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पंच-दिवसीय दीपावली, करेंगे ये उपाय तो भर जाएगी घर की तिजोरी
सहारनपुर: धनतेरस के दिन घर में धन-समृद्धि का आगमन होता है। लक्ष्मी पूजा का अर्थ धन से नहीं है। लक्ष्मी का अर्थ है, समृधि, सुख व स्वास्थ्य। इस दिन स्वास्थ्य के देवता धन्वंतरी औषधि कलश लेकर धरती पर प्रकट हुए थे। इस दिन कोई भी धातु या किसी भी धातु का बर्तन खरीद कर घर लाते हैं। परंतु ये बर्तन खाली न लेकर आएं, इसमें किसी भी प्रकार का धान्य लेकर आए, जिससे घर में धन-धान्य की कभी कमी न आएगी।
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ज्योतिषाचार्य मोहिनी भारद्वाज के अनुसार शाम को मुख्य द्वार पर यमराज के लिए अन्न से भरे पात्र में दक्षिण की ओर मुख कर के दीपक जलाएं और अपने व अपने परिवार की परेशानी व कष्टों से बचने की प्रार्थना करें। इस दिन गाय को चारा जरुर खिलाना चाहिए। यह अमृत का दिवस है, इस दिन ऋण दोष, बुरे प्रभाव, विशेष कष्ट से मुक्ति से निजात पाने के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं, तभी यह दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन अगर नारायण मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र को सिद्ध किया जाए, तो सभी प्रकार की परेशानियों को दूर किया जा सकता है। साफ-सफाई के साधन इस दिन जरुर ख़रीदें। इस दिन व्यापारी अपनी गद्दी व विद्यार्थी बैठने की कुर्सी की भी पूजा करते हैं।
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शाम को 13 आटे के दीपक तिल के तेल के जला कर अपनी तिज़ोरी व कुबेर का पूजन करें, फिर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर यम को जल अर्पण करें, पूजा में दान करने के लिए अनाज़ ज़रुर निकालें। किसी विशेष सिद्धि की प्राप्ति के लिए विशेष महुर्त में ही अनुष्ठान करें।
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धनतेरस के दूसरे दिन जिसे छोटी दीवाली कहते हैं। इसी दिन को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन सूर्य उदय से पहले स्नान करने से अनेक समस्याओं से छुटकारा मिलता है। शुभ महुर्त में ही साधना व अनुष्ठान करें, शाम को चहुंमुखी मिट्टी के दीपक में शुद्ध तेल डाल कर और दीपक के नीचे थोड़ा सा अनाज़ व दीपक में कुछ सिक्के डाल कर रात भर जलने दें। सुबह यही अनाज़ किसी गरीब को दान दें व कुछ घर में दूसरे अनाज़ में मिला लें व सिक्का अपनी तिज़ोरी में रख लें।
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दीवाली के दिन शाम को घर के बाहर सुंदर रंगोली बनाई जाती है। अमावस्या की काली रात को दिवाली के दिन शुभ महुर्त में धन की देवी "श्री" की विधि-विधान से आराधना की जाती है, जिसके बारे मे नीचे विस्तार से बताया गया है। इस दिन पंच धातु का पिरामिड स्थापित करने से धन का आगमन बना रहता है। पूजा के उपरांत घरों व चौराहे पर घी के दीपक जलाए जाते हैं, जिस से अमावस्या की काली रात उज़ाले मे बदल दिया जाए।
दीवाली के अगले दिन गोर्वधन पूजा की जाती है, इस दिन भगवान कृष्ण ने इंद्र का अभिमान भंग करने के लिए गोर्वधन पर्वत को सबसे छोटी उंगली पर उठाया था। तभी इस दिन भग्वान कृष्ण की प्रतिमा बना कर पूजा आराधना कर 56 भोग लगाने का विधान है। इस दिन भी घर के बाहर शुद्ध तेल का दीपक जलाया जाता है।
पांचवें दिन को भाई-बहन के प्रेम के रुप में मनाया जाता है, बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगा कर उसके जीवन की मंगलकामना करती है, भाई भी उपहार देकर अपनी बहन को खुश करता है।