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आखिर क्या होता है कालसर्प दोष, जानिए उसके प्रभाव और निराकरण

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Published on: 8 Aug 2017 1:50 PM IST
आखिर क्या होता है कालसर्प दोष, जानिए उसके प्रभाव और निराकरण
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पं. देवेन्द्र भट्ट (गुरूजी), ज्योतिर्विद एवं वास्तुविद

लखनऊ: कालसर्प योग जिस किसी की कुंडली में प्रवेश कर जाता है, उसे उसके जीवन में ना केवल विपदाएं घेर लेती हैं, बल्कि उसकी प्रगति के रास्ते भी बंद हो जाते हैं।

व्यावहारिक रूप से पीड़ित व्यक्ति आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होता ही है, मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्ट होता है। या तो उसे संतान होती ही नहीं, या होती है, तो वह बहुत ही दुर्बल व रोगी होती है। उसकी रोजी-रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है। तरह-तरह के रोग भी उसे परेशान किए रहते हैं।

क्या होता है कालसर्प दोष?

यह लग्न चक्र के 12 भावों में से राहु एवं केतु 180 डिग्री पर किसी भाव में विच्छेदन करते हैं। जब बाकी के 7 ग्रह इनके मध्य आ जाते हैं, तो कालसर्प दोष का निर्माण होता है।

राहु एवं केतु के विषय में यह जान लें कि यह एक छाया ग्रह है और किसी खगोलीय पिण्ड के रूप में इनका अस्तित्व नहीं है। वास्तव में चंद्रमा अपनी धुरी पर पृथ्वी की परिक्रमा में, सूर्य के दीर्घवृत्तीय पथ को उत्तर एवं दक्षिण में 180 डिग्री पर काटता है, तो यही बिंदु राहु एवं केतु के रूप में जाने जाते हैं। इस प्रकार राहु एवं केतु चंद्रमा के दो गणितीय बिंदु हैं।

प्राचीन भारतीय ज्योतिष की किसी भी विधा अथवा ग्रंथ में यथा पराशर होता, जैमिनी सूत्रम्, बृहत जातकम्, जातक पारिजात आदि में कालसर्प दोष का उल्लेख नहीं है अर्थात ज्यातिषाचार्यों का एक वर्ग इसे नहीं मानता है। वैदिक ज्योतिष से भिन्न एक अन्य विधा है- लाल किताब पद्धति। यही से लिए गए कालसर्प दोष, वर्तमान में ज्वलंत विषय है। बहरहाल, पद्धति चाहे जो भी हो अगर विषय रोचक एवं चर्चित है तो इसके विषय में जान लेना आवश्यक है।

पूर्ण कालसर्प योग के लिए आवश्यक है कि शेष सभी ग्रहों की डिग्री, राहु और केतु के मध्य आनी चाहिए। यदि किसी भी ग्रह की डिग्री राहु या केतु से बाहर जाती है तो उसे आंशिक कालसर्प की श्रेणी में रखा जाएगा। समान्यतया कालसर्प दोष वाले जातक का जीवन संघर्षमय होता है और जीवन में सफलता आयु के उत्तरार्ध में प्राप्त होता है।

आगे की स्लाइड में जानिए कितने प्रकार के होते हैं कालसर्प दोष

कितने प्रकार के होते हैं काल सर्प दोष

कुंडली में बनने वाला कालसर्प दोष, बारह प्रकार का होता है जो राहु-केतु के अलग-अलग भावों में स्थित होने के आधार पर बनता है। राहु-केतु के मध्य शेष सात ग्रह आने पर कालसर्प दोष बनता है परंतु केतु से राहु के मध्य आने वाले सभी ग्रहों से विपरीत काल सर्प दोष का निर्माण होता है, जो महान राजयोग का एक भी होता है।

लग्न चक्र में राहु-केतु की स्थिति के अनुसार बारह प्रकार के कालसर्प दोष चिन्हित किए गए हैं।

1- अनंत कालसर्प दोष- जब कुंडली के पहले घर में राहु, सातवें घर में केतु हो तो, अनंत कालसर्प दोष बनता है। इस प्रकार का दोष वैवाहित जीवन में कटुता उत्पन्न करता है। स्त्री अथवा पुरुष के विवाहेत्तर प्रेम संबंध होते हैं। विवाह विच्छेद की स्थिति भी आ सकती है। जातक को व्यापार की स्थिति में मित्र से धोखा मिल सकता है।

2- कुलीक कालसर्प दोष- कुंडली के दूसरे एवं सातवें घर में क्रमश: राहु-केतु हों एवं बाकी सातों ग्रह इनके मध्य हों, तो कुलीक कालसर्प दोष बनता है। इस दोष से पीडि़त जातक को किशोरावस्था में ही मादक पदार्थों के सेवन की लत लगती है। जातक का उसकी वाणी पर संयम नहीं रहता है। मुंह अथवा गले की बीमारी की संभावना बनी रहती है। जातक को सलाह दी जाती है कि मध्यपान करके वाहन न चलावें।

3- वासुकी कालसर्प दोष- कुंडली के तीसरे नवें भाव में क्रमश: राहु-केतु हो एवं बाकी के सातों ग्रह इनके मध्य हों, तो वासुकी कालसर्प दोष बनता है। ऐसा जातक पराक्रमी-उद्यमी होने के बावजूद वांछित सम्मान प्राप्त नहीं करता है। जातक का धर्म-कर्म में विश्वास कम रहता है। भाई-बहनों से भी कटुता रहती है।

4- शंखफल-कालसर्प दोष- राहु-केतु क्रमश: चौथे एवं दसवें घर में हो एवं शेष सातों ग्रह इनके मध्य हो तो शंखफल कालसर्प दोष बनता है। जातक की माता को शारीरिक एवं मानसिक परेशानी रहती है। जातक बाल्यावस्था में ही चोरी, विद्यालय छोड़ देने जैसे कार्य करता है। समय रहते उपाय करने से जातक को इसके दुष्प्रभावों से बचाया जा सकता है।

5- पद्म कालसर्प दोष- कुण्डली में जब राहु-केतु क्रमश: पांचवें एवं एकादश भाव में हो तो एवं शेष सातों ग्रह इन दोनों के मध्य हों तो कुण्डली में पद्म कालसर्प दोष होता है। इस दोष से ग्रसित जातक की शिक्षा किसी भी कारणवश बाधित हो जाती है। प्रेम प्रसंग में धोखा खाने की संभावना रहती है। विवाह के पश्चात संतानोपत्ति में विलंब होता है। जातक नीच कर्म द्वारा जीवन यापन करता है।

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6- महापद्म कालसर्प दोष- कुंडली में राहु-केतु क्रमश: छठवें और द्वादश भाव में स्थित हों एवं शेष सातों ग्रह इनके मध्य हों तो महापद्म कालसर्प दोष बनता है। इस दोष से पीडि़त जातक जीवन भर अपनी नौकरी व व्यवसाय में बदलाव की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। सहकर्मियों से संबंधों में कटुता आती है। गंभीर बीमारी से पीडि़त होने के कारण बार-बार अस्पताल के चक्कर काटने पड़ते हैं।

7- तक्षक कालसर्प दोष- कुंडली में राहु-केतु क्रमश: सातवें एवं लग्न में हों तो तथा शेष सातों ग्रह इनके मध्य हों तो तक्षक कालसर्प दोष होता है। इस दोष पीडि़त जातक की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इस कारण बार-बार बीमार पड़ जाता है। जातक विवाह में विलंब होता है। विवाह के पश्चात भी पति-पत्नि के साथ रहने का संयोग भी कम ही बनता है।

8- कर्कोटक कालसर्प दोष- कुंडली में राहु-केतु क्रमश: आठवें एवं दूसरे भाव में हों बाकी सभी ग्रह इन दोनों के मध्य हों तो कर्कोटक कालसर्प दोष होता है। इस दोष से पीडि़त जातक सदैव कटुवाणी का प्रयोग करता है। पुश्तैनी जायदाद से भी हाथ धोना पड़ सकता है। विवाह के पश्चात जातक का दाम्पत्य जीवन में शारीरिक संबंध भी बनाने में व्यवधान आता है। जहर द्वारा मृत्यु की संभावनाएं बनी रहती हैं।

9- शंखनाद कालसर्प दोष- कुंडली में राहु-केतु क्रमश: नवें एवं तीसरे भाव में स्थिति हों तो शंखनाद कालसर्प दोष बनता है। यह कालसर्प दोष पितृ दोष का भी निर्माण करता है। जातक के जन्म के पश्चात परिवार में अन्यान्य कठिनाइयां आती हैं। पिता के ऊपर सर्वाधिक दोष होता है। जीवन काल में भी सर्वाधिक अत्यधिक मेहनत करनी पड़ती है।

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10- घटक कालसर्प दोष- कुंडली में राहु-केतु क्रमश: दशवें और चतुर्थ भाव में हों शेष ग्रह इनके मध्य हों तो घटक कालसर्प दोष होता है। इस दोष से ग्रसित जातक को अपने उच्च अधिकारियों से अनबन के कारण पदोन्नति की संभावना क्षीण हो जाती है। माता-पिता की सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। एवं जातक को उनसे दूर भी रहना पड़ता है।

11- विषधर कालसर्प दोष- ग्यारहवें राहु एवं पांचवें केतु तथा बाकी सभी ग्रह इन दोनों भावों के मध्य हों तो विषधर कालसर्प दोष बनता है। इस दोष से पीड़ित जातक को अल्प संतान का योग होता है। संतान कमजोर एवं बीमार रहती है। जातक की याददाश्त बेहद कमजोर होती है। जातक की शिक्षा भी इस कारण प्रभावित होती है।

12- शेषनाग कालसर्प दोष- कुंडली के बारहवें भाव में राहु एवं छठवें भाव में केतु स्थित हों तथा शेष ग्रह इन दोनों के मध्य फंसे हो तो शेषनाग कालसर्प दोष माना जाता है। ऐसे जातक का विश्वासघात एवं गुप्त दुश्मन से सदैव खतरा रहता है। हड्डियां कमजोर होती हैं। एवं स्नायु संबंधी विकार की समस्या बनी रहती है।

यह ध्यान देने योग्य बात है कि यह कालसर्प दोष के बताये गए विभिन्न प्रकार एवं उनके दोष सामान्य तौर पर पाए जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का लग्नेश, राहु और केतु के स्थित भावों का स्वामी, नक्षत्रों में स्थित विभिन्न ग्रहों की स्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण किए बिना भविष्वाणी करना संभव नहीं।

इसके लिए योग्य एवं सिद्धहस्त आचार्य ही विश्लेषण कर सकते हैं। दोषों का परिहार, प्रकृति एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कर किया जा सकता है एवं दोष कम किया जा सकता है।

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दोषों को परिहार सामान्य तौर पर दिए जा रहे हैं-

1- द्वादश ज्योर्तिलिंगों पर शुभ नक्षत्र एवं योग में रूद्धाभिषेक करने से दोष का परिहार किया जा सकता है।

2- उज्जैन के महाकाल मंदिर एवं नासिक जिले के त्रयम्बकेश्वर मंदिर में इस दोष के परिहार की पूजा भी कराई जाती है। जो प्राय: सफल देखा गया है।

3- चांदी का सर्प शुभ काल एवं शुभ शिव-वास में नदी में प्रवाहित कर दोष को कम किया जा सकता है।

4- बटुक भैरव की पूजा ऐसे जातक को सदैव करनी चाहिए।

5- महामृत्युंजय के मंत्र की जाप प्रत्येक दिन करनी चाहिए।

6- श्रावण मास में नागपंचमी के दिन भी इसकी विशेष पूजा का विधान है।

7- प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को मास शिवरात्रि होती है। इस दिन गौरी-शंकर एवं श्री नन्दी: गणेश, कार्तिकेय की पूजा कर चांदी का सर्प जल में प्रवाहित करें। ऐसा 11 मास तक अनवरत करने पर भी दोष परिहार होता है।



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