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सियासत को बस नेताओं तक ही रहने दो, न खींचो बेटी को, उस मासूम को बक्श दो

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Published on: 16 Aug 2016 12:43 PM IST
सियासत को बस नेताओं तक ही रहने दो, न खींचो बेटी को, उस मासूम को बक्श दो
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लखनऊ: मम्मी मुझे खाना दो.. दादी आज शाम आप मेरे साथ गेम खेलोगी न..प्रिया तुम्हें पता है। कल हिस्ट्री वाली मैम ने बिना बताए सरप्राइज टेस्ट लिया था.. पापा आप कहां बिजी रहते हो? मैं कितनी बार कॉल करती हूं, तब जाकर कहीं आप एक बार पिक करते हो.. जाइए मैं आपसे बात नहीं करती।

कुछ इसी तरह से चहकने वाली मासूम की आवाज आज सुनने के लिए एक मां तड़प रही है। बेचारी दादी ने हर कोशिश करके देख ली है कि किसी तरह उनकी पोती एक बार मुस्कुराकर उनके साथ खेल खेले, लेकिन वह किसी की बात का कोई जवाब नहीं देती है। कल तक स्कूल से घर आते ही 12 साल की वो बच्ची जो उधम मचाकर पूरा घर सिर पर उठा लेती थी, आज उसकी एक छोटी सी शरारत के लिए पूरा परिवार तरस रहा है। यह कहानी किसी और की नहीं भाजपा के एक नेता की है, जिन्होंने हाल ही में बसपा सुप्रीमो मायावती के खिलाफ एक बहुत ही भद्दे शब्द का प्रयोग किया था। उनके इस बयान के बाद मानो राजनीति के गलियारों में गालियों की बहार आ गई हो।

dayashankar case

उन्होंने एक गाली दी, तो विरोधी लोगों ने 100 गालियां दी। अरे गालियां देने तक उनकी नाराजगी समझ आ रही थी, हद तो तब हो गई, जब विरोधी नेता खुलेआम चिल्लाने लगे ‘...... की बेटी को पेश करो, ..... अपनी बहन को पेश करो’.. पर उनमें से अगर कोई यह पूछ लेता कि ‘क्या उस सेवेंथ में पढ़ने वाली लड़की को ‘पेश’ जैसे शब्द का सही मतलब भी पता होगा नहीं न, एक आम इंसान के नजरिए से जरा सोचकर देखिए, क्या उस मासूम सी बच्ची के लिए ऐसे शब्द यूज करने चाहिए? क्या किसीने एक बार भी सोचा कि इन शब्दों का उस मासूम के दिमाग पर क्या असर पड़ रहा होगा।

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रोज शाम को घर से शोर मचाते हुए घर के बाहर वाले पार्क में खेलने के लिए निकल जाने वाली पापा के खिलाफ प्रदर्शन को टीवी पर देखने के बाद से घर में ऐसे डरी-सहमी सी छिपी हुई बैठी रहती है, जैसे मानो कोई नारा लगाते हुए आएगा और उसे खींचता हुआ सबके सामने वाकई पेश कर देगा। बता दें कि लखनऊ में उस नेता के खिलाफ हुए प्रदर्शन के बाद उनकी 12 साल की बेटी हॉस्पिटल में एडमिट हो गई थी। उसने अपने घर की टीवी पर लोगों को चिल्लाते देखा था ‘........ कुत्ता है, हम उसकी जीभ काट लेंगे, जो उस नेता की जीभ काट कर लाएगा, उसे 50 लाख का इनाम दिया जाएगा’ ऐसे शब्दों को सुनकर कौन सा बच्चा होगा, जिसकी रूह नहीं कांपेगी।

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ऐसा ही कुछ महसूस किया होगा, उस नेता की बेटी ने जब ये सब हो-हल्ला हो रहा था, उस वक्त खुद उसकी मां ने प्रेस वालों से ये बात कही थी कि उनकी बेटी खाना खाते हुए अचानक रोने लगती है, तो कभी टीवी देखते हुए उन्होंने बताया कि स्कूल में भी उनकी बेटी गुमसुम सी रहने लगी है। ऐसे में एक मां चीख-चीख कर सबसे यह पूछना चाहती है कि उसके पति की सजा उसकी नाबालिग बेटी को क्यों दी जा रही है? उसने तो कोई गुनाह नहीं किया? प्राप्त जानकारी के अनुसार उसके टीचर्स का कहना है कि जब से ये वाकया हुआ है, तब से उसका मन ठीक से पढ़ाई में नहीं लगता है वहीं उसकी फ्रेंड्स का कहना है कि अब वह किसी से बात नहीं करती है हर वक्त कुछ सोचती रहती है।

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डिप्रेशन का हो जाते हैं शिकार

एक 12 साल की बच्ची को जब सियासत के कीचड़ में खींचा जाने लगता है, तो वो कैसा महसूस करती है। इसके बारे में हमने जाने की कोशिश की जाने-माने मनोचिकित्सक कलीम अहमद से। कानपुर के सरकारी हॉस्पिटल में लोगों की मानसिक स्थिति का इलाज करने वाले डॉक्टर कलीम का कहना है कि बच्चों का दिमाग काफी मासूम होता है, उसमें ये सब देखने की क्षमता नहीं होती है। वह कहते हैं कि ऐसी स्थिति में बच्चे खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं। वह दूसरों से न ज्यादा बात करते हैं और न ही उनका किसी भी काम में दिल लगता है, वह एक अकेली दुनिया में जीने लगते हैं। आगे डॉक्टर कलीम बताते हैं कि ऐसे में बच्चे स्टडी से लेकर खेल-कूद, हर फील्ड में दूसरे बच्चों से पिछड़ने लगते हैं प्रदर्शन और गालियों का इतना बुरा असर होता है कि ये डिप्रेशन में भी चले जाते हैं।

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इन सब बातों से एक बात तो जाहिर है कि एक नेता जब सियासत की दुनिया में कदम रखता है, तो जाने-अनजाने उसके परिवार वाले भी उसका हिस्सा बन जाते हैं। एक तरफ भले ही उनको समाज में नाम मिलता हो, लेकिन उस नेता की एक छोटी सी गलती का खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। ऐसे में लोगों को चाहिए कि उन्हें जितनी भी राजनीति करनी है, वह उस नेता और उसकी पार्टी तक ही रखी जाए। किसी मासूम को बीच में न घसीटा जाए इससे भले ही मीडिया में उन्हें कवरेज मिल जाती है, पर उस 12 साल की मासूम की हंसती-खेलती जिंदगी किसी गूंगी गुड़िया की तरह हो जाती है, जो कि अपने आप में बेहद शर्मनाक है।



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