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पति के बाद अब करिए पुत्रों की आयु वृद्धि के लिए जरूर रखें अहोई अष्टमी व्रत

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Published on: 9 Oct 2017 3:09 PM IST
पति के बाद अब करिए पुत्रों की आयु वृद्धि के लिए जरूर रखें अहोई अष्टमी व्रत
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सहारनपुर: करवा चौथ पर जहां विवाहिताओं ने अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत किया, वहीं अब तीन दिन बाद विवाहिताएं अपने पुत्रों की सलामती के लिए व्रत करेंगी। यह पर्व है अहोई अष्टमी। इस पर्व की खास बात यह है कि इसे न केवल विवाहिताएं बल्कि तलाकशुदा और विधवा महिलाएं भी कर करेंगी। इस व्रत को करने से पुत्रों की आयु में वृद्धि होती है।

सहारनपुर के श्री बालाजी धाम के संस्थापक गुरू श्री अतुल जोशी जी महाराज के अनुसार अहोई अष्टमी का पर्व भी बडे पर्वों में से एक है। इस व्रत में बच्चों के कल्याण की भावना छिपी होती है। इस व्रत को करने से पारिवारिक सुख की प्राप्ति भी होती है। अहोई अष्टमी का पर्व कार्तिक मास की अष्टमी को मनाया जाता है, यानि कि करवा चैथ से ठीक चार दिन बाद अहोई अष्टमी व्रत आता है। इस साल यह पर्व 12 अक्टूबर 2017 को देशभर में मनाया जाएगा।

अहोई अष्टमी पूजा का मुहूर्त

पूजा का समय- शाम 5.50 से 7.06 बजे तक

अष्टमी प्रारंभ समय- 12 अक्टूबर

अष्टमी का समापन- 13 अक्टूबर

चंद्रोदय- रात 11.53 बजे।

यह है अहोई माता की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुार बहुत समय पहले एक साहूकार हुआ करता था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी। दीपावली पर्व नजदीक था। साहूकार के घर की साफ सफाई होनी थी। जिसके लिए रंग आदि का कार्य चल रहा था। इस कार्य के लिए साहुकार की पुत्री जंगल में गई और मिट्टी लाने के लिए उसने कुदाल से मिट्टी खोद ली। मिट्टी खोदते समय कुदाल स्याह के बच्चे को लग गई, जिससे उसकी मौत हो गई। तब ही स्याह ने साहूकार के पूरे परिवार को संतान शोक श्राप दे दिया। जिसके बाद साहूकार के सभी सभी पौत्रों का भी निधन हो गया।

इससे साहूकार के सभी सात बेटों की बहुएं विचलित हो गई। साहूकार की बहुएं और पुत्री मंदिर में गई और वहां पर अपना दुख देवी के समक्ष प्रकट किया। कहा जाता है कि तभी वहां एक संत आए, जिन्होंने सातों बहुओं को अष्टमी का व्रत रखने के लिए कहा। इन सभी ने पूरी श्रद्धा के साथ अहोई माता का व्रत किया। जिससे स्याह का क्रोध शांत हो गया और उनके खुश होते ही उसने अपना श्राप वापस ले लिया। इस प्रकार साहूकार के सभी सातों पुत्रों व पुत्री की सभी संतान जीवित हो गई।

कैसे करें पूजा

सुबह को जल्दी उठने और स्नानादि दैनिक कार्यों से निपटने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। यह व्रत पूरी तरह से निर्जल होता है। शाम को अहोई अष्टमी की पूजा की जाती है। अहोई माता का चित्र बनाया जाता है या बाजार से आप बना बनाया चित्र भी ला सकती है। विधि विधान से उनका पूजन करें। अहोई माता से प्रार्थना करें कि उनकी कृपा दृष्टि आपकी सभी संतान पर बनी रहे। पौराणिक कथा के अनुसार अहोई माता बच्चों की सुरक्षा करती है। इसलिए माताएं इनकी पूजा अर्चना करती है।



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