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कानपुर के इस मंदिर में ईंट से बदलती है लोगों की किस्मत, जानें इसके पीछे का रहस्य
कानपुर : कानपुर के किदवई नगर में स्थित जंगली देवी मंदिर में जो मांगों सब माता रानी पूरी करती है। कहते हैं कि यहां का एक ईंट अपने घरों में लगाए तो किस्मत बदल जाती है।
इसके लिए मंदिर में मूर्ति के पीछे बनी नाली में ईट रखने की परंपरा है ,फिर उस ईंट को निर्माणाधीन मकान में लगाने से दिन-दुनी रात चौगनी तरक्की होती है, ये है जंगली देवी की कृपा।
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मूर्ति रंग बदलता है
साथ ही जो भी भक्त पूरी श्रद्धा के साथ माता के चेहरे को निहारता है, धीरे-धीरे माता की प्रतिमा का रंग गुलाबी हो जाता है ।इस प्राचीन मंदिर का इतिहास बहुत ही पुराना है। जंगल में मंदिर होने के कारण यह जंगली देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। माता जी प्रतिमा के सामने जो भक्त पूरी आस्था के साथ चेहरे को निहारता है और उसके बाद प्रतिमा का रंग धीरे-धीरे गुलाबी होने लगता है तो इसका मतलब है कि मनोकामना पूरी हो गई ।
पहले या था राजा भोज का शासन
कहते हैं जिस स्थान पर मां जंगली देवी का मंदिर है, 838 ईसवीं में वहा पर राजा भोज का राज था । राजा भोज ने बगाही क्षेत्र में एक विशाल मंदिर बनवाया था l लेकिन राजशाही समाप्त होने के बाद सब कुछ नष्ट हो गया था l
17 मार्च साल 1925 में मोहम्मद बकर अपने घर के निर्माण के लिए खुदाई करा रहे थे उसी दौरान उनको एक ताम्र पात्र मिला था, जिसे देखने के लिए पूरा गांव जमा हो गया था, लेकिन उन्होंने इस ताम्र पात्र को पुरातत्व विभाग को सौप दिया था ।
मंदिर प्रबंधन के अनुसार क्षेत्रीय लोगों के प्रयास से ताम्र पात्र को वापस लाया गया और एक तालाब के किनारे नीम के पेड़ के नीचे रख कर वहां एक छोटा से मंदिर बना दिया गया, लेकिन उस समय इस क्षेत्र में बहुत बड़ा जंगल था। मंदिर के पास लोग जाने से डरते थे, क्योंकि मंदिर के पास बने तालाब में जंगली जानवर पानी पीने आते थे । समय के साथ धीरे-धीरे तालाब सुख गया और आबादी बढ़ने लगी, लोग यहां पर पूजा करने आने लगे साधु संतों ने वहा पर अपना डेरा जमा लिया । इसके बाद आपसी सहयोग से मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया ।
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अखंड ज्योत कभी नहीं बुझती
मंदिर की विशेषता हैं कि इस मंदिर में भक्तों की अटूट आस्था है। जंगली देवी मंदिर में साल 1980 से अखंड ज्योति जल रही है । जो भी भक्त अखंड ज्योति जलाने में योगदान देता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है । प्रसिद्ध इतिहासकार रामकृष्ण अवस्थी के अनुसार मंदिर के ताम्र पात्र पर अंकित लिपि से इस बात का पता चलता है कि यह लगभग 1200 साल से अधिक पुराना है ।