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मां दुर्गा की विदाई के दिन होती है ये रस्म, क्यों करती है महिलाएं ऐसा?

suman
Published on: 8 Oct 2018 3:29 AM GMT
मां दुर्गा की विदाई के दिन होती है ये रस्म, क्यों करती है महिलाएं ऐसा?
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जयपुर:शारदीय नवरात्र इस साल 10 अक्टूबर से शुरू हो रहे हैं। अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है। नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। पहले दिन मां शैलपुत्री पूजा, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी पूजा, तीसरे दिन चंद्रघंटा पूजा, चौथे दिन कुष्मांडा पूजा, 5वें दिन स्कंदमाता पूजा, 6ठें दिन कात्यायनी पूजा, 7वें दिन कालरात्रि पूजा, 8वें महागौरी पूजन और 9वें दिन मां सिद्धिदात्री पूजन किया जाता है।

देशभर में नवरात्र धूमधाम से मनाए जाते हैं। पर अगर सबसे ज्यादा चर्चा रहती है तो वह है पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा की। पश्चिम बंगाल की भव्य दुर्गा पूजा दुनिया भर में विख्यात है। शायद ही कोई हो जो दुर्गा पूजा के बारे में न जानता हो। दुर्गा पूजा पर भव्य पांडाल सजते हैं और देवी के हर रूप की पूजा की जाती है। दुनिया भर से लोग दुर्गा पूजा में शामिल होने के लिए भारत आते हैं।

नवरात्रि के नौ दिन तक भक्त दुर्गा मां की पूजा और भक्ति करते हैं। जमकर पूजा पाठ होता है। दुर्गा के शक्तिशाली रूप में महिलाएं अपना अक्श देखती हैं। इस रोज खासतौर से महिलाएं मां दुर्गा की पूजा करती हैं। इस दुर्गा पूजा में ही सिंदूर की होली की भी खास चर्चा रही है। नौ दिन पूजा पाठ के बाद दशमी के दिन शादी शुदा महिलाएं सबसे पहले दुर्गा मां को सिंदूर लगाती हैं। इसके बाद एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। इसे सिंदूर खेला कहते हैं। दशमी पर सिंदूर लगाने की पंरपरा सदियों से चली आ रही है। खासतौर से बंगाली समाज में इसका बहुत महत्व है।

ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती हैं और वह अपने मायके में पांच दिन रुकती हैं, जिसको दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि मां दुर्गा मायके से विदा होकर जब ससुराल जाती हैं, तो सिंदूर से उनकी मांग भरी जाती है। साथ ही दुर्गा मां को पान और मिठाई भी खिलाई जाते हैं।

हिंदू धर्म में सिंदूर का बहुत बड़ा महत्व होता है। सिंदूर को महिलाओं के सुहाग की निशानी कहते हैं। सिंदूर को मां दुर्गा के शादी शुदा होने का प्रतीक माना जाता है। इसलिए नवरात्रि पर सभी शादी शुदा महिलाएं......एक दूसरे पर सिंदूर लगाती हैं। सिंदूर लगाने की इस पंरपरा को सिंदूर खेला के साथ सिंदूर की होली भी कहा जाता है। इस रोज बंगाल में सफेद और लाल साड़ी में सजी महिलाओं को सिंदूर खेलते देख अलग ही छटा बनती है। यह नजारा भव्यता को और बढ़ा देने वाला होता है।

इतना ही नहीं सिंदूर खेला की इस परंपरा के साथ कई मान्यताएं भी हैं। सुहागन औरतें सिंदूर खेला रस्म में एक-दूजे को सुहाग के अमर रहने की दुआएं देती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि जो महिलाएं सिंदूर खेला की प्रथा को निभाती हैं, उनका सुहाग सलामत रहता है। कहा यह भी जाता है कि दुर्गा मां की मूर्ति के विसर्जन के समय सारी महिलाएं एक-दूसरे के सुहाग की कामना और खुशहाली के लिए एक दूसरे पर सिंदूर लगाती हैं। साथ ही यह भी मानते हैं कि इस दिन दुर्गा मां को खुशी-खुशी विदाई दी जाती है।

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