशी व्रत की कथा
सूर्यवंश में मान्धाता नामक प्रसिद्ध सत्यवादी राजा अयोध्यापुरी में राज्य करता था। एक समय उसके राज्य में अकाल पड़ गया | प्रजा दुखी रहने लगी | हवन आदि शुभ कार्य बंद हो गए। राजा को कष्ट हुआ इसी चिंता में वो वन को चल पड़ा और अंगिरा ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा और ऋषि से बोला- हे सप्तऋषियों में श्रेष्ठ अंगिराजी मैं आपकी शरण में आया हूं बात ये है कि मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है। मैंने अपने जीवन में किसी प्रकार का कोई पाप नहीं किया।आप दिव्य दृष्टि से देखकर कहो कि अकाल पड़ने का क्या कारण है।
अंगिरा ऋषि बोले - सतयुग में ब्राह्मणों का वेद पढ़ना और तपस्या करना धर्म है, परन्तु आपके राज्य में आजकल एक शूद्र तपस्या कर रहा है। शूद्र को मारने से दोष दूर हो जाएगा, और प्रजा को सुख मिलेगा । मान्धाता बोले - मै उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को नहीं मारूंगा । आप इस कष्ट से छूटने का कोई और सुगम उपाय बताइए। ऋषि बोले कि मैं सुगम उपाय कहता हूं, भोग और मोक्ष देने वाली देवशयनी एकादशी है।
इसका विधि पूर्वक व्रत करो। उसके प्रभाव से चातुर्मास तक वर्षा होती रहेगी ।ये एकादशी का व्रत सिद्धियों को देने वाला और उपद्रवों को शांत करने वाला है। मुनि कि शिक्षा से मान्धाता ने प्रजा सहित पदमा एकादशी का व्रत किया और कष्ट से छूट गया। इसका महात्मय पढ़ने या सुनने से अकाल मृत्यु के भय दूर हो जाते हैं। एकादशी के दिन तुलसी का बीज पृथ्वी या गमले में बोया जाए तो महापुण्य होता है। तुलसी के वमन से यमदूत भय खाते हैं। जिनका कंठ तुलसी माला से सुशोभित हो उनका जीवन धन्य समझना चाहिए।