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कतकी के दिन करते हैं इन चीजों का दान तो वंश वृद्धि के साथ मिलता है अक्षय फल
जयपुर:कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक असुर का अंत किया था और शिव त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए। कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था।
कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ करने से पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन अन्न, धन एवं वस्त्र दान का बहुत महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा को भगवान सत्यनारायण का व्रत रखने के लिए भी शुभ दिन माना जाता है। सिख संप्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गुरु नानक देव का जन्म हुआ। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है। कार्तिक के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कार्तिक (कतकी) मनाई जाती है। इस दिन गंगा स्नान, दान और त्रिदेव भगवान की पूजा का महत्व है। पुराण के अनुसार इस दिन भरणी नक्षत्र होने से इसका फल हजार गुना बढ़ जाता है। 4 नवंबर को भरणी नक्षत्र होने से महाकार्तिकी योग बन रहा है।
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महाभारत युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण, पांडवों के साथ गढ़मुक्तेश्वर में गंगा के रेतीले मैदान पर आए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने गंगा स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान किया। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ में गंगा स्नान का विशेष महत्व है।
इस दौरान शुरू किए गए कार्यों में सफलता जरूर मिलती है। कार्तिक पूर्णिमा में गंगा स्नान के साथ दीपदान का महत्व है। इस दिन सिखों के गुरु गुरुनानक देव का भी जन्म हुआ था। स्कंध पुराण के अनुसार कतकी में त्रिदेव (ब्रह्म, विष्णु और महेश) का विशेष महत्व है। सिद्धयोग होने से गंगा स्नान से हजार गुना फल प्राप्त होगा। शिव-पार्वती के साथ भगवान गणेश और कार्तिकेय का पूजन भी होता है।
मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्मा, विष्णु और महेश वेष बदलकर स्नान करते हैं। इस दिन दीपदान का भी महत्व है। गंगा स्नान के बाद दीपक प्रज्वलित करने से भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मीजी की कृपा बरसती है। इस दिन वस्त्रों का भी दान किया जाता है।
मान्यताएं
कार्तिक पूर्णिमा को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। पुराण के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर दैत्य का वध किया था। तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन लोग गंगा स्नान कर भगवान शिव की पूजा करने लगे। एक अन्य कथा में बताया गया कि इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इस दिन लोग विष्णु की पूजा करते हैं। शिव पुत्र कार्तिकेय की छह माताओं शिवा, सम्मुत, प्रीती, संतति, अनुसूइया और क्षमा की भी पूजा होती है।
इस दिन दीपक दान करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है। इस दिन बैल का दान देने से इसका कई गुना फल मिलता है। ऊनी वस्त्र, फल, चावल, गेहूं, सफेद कपड़े, तिल, दूध दान देने से वंश बढ़ता है।
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