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इस मंदिर में होती है इनकी पूजा, औरतों के प्रसाद खाने पर है यहां मनाही
जयपुर :झारखंड में जमशेदपुर के नजदीक बसे गांव लावाजोर में बना है हाथीखेदा मंदिर। वहां रोजाना हजारों की तादाद में लोग जाते हैं। उन की मन्नत पूरी हो या न हो, पर भेड़ की बलि वे जरूर देते हैं। पर यहां का प्रसाद औरतें नहीं खा सकतीं। चढ़ाया गया प्रसाद चाहे भेड़ का मांस हो या नारियल का, उन के प्रसाद खाने पर बैन है। औरतें पूजा करने के बाद मंदिर के बाहर बने ढेर सारे झोंपड़ेनुमा होटलों में जा कर अपना पेट भर सकती हैं।
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हाथीखेदा मंदिर में हाथी की पूजा होती है। यह मंदिर जिस जगह पर बना हुआ है उस के चारों ओर दलमा के ऊंचेऊंचे जंगल हैं. इसे दलमा पहाड़ भी कहते हैं।
यह भी झारखंड में सैलानियों के घूमने-फिरने की एक मशहूर जगह है. इस में अनेक जंगली जानवर रहते हैं. दलमा पहाड़ के ऊंचे घने जंगलों में हाथियों का खासतौर पर वास है। जंगलों में रहने वाले यहां के आदिवासी बहुत ही अंधविश्वासी होते हैं. वे हाथी को भगवान का प्रतीक मानते हैं. इसे देवता का प्रकोप मान कर बचने के लिए उन्होंने हाथी की मूर्ति रख कर उस की पूजा करना शुरू कर दिया था।
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यहां रोजाना चढ़ावे के रूप में लोग प्रसाद के अलावा 11 रुपए से 11 सौ रुपए तक चढ़ाते हैं. जिस जगह हाथी की पूजा होती है उस के ठीक पीछे भेड़ की बलि दी जाती है।
लोगों में अंधविश्वास का आलम यह है कि यहां आने वाले तथाकथित भक्त नारियल पर 'जय हाथीखेदा बाबा' के नाम से छपे लाल कपड़े को लपेट कर पेड़पौधों पर टांग देते हैं. यहां जितने भी पेड़पौधे हैं तकरीबन सभी की डालों और तनों पर ऐसे बेहिसाब नारियल बंधे देखे जा सकते हैं। बताया जाता है कि जिस की मन्नत पूरी हो जाती है वह यहां आ कर पेड़ से बंधे नारियल को खोल देता है और हाथीखेदा बाबा की पूजा करता है।