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पाकिस्तान : मीर जाफर ‘मुल्क का गद्दार' था, उसके वंशज को विरासत में मिली गद्दारी

Rishi
Published on: 23 July 2018 2:17 PM GMT
पाकिस्तान : मीर जाफर ‘मुल्क का गद्दार था, उसके वंशज को विरासत में मिली गद्दारी
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आशीष शर्मा 'ऋषि' आशीष शर्मा 'ऋषि'

बचपन में हम जब बहुत छोटे थे। तो स्कूल में एक पीरियड हिस्टरी का होता था। बहुत मजा आता था। वो क्या है कि हिस्टरी वाली मैम पहला क्रश जो थी। लेकिन सबसे बुरा उस समय होता था। जब वो गड़े मुर्दों के बारे में सवाल दाग देती और हम लुल्ल बने खड़े रहते। ये हिस्टरी की मिस्टरी कभी सुलझी ही नहीं। लेकिन आज न हम अपने दोस्तों में मिस्टर हिस्ट्री कहे जाते हैं। अब आज कल पड़ोसी देश पाकिस्तान में चुनावी मौसम फिजाओं में तारी है तो हमने सोचा कि लगे हाथ कुछ ऐतिहासिक ज्ञान दे दिया जाए, क्या पता कल को किसी इन्टरव्यू में हमारी कहानी से जुड़ा कोई सवाल आपकी नौकरी पक्की करा दे। तो धुनी रमा के बैठ जाइए।

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आरंभ करते हैं बंगाल से, अंग्रेज नए नए देश में आए थे। उनको बंगाल अपने कब्जे में करना था। लेकिन नवाब सिराजुद्दौला उनके किसी मंसूबे को पूरा नहीं होने दे रहे थे। अंग्रेजों का आर्मी चीफ रॉबर्ट क्लाइव घना शातिर आदमी था। उसने जयचंद टाइप बंदे की खोज में अपने आदमी लगा दिए कि जाओ पता करो कौन पैसे (हमने समझाने के लिए पैसे लिखा है) लेकर हमारा काम कर देगा।

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क्लाइव को जल्द ही वो बंदा मिल गया। नाम था मीर जाफर। मीर नवाब साहब का जनरल था। एक नंबर का लालची और धूर्त। उसने गोरों के साथ डील कर ली।

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फिर आया 23 जून, 1757 का दिन। जगह थी प्लासी का मैदान। मीर की गद्दारी के चलते नवाब हार गए। इसके बाद गोरों ने देश में धीरे-धीरे कब्ज़ा कर लिया। लेकिन मीर को नया नाम मिला ‘मुल्क का गद्दार'। उस मीर के चलते जहां देश तबाह हुआ वहीँ उसके एक वंशज के चलते पाकिस्तान की तबाही की इबारत लिखी गई। हम बात कर रहे हैं, इस्कंदर मिर्जा की जो इसी मीर का वंशज था।

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थोड़ी जानकरी इस्कंदर मिर्जा के बारे में दे देतें हैं। वर्ना मजा नहीं आएगा। तो ये जो मिर्जा साहब थे, ब्रिटिश सेना के पहले वो इंडियन थे जिन्होंने सैंडरहर्स्ट मिलिटरी अकादमी से किंग कमीशन पाया था। बाद में उनको पॉलिटिकल सर्विस में भेजा गया। जब पाकिस्तान बना, तो जिन्ना को सिर्फ एक बंदा चाहिए था और वो थे इस्कंदर मिर्जा। जिसे पाकिस्तान का डिफेंस सेक्रटरी बनाया जा सकता था।

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मिर्जा 1956 में देश के पहले राष्ट्रपति बने। मिर्जा को किसी पर सबसे ज्यादा भरोसा था तो वो था आर्मी चीफ अयूब खान। लेकिन अयूब को जिन्ना पसंद नहीं करते थे। एक बार जिन्ना ने अयूब के कोर्ट मार्शल का आदेश दिया। लेकिन मिर्जा ने अयूब को बचा लिया। यहीं से मिर्जा की कहानी में ट्विस्ट ने प्रवेश किया।

अयूब को 1955 जनवरी में रिटायर होना था। लेकिन डिफेंस सेक्रटरी मिर्जा साहेब पीएम मुहम्मद अली बोगरा के सामने फैल गए कहा अयूब का कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया, तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। बोगरा परेशान हो गए मरते क्या न करते अयूब को एक्सटेंशन दे दिया। बोगरा ने मिर्जा की बात तो मान ली। लेकिन उनसे कह भी दिया कि गलती कर रहे हैं आप। लेकिन मिर्जा ने बात नहीं मानी।

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साल 1958 में मिर्जा लोकतंत्र की हत्या करने की प्लानिंग कर रहे थे, उन्हें सर्वशक्तिमान बनना था। मार्शल लॉ लगाने का मन बना रहे थे। 7 अक्टूबर को मार्शल लॉ का ऐलान कर दिया। संविधान रद्द कर दिया गया। सभी राजनैतिक दलों पर बैन लग गया। मिर्जा को लगा अब मैं ही देश का माई बाप हूं। लेकिन उनको नहीं पता था कि इस बार मीर जाफर की आत्मा अयूब के अंदर आ चुकी है।

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24 अक्टूबर को खेल हो गया अयूब ने कहा, आज से मैं सेना प्रमुख के साथ-साथ पीएम भी हूं। 27 अक्टूबर को अयूब ने मिर्जा को संदेसा भेजा खुद रास्ते से हट जाओ, तो अच्छा रहेगा। पत्नी के साथ मुल्क छोड़कर चले जाओ। मिर्जा की जायदाद को अयूब ने कब्जे में ले लिया।

मिर्जा देश छोड़ लंदन चले गए। वहां उनको गरीबी से दो चार होना पड़ा। कुछ दोस्तों ने मदद भी की लेकिन वो काफी नहीं थी। 1969 में मिर्जा का इंतकाल हो गया। उनकी लाश को पाकिस्तान ले जाने की इजाजत नहीं मिली। तब मिर्जा के दोस्त ईरान के शाह ने लाश ईरान मंगवाई और उसे सम्मान के साथ दफनाया।

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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