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B'Anniv Special: बच्चनजी की जयंती और फिर याद आ गया वो पुराना ख़त...
Anand V. Ojha
लखनऊ: आप यकीन करें, आज सुबह-सुबह पूज्य पिताजी का चिर-परिचित स्वर फिर कानों में गूंज गया-'बच्चन आज इतने वर्ष के हो गए, मैं 27 जनवरी को इतने वर्षों का हो जाऊंगा।...'
पिछले दिनों मेरे कागजों में बच्चनजी का एक मज़ेदार पत्र मिला है। यह ख़त मेरे नाम है। इस पर कोई तिथि तो दर्ज नहीं है, लेकिन पोस्ट ऑफिस की मुहर ध्यान से देखने पर ज्ञात होता है कि जून 1971 के आसपास का खत है। बच्चनजी की लहरदार हस्तलिपि को पढ़ लेना सबके वश की बात नहीं। इसीलिए मूल पत्र का टंकित मजमून यहां रख रहा हूं। आज बच्चनजी की 109वीं जयंती है। यह पत्र उन्हीं की प्रीति-स्मृति को नमन करते हुए श्रद्धासहित लोकार्पित कर रहा हूं। -आनंद।
बच्चनजी का पत्र...
13, वि.क्रि., न. दि-11.
चिरंजीव,
आयुष्मान !
पत्र के लिए ध.
पर पत्र पढ़कर दिल बैठ गया।
तुम मेरी पुस्तकें औरों को पढ़वाकर मेरा बड़ा नुकसान कर रहे हो। यदि वे खरीदते तो डेढ़-दो रुपए प्रति पुस्तक रॉयल्टी के मुझे मिलते। तुम यह किया करो कि मेरी पुस्तक तो बेशक़ अपने मित्रों को पढ़ने को दो, पर दाम पर 20 प्रतिशत रॉयल्टी मांग लो और वह इकट्ठा कर मुझे भेजते रहो। उदाहरणार्थ जो 'नीड़ का निर्माण फिर' पढ़े, वह 2 रु. 40 पैसे दे।
प्रसन्नता हुई की मेरी पुस्तकों में तुम्हारी रुचि जागी है।
सुना कि तुम कुछ लिखते भी हो। कभी देखना चाहूंगा। लेखक बनना बड़ा मुश्किल काम है। बहुत श्रम-लगन-धीरज मांगता है। सोच-समझकर इस पथ पर पांव धरना।
अपने पाठ्यक्रम को प्राथमिकता दो अभी। जीविकोपार्जन का कोई समुचित साधन प्राप्त कर लेने पर ही मैं लेखक बनने की सलाह दूंगा।
अजितजी जर्मनी में Cargo-shipping में प्रशिक्षण ले रहे हैं।
अमित की आनेवाली तस्वीरें हैं--'परवाना', 'प्यार की कहानी'।
घर में सबको मेरे आशीष!
सस्नेह--बच्चन।